Friday, 5 April 2013

जी सॉरी

माँ - क्या कर रही है
शीना -कुछ नहीं मम्मीजी
माँ - तो कभी कुछ कर भी लिया करो, की दिन भर आराम-आराम। हम इस उमर में भी तुम लोगों से ज्यादा काम करते हैं और तुझ से तो ज्यादा ही फिट हूं
शीना - जी मम्मीजी
माँ - जी-जी करना पर गलती से कुछ काम मत कर लेना।
शीना -जी नहीं मम्मीजी खाना बना रही हूं।
माँ- तो झूठ क्यों बोला कि कुछ नहीं कर रहीं हूं , मैं कौन सा रसोई में आ रही थी, जो करना है करो, मेरी बलासे
शीना -जी नहीं मम्मीजी ऐसा नहीं है।
माँ -ऐसा हो या न हो पर तुमने झूठ बोला, पता नहीं आज-कल की लड़कियों को  छुपाने की क्या आदत हो गयी है। हमे तो हिम्मत तक नहीं थी की झूठ बोलने का सोच भी ले और ये मुंह पर झूठ बोल रही है। अपने घर में यही देखा होगा की बड़ों की आंखों में धूल झोंको।
शीना -जी नहीं मम्मीजी ऐसा नहीं है, बस कुछ खास नहीं कर रही थी इसलिए कह दिया कुछ नहीं कर रहीं हूं।
माँ - ये बोलने की जरुरत नहीं है कि तुम खास नहीं कर रही थी । ठीक से पोहा तक तो बनाना आता नहीं, खाना बनायेगी। चलो माँ ने कुछ नहीं सिखाया पर एक साल से मुझसे क्या सीख लिया कुछ नहीं सच्चाई तो यही है तुम कुंद हो ....... अब सांप सूंघ गया क्या ?
शीना - जी नहीं मम्मीजी
माँ - तो बोलती  क्यों नहीं हो, क्या मैं पागल हूं जो हवा में बकती जा रही हूं और तुम्हारे कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है?
शीना -जी नहीं मम्मीजी
माँ -जी नहीं करती रहना पर कुछ करके मत देना ,काहिल कहीं की
शीना -सॉरी मम्मीजी
माँ- हे राम ,उठाले मुझे, बेशर्म सॉरी भी रसोई से बोल रही है ये नहीं यहां आके  माफ़ी मांगे।
शीना - जी नहीं ,आ रही हूं
माँ- कब मेरे मरने के बाद
शीना -जी नहीं आ गई
माँ - बड़ा अहसान किया, रसोई में क्या गिरा के आ गयी?
शीना -जल्दी में गलती से कटोरी गिर गयी।
माँ- हे राम, अपने घर से कुछ लायी नहीं और मेरे घर को नुकसान करने में लगी हुई है। हाथ में  काटे है किया - मनहूस
शीना -सॉरी
माँ- बस यह है गलती करती रहो, घर बर्बाद करती रहो और सॉरी बोलती रहो।
शीना -जी नहीं मम्मीजी
माँ- क्या नहीं, यही सिखाया है तेरे माँ-बाप ने, अब चुप क्यों है तुझ से ही बात कर रही हूं ........... बोल बोलती क्यों नहीं है।
शीना - सॉरी मम्मीजी, ऐसा नहीं है।
माँ -जवाब देती है बत्तमीज़, एक तो गलती करती है ऊपर से ज़बान चलाती है।
शीना - सॉरी मम्मीजी
माँ-यह है आजकल की बहु सॉरी का झुन-झुन बजाती रहेगी और करेंगी अपने मन का ही। पता है बुढ़िया क्या कर लेगी......... अब कौन मर गया जो रो रही हो। बात करना दूभर हो गया है। बोलों नहीं की  रोना शुरू। ये सीरियल नहीं है ,ये  नौटंकिया तुम्हारे घर में होती होंगी यहाँ ये सब नहीं चलेगा न हमने कभी  कि है ,न ही ये गवारपना झेंलूगी।
शीना -सॉरी मम्मीजी
माँ- रोना बंद करो वर्ना फिर बीमार हो जाओगी, पता नहीं क्या क्या बीमारी लेके आयी हो? प्रहलाद के कारन ले आयी तुझे वर्ना। तुझ जैसी बीमार को तो घर में भी घुसने नहीं देती।
शीना - जी मम्मीजी
माँ - ये जी का ढोंग कही और करना मैंने दुनिया देखी है, चल यह बता तुझमें कोई एक भी गुंण  है। बोल न, शक्ल न अक्ल आता-जाता तुझे कुछ नहीं बस आराम कर वालो और घर फुक्वालो, बोल गलत हूं क्या?
शीना -जी नहीं
माँ -कैसे गर्व से कह रही है नहीं, बत्तमीज़ चुप रहना सिख और सुन मुझे तेरे हा या न की जरुरत नहीं है समझी यह शहर का रौब किसी और को दिखाना, मैं टीचर रह चुकी हू।
शीना -सॉरी मम्मीजी
माँ- अभी कहा चुप रहना सीख,पर मजाल है जो चुप हो जाये, अरे बत्तमीज़ बड़ों से जबान लड़ाने से कोई मॉडर्न नहीं हो जाता समझी, यह जलने की बदबूं कहां से आ रही है?
शीना - जी रसोई
माँ - हे राम, यहाँ ख़ड़ी है। असल में काम में तो मन लगता नहीं है। अब जा गैस बंद कर की  घर फूक के ही तसल्ली मिलेगी। क्या बहू मिली है, किस्मत ही खराब है।

