हमारी भी एक प्रेमिका थी।
सुंदर सुकुशल सुकुमारी थी।
लेकिन हमारी काल्पनिक ऊंचाई के आगे वह एक गहरी खाई थी।
न उसके पिताजी के पास करोड़ों का काली कमाई थी।
न बड़ी सी कार थी। थी तो एक वि वास की घड़ी थी जिसकी सुई तक बंद पड़ी थी।
इसलिए ही तो वह एक कविता में ही समा के रह गई थी।
Saturday 14 February 2009
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