गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये।
मौसीजी, रविवार को राज्य महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का विज्ञापन देखा।बड़ा अफ़सोस हुआ, उसके बाद कई कार्यक्रम देखे व लेख पढ़े उससे जो पीड़ा मुझे हुई वो मै शब्दों से व्यक्त नही कर सकता। आखिरकर मै हू तो वह ही आम इन्सान, जो पीड़ा की अग्नि में जीवन व्यतीत कर देता है पर उस अग्नि से क्रांति की मशाल नही जलाता है।
हर व्यक्ति को इस विज्ञापन से केवल यही आपत्ति है की किसी पाकिस्तानी सैनिक की फोटो लगा दी।मेरे विचार से इस मे कृष्ण तीरथ की कोई गलती नही है।गलती उस कुर्सी की है जो रक्षक और भक्षक मे अंतर करना बंद कर देती है।यह भी हो सकता है की गूगल मे एंटर कर दिया होगा और उस मे इस पाकिस्तानी की भी फोटो आ गयी होगी, और उसे देखकर प्रसंचित हो गई होंगी की वहां ये फोटो लगाओ इतने तमगे लगे है - विज्ञापन और अच्छा लगेगा, फिर चाहें तमगे भारतीयों के रक्त बहाने के लिए ही क्यों ना मिले हो - चाहें इस से मेरी थल, जल और वायु सेना का अपमान ही हो।
यदी ऐसा नही है तो फोटो लगी कैसे???
ये देशद्रोह हुआ कैसे???
मौसी कुछ तो बोलिये???
मौसी विज्ञापन के लिए कृष्ण तीरथ ने कहा हम ने सिर्फ तस्वीर को देखा भाव को नही । जो दिखा व जो पढ़ा -वह ही तो समझेंगे उनके ह्रदय में तो नही झांक सकते। मौसी, कृपया ये पंक्ति पढ़े और मुझ मुर्ख को समझाये की इसका क्या अर्थ है?
Where would you be
if your mother was
not allowed to be born???
इस में ये दर्शाया जा रहा है की महान पुरुष नही होते यदि माँ नही होती, इसलिए बालिका हत्या नही होनी चहिये ।इससे संकीर्ण और संकुचित सोच नही हो सकती ।
नारी रक्षा के लिए विज्ञापन देना ही था तो ये देते की बालिका हत्या नही होनी चहिये क्यों की नारी मात्र जननी नही है। बड़े-बड़े अक्षरों में लिखते की बेटी अर्थात राष्ट्र का सम्मान । कृष्ण तीरथ से पूछिए क्या भारत में महान व सफल नारी का अकाल पड़ा है जैसे अनाज का या सोच का अकाल है? इससे अच्छा तो इनकी तस्वीर लगात्ती
- प्रतिभा पाटिल
- इन्द्रा गाँधी
- सरोजनी नायडू
- विजय लक्ष्मी पंडित
- सुचेता कृपलानी
- मीरा कुमार
- आरती शाह
- कादम्बिनी गांगुली
- चंद्रमुखी बासु
- कामिनी रायसोराबजी
- असीमा चटर्जी
- कुमारी फातिमा बीवी
- किरण बेदी
- अन्ना चांदी
- दुर्बा बनर्जी
- कल्पना चावला
- कम्लिजित संधू
- बचेंद्री पाल
- निरुपमा वैद्यनाथन
- पी. टी. उषा
- के. मल्लेश्वरी
- कोनेरू हम्पी
- सानिया मिर्ज़ा
- सायना नेहवाल
आज भी लडकियों को पढाया नही जाता है और जिन्हे पढ़ाया जाता है उनमे से ९०% का लक्ष्य मात्र शादी होता है।आज भी लड़की को उसके वस्त्रो से चरित्र का आकलन होता है ।उस समाज में इस तरह का विज्ञापन किसी घोर अपराध से कम नही है। इस तरह के विज्ञापन से यही सन्देश मिलेगा की नारी मात्र जननी है ।
मौसी यह तो तब हो रहा है जब आप भारत की प्रथम नागरिक है । कृपया कर के कुछ करिये ................
आप का
आदित्य
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