माँ - मोटर साईकिल की आवाज़ आ गई, लड़का थक के आ रहा है। आते ही कान  भरने मत लगना, सांस लेने देना।

प्रहलाद - राम-राम अम्मा
माँ -जीता रह, बैठ थक गया होगा
प्रहलाद- कुछ जल रहा है?
माँ - बहु कुछ बना रही होगी।
प्रहलाद- शीना सब ठीक?
शीना - जी हां, बस आयी
माँ - आने को कोई नहीं कह रहा है। प्रहलाद जानने  का इच्छुक है की आज क्या जला खिला रही हो।
शीना - यह रही गरमा-गर्म चाय और मैगी - मम्मीजी आप के लिए और इनके लिये।
माँ - तुम दोनों खाओ ,मैं नहीं खाती ये सांप बिच्छु।
प्रहलाद - शीना माँ  यह नहीं खाती है।
माँ - बताया तो था, ध्यान से उतर गया होगा या फिर ध्यान ही नहीं दिया होगा।
शीना - जी नहीं मम्मीजी वाह असल में पोहा बना रही थी पर वो कड़ाई में लग गया, तो जल्दी में ये बना लिया।
माँ - पोहा जैसी चीज़ कैसे जल गयी?
शीना - जी वो जब आपसे गपशप कर रही थी तब ध्यान से उतर गया।
माँ - वहीं तो कहती हूं घर पर ध्यान रखा करो और तुम गपशप नहीं कर रही थी तुम बत्तमिज़ी कर रही थी। अब ऐसे मत देखो जैसे में झूठ बोल रही हूं मुझे कोई डर नहीं है।
प्रहलाद - माँ आपको डरने की जरुरत भी नहीं है, शीना जो चाहो करो पर माँ से बत्तमिजी करना छोड़दो, यह तुम्हारे लिए और अपने रिश्ते के लिए सही होगा।
शीना - जी सॉरी मम्मीजी

घर और बाहर के लिए कानून बना है और बनते रहेंगे पर वास्तविकता में हम नारी को उसका हक देने के लिए मानसिक तौर पर तैयार है?

