Thursday 17 April 2014

प्रतीक्षा



प्रतीक्षा राम-राम काकी कैसी हो ?

ऋणी - ज़िंदा हूं जी रही  हूं।
प्रतीक्षा -  क्या बात है आज के समय में ज़िंदा भी हो और जी भी रही हो...
ऋणी - अरे 15  लोकसभा देख चुकी हूं कोई धूप में बाल नहीं सफ़ेद किये हैं...
प्रतीक्षा - काकी आप तो सीरियस हो गईं...
ऋणी -  काश हुई होती तो इस उमर में 20 रूपये के लिए दिनभर पत्थर नही
तोड़ती। तुम क्या कर रही हो ?
प्रतीक्षा दिन भर  दफ्तरों के दरवाज़े पर सर मारती हूं रात में दीवार
पर  ही... ही... ही...
ऋणी -  मेरे राम कितने समय बाद किसी को हंसते हुए देखा है..
प्रतीक्षा - तो  मुझसे मिलती रहा करो और हंसते हुए देखती रहा करो
ऋणी - कल से संग चलेंगे तूं शहर चली जाया करना और मैं पत्थर तोड़ने .,..
प्रतीक्षा - ठीक,  विश्वास भाई साहब का कोई मुआवज़ा मिला ?
ऋणी -  नहीं अब उम्मीद भी नहीं है...
प्रतीक्षा क्यों क्या कहते हैं...?
ऋणी -  कुछ नहीं पहले कहते थे आत्महत्या जुर्म है, इसलिए नहीं दे सकते
फिर पिछले चुनाव में जब घोषणा हुई किसानों को मुआवज़ा मिलेगा। दफ्तर जाके
पूछा तो कागज पत्र मांगने लगे। वो किसी तरह दे दिया तो कहते हैं बुढ़िया
तुझे क्यों दें तेरे पास क्या प्रमाण है कि तू ही माँ है ?
प्रतीक्षा - नेता कहीं के
ऋणी -  राम-राम, कैसे शब्द का इस्तेमाल करती हैं..
प्रतीक्षा काकी ऐसे  ही हैं ये सब,  कृषि प्रधान देश को कुर्सी प्रधान
बना दिया ..
ऋणी - चल मन खट्टा ना कर,  तुम लोगों का बीपीएल कार्ड बना ?
प्रतीक्षा -  कहां काकी, कहते हैं बीपीएल कार्ड बहुत बांट दिए हैं ज्यादा
गरीबी दिखने लगी है, इससे राज्य की छवि खराब हो रही है। इसलिए राज्य को
विकसित करने के लिए अब हर गांव के लोगो कों बीपीएल कार्ड तभी देंगे जब
उस गांव से कोई बीपीएल कार्ड वाले तीन लोग मरेंगे...
ऋणी -  3 सालों में क्या अपने गांव में किसी को मुक्ति ही नहीं मिली है,
कितने नाम तो मैं बता दूं...
प्रतीक्षा क्या कहूं अब तो ये हालत हो गयी हैं कि गांव में कोई मुक्ति
पाता है तो उसके घर बाद में , सरकारी दफ्तर पहले जाती हूं... पर कोई न
कोई अड़ंगा लग जाता है।
ऋणी -  परेशान ना हो, बनने तक अमीर बनकर रहो...
प्रतीक्षा -   परेशान नहीं हूं, कई बार सोचती हूं मैं ही मुक्ति ले लूं..
शायद तब मां को ही बीपीएल कार्ड मिल जाए...
ऋणी - क्या अनापशनाप सोचती हो,  मैं 66 वर्ष की हूं तब भी साँस लेने के
लिए सुबह से शाम तक पत्थर तोड़ती हूं...
प्रतीक्षा - काकी गुस्सा न हो आप गीले चूल्हे में फूंक मारो मैं मां को
देखती हूं काफी रात हो गयी है अब अपने ही गाव में अपनों से ही डर लगने
लगा है।
ऋणी - हां ठीक से जा...
प्रतीक्षा -  हां, सुबह आती हूं, संग चलेंगे ...
ऋणी -  हां आना जरुर,

(दूसरे दिन सुबह)

प्रतीक्षा -  राम राम काकी, काकी राम राम... क्या हो गया अंदर जाकर
देखूं ....  काकी क्या हो गया उठो उठो...
अश्रु भाई काकी को मुक्ति मिल गयी है आप सब कुछ इंतज़ाम करो मैं आयी
 
और प्रतीक्षा बीपीएल कार्ड बनवाने के लिए दौड़ी...

