Friday, 9 January 2009

एक पत्र सृष्टि के रचयिता के नाम

परम पूज्यनीय सृष्टि के रचयिता को मेरा नमस्कार।
मेरी आपसे दरख्वास्त है कि कृपया करके मुझे इंसान की योनि में जन्म न दें। तकरीबन 84 लाखयोनियों के बाद जब मुझे इंसान का जन्म मिलने वाला था, तब मैं अत्यंत खुश था। आखिरकार मैं ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति इंसान की योनि में जन्म ले रहा था और मुझमें सोचने समझने की सारी शक्ति होगी। यह सोचकर मैं इतराए जा रहा हूं। पर मेरे सारे भ्रम टूट गए। जब मैं मात्र तीन दिन की उम्र में अपने परिवार के संग जा रहा था। तो अचानक ट्रेन में आग लगाकर हमें जला दिया गया। क्योंकि वे कह रहे थे हम हिंदू हैं। इसलिए मेरी 84 लाख योनियों के बाद मिला मानव जीवन 72 घंटों के बाद ही वर्तमान से भूतकाल में बदल गई। मैं हूं से था बन गया। मैंने इस निम्न से जीवन काल में मौत का तांडव देखा। मैं सोच भी न पाया। समझ भी न पाया। मैं शक्तिहीन हो गया। 72 घंटे इंसान की योनि का असर मेरी 84 जन्मों की आत्मा पर पड़ने लगा था। अचानक मौत बाद जब रचयिता ने पूछा कि अब कौन सी योनि में अपना जीवन व्यतीत करना चाहेंगे और मैंने स्वार्थ में डूबकर एक बार फिर इंसान की योनि मांग ली। रचयिता ने मुझे आंख बंद करने को कहा और तथास्तु कह दिया। कुछ पल बाद मैंने अपनी आंखें खोली तो अपने आप को एक बार फिर इंसान की योनि में पाकर बहुत हर्ष महसूस किया। और मन ही मन सोच रहा था कि मैं अपना सारा जीवन ईमानदारी और परमात्मा की सेवा में व्यतीत कर दूंगा। लेकिन मेरा यह हर्ष ज्यादा देर तक नहीं रहा। जब मुझे एक बार फिर इंसानों ने 72 सेकंड बाद ही मुसलमान कहकर अग्नि के सुपुर्द कर दिया। मैं इंतजार करता रह गया। अम्मी मुझे देखें, इस तरह 72 घंटे और 72 सेकेंड के मेरे स्वप्न को सांप्रदायिक दंगों में दफन कर दिया। कृपाधीन मेरी अर्जी स्वीकार करें। 84 लाख योनियों में यदि एक बार भी अच्छा काम किया हो तो मुझे अब इंसान का जन्म नहीं देना। 72 घंटे और 72 सेकेंड में इन इंसानों को और इनके धर्म को न मैं समझ पाया। ना जाने कैसे लोग इसे समझ जाते हैं। इंसान से दानव बन जाते हैं और फिर भी लंबी उम्र की दुआ मांगते हैं। ऐसी सर्वश्रेष्ठ योनि में जन्म लेने से अच्छा है मैं पुष्प बन जाऊं। कम से कम महकूंगा तो। मेरी पंख़ुडी किसी के लहू में लिप्त नहीं होगी। मुझे यकीन तो है सृष्टि के रचयिता आज अपनी सर्वश्रेष्ठ कृति को लहू में सराबोर देखकर यह कह रही होगी कि इन्होंन ेतो मेरे द्वारा बनाए इंसान और जानकर का भेद ही खत्म कर दिया। और स्वयं से बैर कर लिये मुझे पुष्प नहीं तो जानवर बनाएं। पर इंसान न बनाएं।
आपका पारथी

2 comments:

  1. अपनी लेखनी को जन-जन तक पहुँचने का सही जरिए चुना है आपने.बस इसकी निरंतरता बनाये रखना. मां शारदा का आशीर्वाद सभी को नही मिलता,मिला है तो नियमित रियाज़ जरुरी है.जब भी,जहाँ भी जरुरी समझना याद करना मैं तैयार हूँ.शुभकामनायें सदैव आपके साथ है.

    ReplyDelete
  2. good one. keep up the good work.

    ReplyDelete