Tuesday, 12 March 2013

संवेदनहीन

निधि - उफ़ एक तो बजट जलाने वाला आ गया पर से इस बार गर्मी भी जल्दी आ गयी। बिना ए.सी. के मरो!
विशाल - इन्डियन एलिज़ाबेथ पर देखो ए.सी. लगा हुआ भी है और चल भी रहा है।
निधि -बस तुम चुप ही करो आधे कमरों में  तो ए.सी. नहीं है।
विशाल - हाय क्या गरीबी है , बेचारी मेरी बीवी।
निधि - सच ही  है, कि काश थोड़े और गरीब ही होते, सरकर भी तो सारी  सुविधा ज्यादा  गरीबों को ही  देती है। हमें तो बस टैक्स भरने के लिए और अपने अरमाननों का गला घोटने के लिए रखा हुआ है। 
विशाल - टैक्स अपने घर से नहीं देती हो, जो कमाते हैं उसमें से छोटा सा हिस्सा ही देते हैं
निधि - हां पता है पर सब नहीं देते है, सिर्फ कुछ डरपोक और मूर्ख लॊग तुम जैसे।
विशाल -डरपोक और मूर्ख नहीं, इसे शराफत कहते हैं
निधि -शराफत की होलसेल एजेंसी इसी इन्सान के पास ही हैं। मारो भूख हम सबको, जैसे अभी तक मारते आ हो।
विशाल - शांत क्यों मुहल्ला सर पर  उठा रही हो, बेवजह ..
निधि -बात की नहीं कि चिल्लाकर  चुप करा दो
विशाल - दिख रहा है, कौन चिल्ला रहा है, कौन चुप हो रहा है।
निधि -क्या दिख रहा है, बोलो-बोलो क्या दिख रहा है।
विशाल -कुछ नही
निधि -कुछ नही कैसे बोलो इसे चुप रहके मुझे झूठा साबित नहीं कर सकते
विशाल -अर यु ओके ?
निधि -अर यु ओके का किया मतलब है। बोलो पागल हूं मैं ?
विशाल -हे भगवन .......... बचा
निधि -कोई तुम्हे बचाने नहीं आयेगा,  चाय पीते हैं और लडाई जारी रखते है।  प्रतिभा चाय बनाना,  साहब और मेरे लिए
प्रतिभा - जी
विशाल -उसे भी देदो
निधि -किसे क्या दे दूं?
विशाल -प्रतिभा को भी चाय दे दो
निधि -मेरे लावा दुनिया की फिकर है,  वैसे हम नहीं ह हमें पिला रही है।
प्रतिभा - आंटीजी  चाय
निधि - अच्छी है,  सब्जी कट गयी ?
प्रतिभा - जी
निधि -ठीक है चावल बीन दे।
प्रतिभा - जी
निधि -अच्छा  सुन इधर आ
प्रतिभा -जी
निधि -इस बार का बजट तो बड़ा अच्छा  आया है तुम लोगों के लिए।
प्रतिभा - जी
निधि - चलो अच्छा है, सरकार ने तुम लोगों की फिकर तो की
प्रतिभा -जी
निधि -तुझे पता है तू अब विदेश से १ लाख का सोना बिना टैक्स के ला सकती है।
प्रतिभा - जी
