आज मेरी पत्रिका के मालिक ने मुझे बुलाया और कहा लेबर डे पर कुछ लिखो यह विषय मेरे लिए बिल्कुल नया था। वास्तविकता तो यह थी कि मैंने इस विषय में कभी कुछ लिखा ही नहीं था और न कभी पढ़ा। हां बजट के वक्त मजदूर विरोधी सरकार पर या इलेक्शन के समय पार्टी मजदूरों का भला करेगी, इसके अलावा कुछ लिखा ही नहीं था. परंतु मालिक ने कहा तो लिखना तो था ही अन्यथा मुझे बिना नोटिस दिए बाहर फेंक देते।
इसिलए मैंने मजदूर पर रिसर्च करनी शुरू कर दी। कई लाईब्रेरियों को छान डाला उसके बाद चंद किताबें मिली जिनकी मदद से कुछ लिखा जा सकता था। सबसे मजेदार यह बात सामने आई की एक किताब में लिखा था की 1884 में मजदूरों के नेता लोखंडे ने ब्रिटिश सरकार के सामने चंद मांगें रखी थीं। जो इस प्रकार थी- ़
1) हर शनिवार को मजदूरों को छुट्टी दी जाए।
2) काम के दौरान आधे घंटे खाने की छुट्टी
3) काम की शुरुआत सुबह ़.30 बजे व सूरज ढलने पर काम की समाप्ती ।
4) मजदूरों का वेतन हर 15 तारीख तक मिल जानी चाहिए।
5) अगर कोई मजदूर काम करते वक्त घायल हो जाता है, जिससे वह अपने काम पर हाजिर नहीं हो पाता है तो उसके ठीक होने तक तनख्वाह मिलती रहनी चाहिए।
वह मांगे हमारी मांगों से काफी मिलती जुलती थीं। इसिलए मैंने विचार किया 1984 से 2009 तक में कोई परिवर्तन हुआ है या स्थिती और करुणामय हो गई है। वीचार करके मैं घबरा गया तथा स्वयं को भी मजदूर की श्रेणी में खड़ा पाया।
मैं एक फैक्टरी में भी गया, जहां मैंने देखा एक मजदूर का हाथ मशीन में आने से कट गया। वह दर्द से तड़पते-तड़पते बेहोश हो गया। मगर कोई उसकी ओर आना तो दूर की बात किसी ने देखा भी नहीं। यह दृश्य देखकर मुझे गुस्सा आया। मैं उस मजदूर को उठाकर अस्पताल ले गया। दो तीन बाद जब उसकी स्थिती सामान्य हुई तो मैंने उससे कहा राम खिलावन तुम्हारे साथी कैसे हैं, मेरा वाक्य खत्म भी नहीं हुआ की उसने मुझे टोकते हुए कहा - नहीं साहब मेरे साथियों को कुछ न कहिए। यदी कोई भी काम छोड़कर आता तो उनके आधे दिन की पगार काट ली जाती। उनका भी तो परिवार है। उनके घर में तो चूल्हे जलते हैं। यह उत्तर सुनते ही मैं स्तब्ध रह गया। और मैंने पाया की वास्तविकता में हम ओल्ड फैशन ही हैं। तभी तो 1884 की मांगों को दोहराते हैं और शून्य ही पाते हैं।
राम खिलावन की नौकरी चली पर वह बेहद खुश है। क्योंकि उसके 10 साल के लड़के को उसी जगह उसी मशीन पर रख लिया। और वह फैक्ट्री के बाहर भीख मांगता है। सबसे कहता है कर्म करो, फल की चिंता न करो। दूसरी तरफ मुझे लेख लिखने में इतनी देर होने के प चात भी मेरी नौकरी बच गई पर महीने की 1 छुट्टी से मैं हाथ धो बैठा। हम सब खुश हैं, क्योंकि हमें बचपन से सिखाया जाता है तुम्हें सिर्फ कर्म करना है, फल तुम्हारे मालिक के लिए है। इसलिए कम करो, कर्म करो, कर्म करो.........।
Sunday, 24 May 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
ek aur nayab kahni
ReplyDelete