जब भूखा मैं सोता हूं।
सच्चाई का दर्पण टूट जाता है।
जब करुणा के आंसू मैं रोता हूं।
बापू मुझे तुम्हारी याद आती है।
जब पानी के लिए भी पसीने की धार बहाता हू।
कंठ मेरा सूख जाता है।
जब पानी भी खरीदने के लिए विवश हो जाता हूं।
जब पानी भी खरीदने के लिए विवश हो जाता हूं।
बापू मुझे तुम्हारी याद आती है।
जब डबल रोटी में बम की बातें सुनता हूं।
अहिंसा की लाठी खो जाती है।
जब लाशों के ढेर अपनी आंखों के आगे पाता हूं।
बापू मुझे तुम्हारी याद आती है।
जब देश भक्ति को डॉलरों के चक्रव्यूह में फंसा पाता हूं।
आत्मा मेरा साथ छो़ड़ देती है।
जब खुद को आजाद बताकर व्यंग मैं बन जाता हूं।
बापू मुझे तुम्हारी याद आती।
जब हर इंसान विदेशी मैं पाता हूं।
आत्मा मेरी कुंठित हो जाती है।
जब विदेशियों के हाथ में संरक्षण मैं पाता हूं।
बापू मुझे तुम्हारी याद आती........
आज के हालत ही ऐसे है की बापू की याद आती है
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत कविता लिखी है