Sunday 12 January 2014

नेता...........भ्रम............जनता



नमस्कार नेताजी
नेताजी -खुश रहो भ्रम, खड़े क्यों हो बैठो
भ्रम - जी धन्यवाद
नेताजी - लोकसभा के चुनाव आ रहे हैं, जनता में माहौल बनाओ कि असली में हम ही नेता हैं
भ्रम - जी बिलकुल और सच्चाई भी यही है कि आप ही इस राज्य या ये कहिये इस देश के सब से बड़े  नेता हैं
नेताजी - तुम्हारी सच्चाई और ईमानदारी मेरे प्रति - प्रभावित करती है।लोकसभा के इलेक्शन जीतने के बाद तुम्हें जन कल्याण मंत्री बनाऊंगा, सोचो सब कहेंगे भ्रम हैं जन कलयाण मंत्री।
भ्रम - आप ने सोचा मैं इसी में तर गया, आप की जय हो नेताजी
नेताजी - जय तो मेरी ही होगी.....
भ्रम - जी सरकार...
नेताजी  - इस बार ठण्ड बहुत है
भ्रम - बहुत मै तो अंदर तक कांप रहा हूं
नेताजी - इतनी भी नही है
भ्रम - जी हां, सुबह अंदर तक कांप रहा था अभी तो कम है
नेताजी - राज्य में कुछ जीव मर गये हैं ठण्ड से, ये सच है क्या ?
भ्रम -  जी नहीं नेता जी, सब अफवाह है, आप के सुशासन को बदनाम करने के लिए। ठण्ड से कोई नहीं मरता है। हम भी तो इसी राज्य मे रह रहे हैं। वैसे भी ठण्ड से कोई मरता होता तो साईबेरिया में कोई बचता ही नही।
नेताजी - वही सोच रहा था, जरुर दुश्मनो कि चाल है। उमीद बाहर  देख धूप निकली क्या?
उमीद - जी ,नहीं आशा की किरण भी नहीं है
भ्रम- नेताजी रुकिए मैं देखकर आता हूं। इसे क्या समझ जनता कहीं का.....
नेताजी - हां हां शांत जन कल्याण मंत्रीजी
भ्रम- जो भी बन जाऊं रहूंगा तो आप का दास ही
नेताजी - तुम काफी आगे जाओगे
भ्रम - बस आप का आशीर्वाद रहे,  नेताजी बहार धूप है
नेताजी - अच्छा चलो बाहर बैठते हैं.
भ्रम- जी हां
नेताजी- मानव तुझे समझ नहीं है ?
मानव क्षमा....
ब्र्हम - चल काम कर, मूर्ख जनता कहीं का
मानव - जी
भ्रम - नेता जी कल एक अंग्रेजी गाना सुना बड़ा जबरदस्त था, क्यों न हम उसके अधिकार खरीदकर आपकी प्रशंसा का गाना बनाएं?
नेताजी - बिलकुल बहुत अच्छी सोच ऐसी सोच के लिए तुम जैसे समझदार लोगों की लिस्ट बनाओ और विदेशी यात्रा कर आओ अच्छे-अच्छे आईडिया लेके आओ लोकसभा मे इस्तेमाल करेंगे
भ्रम - जी आप जैसा कहें
नेताजी - इस यात्रा को नाम देंगे - स्टडी टूर. आखिर शिक्षा का प्रसार हमारा ही काम है।  जनता भी खुश हो जायेगी
भ्रम- बिल्कुल जनता तो खुश ही है। जिस तरह से आपने अपनी संस्कृति रक्षा के लिए भव्य  कार्य्रक्रम किया है,  वह तो अतुलनीय है
नेताजी - हम संस्कृति - शिक्षा  और जनता का ख्याल नहीं रखेंगे तो कौन रखेगा
मानव - सारा काम हो गया है, मैं 10 मिनट में अपनी बेटी भुखमरी को देख के आ जाऊं?
नेताजी - हां जा पर 10 मिनट में नहीं आयी तो देखना.......
मानव- जी
भ्रम - बडा काम चोर है....
नेताजी - हां बडा, पर मेरा दिल बड़ा दयालू है इसलिए इन सब की कामचोरी नज़रअंदाज़ कर देता हूं
भ्रम- आप तो माहन हैं
नेताजी - हा वो तो हूं ही

नेताजी कि जय हो
भ्रम - कौन है क्यों चिल्ला रहा है ..?
मैं जनता सरकार... ठंड लग रही है, कुछ दे दीजिए
भ्रम - नेताजी ये विपक्षी पार्टी का है जान बूझकर मांग रहा है।  जैसे दुनिया को बताये कि जनता परेशान है
नेताजी - सही कहा भ्रम, हमारे राज्य में सब खुश हैं समृद्ध हैं... देखा नही था अपने कार्यक्रम में सब कारो में आए थे ......
भ्रम - जी,  मार के भगाता हूं.
नेताजी - नहीं, मैं बात करता हूं क्या पता कोई टीवी चैनल  वाला छुपा हो
भ्रम - सही
नेताजी - क्या है, क्यों चिल्ला रहे हो?
जनता - नेताजी की जय हो, बड़ी ठण्ड है कुछ मेहरबानी कीजिये...
नेताजी हमारे लिए भी तो ठण्ड है.. घर जाओ और सो जाओ जैसे राज्य कि जनता सो रही है
जनता - सरकार मेरा घर जला दिया गया
भ्रम - क्यों बे सब तेरे साथ ही क्यों हो रहा है ?
जनता - पता नहीं...
नेताजी - पता नहीं मक्कार  सड़क पर आकर हमारी सरकार को बदनाम करता है, जा यहाँ से
जनता सरकार कुछ खाने को ही दे दीजिए बच्चे भूखे हैं
नेताजी  - निकलो  यहाँ से, नौकर मानव घर पर  नहीं है
जनता - कुछ दे दीजिए आप से बड़ी उमीद है ....
भ्रम - निकल ले बोला ना, मानव नहीं है
जनता - जी हां मानव नहीं है.......
नेताजी रिलैक्स, मेरे ख्याल से तुम्हे राज्य का दौरा  करना चाहिए जैसे तुम्हारी पैठ बढ़ सके।  भ्रम - अपना प्रभाव डालो सब पर, लोकसभा चुनाव आरहे हैं........