Saturday 14 February 2009

हमारी भी एक प्रेमिका थी।

हमारी भी एक प्रेमिका थी।
सुंदर सुकुशल सुकुमारी थी।
लेकिन हमारी काल्पनिक ऊंचाई के आगे वह एक गहरी खाई थी।
न उसके पिताजी के पास करोड़ों का काली कमाई थी।
न बड़ी सी कार थी। थी तो एक वि वास की घड़ी थी जिसकी सुई तक बंद पड़ी थी।
इसलिए ही तो वह एक कविता में ही समा के रह गई थी।

Friday 13 February 2009

कैसे करू मै तारीफ तुम्हारी ?

कैसे करू मै तारीफ तुम्हारी ?
जब मेरे मष्तिष्क के ज्ञानकोष में तुम हो,
जब मेरी नैन ज्योत में तुम हो,
जब मुख वाणी में तुम हो,
जब वाक्य के भाव में तुम हो।

कैसे करू मै तारीफ तुम्हारी ?
जब कंठ में अमृत सामान तुम हो,
जब ह्रदय के गूँज में तुम हो,
जब हर कदम में तुम हो,
कैसे करू मै तारीफ तुम्हारी ??????????????



कैसे करू मै तारीफ तुम्हारी.