निधि - मैं बड़ी खुश हूं अब धीरे धीरे सोना लेती रह बेटी की शादी में  काम  आयेगा।
प्रतिभा -जी
निधि -तेरी बेटी गूंगी है ना?
प्रतिभा - जी
निधि - क्या नाम है उसका ?
प्रतिभा - जनता
निधि - हा जनता, उसके लिए दहेज़ जमा कर ले, बड़ा अच्छा  मौका है।
प्रतिभा - जी
विशाल - प्रतिभा दहेज़ का दिमाग में भी मत लाना उसे पढ़ा स्वावलम्बी बनाओ
प्रतिभा - जी
निधि- इन्हें समाज का कुछ अता-पता नहीं तू मेरी सुन।
प्रतिभा - जी
निधि - बहुत बातें हो गयी,  जा चावल बीन। बस बातें करा लो
प्रतिभा - जी
निधि - सुन इधर आ
प्रतिभा - जी
निधि - तूने अभी तक मकान भी नही लिया ना?
प्रतिभा - जी
निधि - तुम लोग भी बचाना नहीं जानते हो
प्रतिभा - जी
निधि - अब सरकार ने तुम लोगों के लिए सुविधा कर दी है २५ लाख तक पर  फायदा है।  हम तो वो भी नहीं ले सकते क्योंकि ये फायदा केवल पहले मकान पर ही है।
प्रतिभा - जी
निधि- चाय ठंडी हो गई फिर बना
प्रतिभा - जी
विशाल- निधि! प्रतिभा कितने घरों में काम करती है ?
निधि  -
विशाल - उधर भी ३ हजार मिलते है
निधि  - हां
विशाल - तुम उसे ६ हज़ार कमाने वाली को   बचत का ज्ञान दे रही हो , थोडा तो संवेदनशील बनो।
निधि - तुम नहीं जानते ये लोगों के पास बहुत होता है और टैक्स भी नहीं देते हैं...
विशाल - साल का ये ७२ हजार कमा रही है, टेक्स बनता भी नही है।
प्रतिभा - चाय
निधि - देख साहब क्या बात कर रहे है, तू खुश है ना ? तू मकान खरीदना चाहती है ना?
प्रतिभा - जी
निधि - सुनिए जी कह रही है। अरे दिमाग से उतर गया अभी स्कूल खुलेगा तो भविष्य के लिए विदेशी जूते लेना, वो भी सस्ते हो गए है।
प्रतिभा - जी
निधि- प्रतिभा तू मेरे लिए बेटी जैसी है, किसी भी चीज़ की जरुरत हो , बोल देना।
प्रतिभा - एक एहसान चाहिए था
निधि - बोल
प्रतिभा - जी भविष्य को एक इंजेक्शन लगवाना था थोडा कमजोर है इसलिए ५०० रूपये उधार चाहिए थे।
निधि - अरे पगली कमज़ोर है तो नीबू पानी पिला डॉक्टर तो लूटते है।
प्रतिभा - जी,  असल में भविष्य कुपोषण का शिकार है इसलिए
निधि -जाओ चावल बीनो , बस दिन भर बातें करवा लो। 
प्रतिभा - जी
विशाल - (जनता) बेटी  गूंगी,  बेटा (भविष्य) कुपोषण का शिकार उस पर निधि  (सरकार)
निधि - क्याड़बड़ा रहे हो
विशाल -जय हिन्द

