Sunday, 15 March 2009

खर्चा

आज मेरी मां का इकलौता जेवर भी बिक गया। अब तो कुछ बेचने के लिए भी नहीं रहा। कैसे खर्चा कम करें, कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है। अब तो दो वक्त से एक वक्त ही खाना खाते हैं, फिर भी खर्चा कम नहीं हो रहा है। सब परेशान हैं, कैसे खर्चा कम करें। यह सवाल सबके मन में कई सवाल उत्पन्न कर रहा है। अगर मैं इतना परेशान हूं तो मेरे पापा मम्मी और यशोदा कितने परेशान होंगे। क्यों न मैं मर जाऊं। हां मैं मर जाऊंगा। थोड़ा खर्चा कम होगा। वैसे भी अब ये पेट कुछ ज्यादा खाना मांगने लगा है। मैं ही हर समय कोई न कोई चीज मांगता रहता हूं, मेरे ही कारम खर्चा बढ़ता है। मैं ही वास्तविक परिस्थिति को समझने में असफल हूं। इसलिए उचित यही है कि मैं सदा के लिए मृत्यु के साथ सो जाऊं। नहीं नहीं। मैं नहीं मर सकता। मैं मर गया तो सरे मेहमान घर आ जाएंगे। उनके खाने का खर्चा। सफेद चद्दर का खर्चा, अर्थी का खर्चा, पंडे और रूढिवादिता का खर्चा। नहीं और खर्चे बढ़ जाएंगे। नहीं इस समय मरना ठीक नहीं। मर गया तो घरवालों पर काफी खर्चा बढ़ जाएगा। नहीं मैं इतना स्वार्थी नहीं हो सकता। यह सोचते हुए मेरी आंख खुल गई। सामने देखा तो पापा आसमान में आस भरी निगाहों से देख रहे थे कि कब सितारे बदलेंगे और हमारी किस्मत बदलेगी। कब फिर से रोजगार मिलेगा। एकदम से टेबल गिरने की आवाज आई। पापा अंदर के कमरे में दौड़े । देखा तो यशोदा ने आत्महत्या कर ली। सब उसके पास आकर रोने लगे। रो मैं भी रहा था लेकिन मैं रो बहन के मरने पर रहा था या खर्चा बढ़ने पर। यह मुझे स्पष्ट नहीं हो रहा था। जो भी हो यशोदा ने अच्छा नहीं किया। पहले दो तीन बार सोच तो लिया होता। नहीं तो मुझसे ही सलाह ले ली होती कि मरने से खर्चे कम नहीं होते। बढ़ते ही हैं। और अचानक से मेरे सीने में दर्द उठा। और मैंने फिर से अपने परिवार का खर्चा दुगुना कर दिया। मौत भी परिवार का खर्चा कम न कर सकी।

8 comments:

  1. मुक़द्दर कुछ बनाना चाहता है
    तबीयत कुछ बनाना चाहती है

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  2. आपका लेख सोचने पर मजबूर करता है......
    आज के दौर में ऐसा क्यूँ होता है.

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  3. SAHI LIKHA BHAI...SOCHTE HAI VAISE KAHAN HOTA HAI....

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  4. ब्लौग-जगत में आपका स्वागत है.शुभकामनायें.

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  5. aaj ke jamane me jinda wahi hai jo ya to besharm hai ya fir jiska kharcha kam hai. narayan narayan

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  6. dil ko chugayi aapki rachna

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