Sunday 12 July 2009

पता


आज उसने मेरा पता पूछ लिया।
मैं हक्का बक्का रह गया, कि उसे क्या बताऊं,
क्या
समझाऊं इस लापता का तो कोई पता ही नहीं है
वह अचरज में आया और फिर पूछा भाई साहब अपने घर का पता बता दीजिए।
मैंने
रौंद आंखों से, भरे गले से कहा घर तो मेरा हिन्दुस्तान में है।
यहां तो सिर्फ मकान है, और कुछ नहीं।
यहां की दीवारें भी मुझे नहीं पहचानती हैं।
मकान के प़ेड पर चिड़िया भी नहीं चहकती है।
पता
तो मेरा हिंद में है, जहां पर चिट्ठी आने पर कोयल कूकती है
जहा
खिड़की भी मेरी चिट्ठी का इंतजार करती है।