Tuesday, 15 January 2013

कुम्भ से कैनेडा.........

बच्चा चाय बना देना
प्रगति - नही बनाऊंगी, मै आपका बच्चा नहीं हूं? मै आप की कोई नहीं हूं ?
तू तो मेरी लाडो है, मेरा बेटा है...
प्रगति - नहीं.. नहीं आप सिर्फ ऐसा कहते हैं, दिल से नहीं मानते। ऐसा होता तो आप गर्व से कहते तूं मेरी बेटी  है। मै भी 30 साल की हो गयी हूं, कब तक सौतेला व्यवहार करते रहेंगे...
लाडो किया हो गया, क्यों गुस्सा हो रही हो, दो पल बैठ... फिर लड़ना आराम से।
प्रगति -  नहीं बैठूंगी, जब तक आप ये नहीं कहते मैं आपकी बेटी हूं, गर्व है...
लाडो अब मुझे इस बात का भी प्रमाण देना पड़ेगा की मैं तुझसे कितना प्यार करता हूं कितना गर्व करता हूं। लाडो रो मत... क्या हुआ मेरे बच्चे क्या हुआ कोई समस्या है तो बोलो.... लाडो रो मत्त घर में कुछ हुआ ?
प्रगति - नहीं, मुझे आप से लड़ना है...
लड ले... इस में रोने की क्या बात है... तुझे तो आदत है लड़ने की, मुझे भी अच्छा नहीं लग रहा था कि एक हफ्ता से आई हुई है और लड़ नही रही है।
प्रगति - पापा कभी नही लडूंगी मेरे संग चलिये ना...
लाडो -   आऊँगा...
प्रगति - नहीं ... अभी चलिये और हमारे संग रहिये...
नहीं प्रगति, मैं यहां आराम से हूं
प्रगति - तो वहा कौनसी तकलीफ है, हमें हर समय आपका ख्याल रहता है, पापा मकान छोटा है पर मकान तो है, पापा हम दोनों मेहनत कर रहें है जल्दी बड़ा घर ले लेंगे।
लाडो ये बात नही है... घर तो घर होता है और मेरी बेटी का तो कैनेडा मै घर है...
प्रगति - तो चलिये ना, पापा माँ के देहांत को 6 महीने हो गये है कब तक अकेले रहेंगे और कैनेडा से इतनी जल्दी -जल्दी आना आसान  नही है इस बार मिक्की को छुटी ही नहीं मिली मिक्की बोल रहा था जॉब छोड़ देता हूं पापा को मनाकर ले आता हूं... मैंने समझाया जॉब मत छोड़ो मुझे छुट्टी मिल रही है.... मैं जाती हूं और पापा को संग लाती हू, पापा चलेंगे ना, अब आप क्यों रो रहे हैं?
कुछ नहीं प्रगति ये तो ख़ुशी के आंसू हैं... लाडो तुमने इतनी चिंता की मेरे लिए बहुत है ये घर नहीं छोड़ सकता.. बड़े अरमानों से बनाया व सजाया था मैंने और तुम्हारी माँ ने इस उम्र में....
प्रगति - मुझे मालूम है आप क्यों नहीं चल रहे हैं मैं बेटी हूं ना अगर बेटा होती तब आप उसके संग रहते
ऐसा कुछ नहीं है....
प्रगति- ऐसा ही है, क्या हमें आप के आशीर्वाद की जरुरत नहीं है...
अच्छा चलता हूं पर.. पर 1 महीने के लिए...
प्रगति - नहीं नहीं नहीं सादा के लिए...
फिर ये  घर ?
प्रगति - बेच देंगे...
नही बेचेंगे नहीं...
प्रगति -  फिर आप 1 महीने बाद ही आ जाएंगे हमें छोड़ के...
नही आऊंगा
प्रगति - अरे पापा आपकी आंखें बता रही हैं, बस अब घर बेचेंगे और कैनेडा चलेंगे, क्या हुआ आप मुस्करा रहें है?
कुछ नहीं लाडो पहले बच्चे चार धाम की यात्रा करते थी अब कैनेडा ले जाते हैं...
प्रगति - आप भी, चार धाम की यात्रा हम सब संग करेंगे। पापा पर मिक्की को एक डर है कही आप केनेडा में नयी मम्मी तो नहीं लाएंगे जो हम मासूम बच्चों से घर का कम कराएगी- हाहा हा हा...

आज के समय में जहां कोई अपने स्वार्थ के बिना किसी से पानी तक नहीं पूछता वहां एक बेटी ने अपने पिता का सारा कम बड़ी निष्ठा से पूर्ण किया और हक़ से घर बिकवा दिया और सारे अकाउंट बंद करवा दिए...

