Friday, 9 January 2009

सपना

शाम का समय था।
थकान से बुरा हाल था।।
मुश्किल से एक बस मिली।
उसमें भी जगह न मिली।।
एक घंटे बाद एक सही धक्का पड़ा।
मैं सीधा जा सीट पर गिरा।।
हमने भी वक्त का फायदा उठाया।
थकान मिटाने के लिए एक सपना देख डाला।।
रोटी को करीब पाने के लिए एक महल खड़ा कर डाला।
हाय री किस्मत, वहां भी धोखा दे गई।
महल में बावर्चीखाना बनवान रह गया।
आंख से आंसू टपक गया। सारा सपना वहीं टूट गया।।
खाली पेट खाली रह गया।
सपने में भी किस्मत न बदल पाए।
सपना भी सरकार हो गया।
चुन्ने के बाद भी बेवफा हो गया।।
सपना तो हमारे लिए दर्पण हो गया।
आंख खुलते ही हकीकत दिखा गया।।

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