Sunday 25 July 2010

चरित्रवान

ना जाने आज सुबह मैंने कैसे अपने भतीजे से पूछ डाला।
बेटा तुम्हारा चरित्र कहां है दिखाई नहीं दे रहा?
बेटा मुस्करा कर बोला वो तो कब का खो गया।
कैसे तुम्हारी इतनी मूल्यवान वस्तु खो गई?

और तुमने बताया भी नहीं ,बेटा फिर मुस्कुराया।
हां जब खो गई थी तो मुझे भी अफसोस हुआ था।
मगर जब ज्ञात हुआ वस्तु खोई है तो गम लुप्त हो गया।
वैसे भी दादी ही तो कहती हैं वस्तु का मोह नहीं होना चाहिए।

मगर बेटा चरित्र आजकल मिलता कहां है।
ना मिले मुझे चाहिए भी नहीं उसको लादने से मेरी लुक खराब होती है।
जीवन जीने में भी तकलीफ होती है ,फैशन में भी तो नहीं है चरित्र रखना।
बेटा हमारी खानदानी धरोहर थी।

चाचा मगर किस काम की थी।
जिसे गरीब भी न रख सके, रोटी भी न आ सके।
जिसे रखने पर सब दया का भाव दिखाते हैं।
बेचारा चरित्रवान कहकर पुकारते हैं।