ट्रिंग ट्रिंग - हेलो ब्रिजेश बेटा, कैसे हो ? बच्चे कैसे हैं, मै ठीक हूं, चिंता नहीं करना...
हेलो... जी ब्रिजेश नहीं, एअरपोर्ट से सिक्युरिटी ऑफिसर बोल रहा हूं...
जी क्षमा चाहूंगा मुझे लगा मेरे बेटे का फ़ोन है...
सिक्युरिटी ऑफिसर - कोई बात नहीं जी 15 साल की सर्विस में आदत हो गई है... युवा भागते हुए आते हैं अगर एअरपोर्ट पर सामान छूट जाये,  और अगर बुज़ुर्ग छूट जाये तो कोई नहीं आता... क्योंकि वो छूटते नहीं छोड़े जाते हैं...
जी साहब
सिक्युरिटी ऑफिसर - कोई नही अंकल इनका भी बुढ़ापा आयेगा...
ऐसा न कहिये बच्चे ही हैं हमारे...
सिक्युरिटी ऑफिसर - तड़पो... कुछ नहीं हो सकता - आप किसी आशीष विद्यार्थी को जानते हैं...
जी साहब आशीष विद्यार्थी जी मेरे मित्र हैं, बड़े भाई समान हैं, कल रात अपनी बेटी के संग कैनेडा गए हैं...
सिक्युरिटी ऑफिसर - अंकलजी कहीं नहीं गये हमारे पास बेठे हैं न टिकेट है न पासपोर्ट... बोल रहे हैं बेटी ने टैक्सी में  पासपोर्ट अपने पास रख लिया था। उतर के ट्रोली लेने गयी, अभी हमने अंदर चेक कराया है बिटियारानी तो 1 बजे की फ्लाइट से उड़ गयी....
साहब आप उन्हें 1 घंटा अपने पास ही रखिये और कही मत जाने दीजियेगा मैं बस अभी निकल के आता हूं
(एक घंटे बाद ..... एअरपोर्ट पर)
सिक्युरिटी ऑफिसर कहां मिलेंगे
सिक्युरिटी ऑफिसर- कहिये मैं ही हूं...
साहब मेरे मित्र आशीष विद्यार्थी जी को घर ले जाना है...
सिक्युरिटी ऑफिसर - चलिए, आप लोग इतने तजुर्बेदार हैं फिर ऐसे कैसे बच्चों से फंस जाते हैं...
साहब बच्चे होते हैं न इसलिए...
विद्यार्थी जी नमस्कार, चले घर हम आप को कही नही जाने देंगे...
आशीष विधियार्थी- मेरा घर भी नही है...
भाई साहब मुस्कराइए अब हम दोनों पड़ोसी संग रहेंगे और शेरो-शायरी करेंगे हा हा...
आशीष विधियार्थी- प्रगति ने ऐसा क्यों किया...
प्रगति ही की है हमारा लड़का हमें कुम्भ छोड़ के आया था और आप की बेटी एअरपोर्ट....

Wednesday, 12 December 2012

दो मिनट बस...

 फेसबुक के एक स्टेटस से प्रेरित - "मैं हाउस वाइफ हूं और घर में कुछ काम नहीं होता है।"

उठिये  उठिये
परिभाषा : उठ रही हूं .... पानी नल में आये या ना आये, हरि किसन दूध मे पानी लेकर जरुर आ जायेगा।

आप गलत समझ रही हैं।

परिभाषा : प्लीज तुम सो ही जाओ दूध ले लेती हूं और गरम कर लेती हूं तब तक पानी भी आ जायेगा। बाहर निकलो (चीखते हुए) अभी के अभी। संजय उठो और पुलिस को बुलाओ, इसकी हिम्मत कैसे  हुई घर में घुसने की और ऊपर से कमरे में घुस आया, उठो आओ।

शांत आपकी और मेरी बातें ना कोई सुन पाएगा और ना आपके अलावा मुझे कोई देख पायेगा मै मृत्यु हूं ।
 
परिभाषा : क्या बकवास है। मैं कोई गांव की गंवार नहीं हूं कि इस बेतुकी बात को मान लूंगी और तुम्हे भागने दूंगी, हरी किसन तुझ जैसों को कितना सम्मान दिया और तूं ...
मृत्यु : आप भ्रमित हो रही हैं। वैसे  शहर में लोग मरते नहीं क्या ? आप कभी गांव गयी नहीं फिर कैसे पता वो गंवार होते हैं। तुझ जैसे से क्या अर्थ है वो भीख नहीं मांगता काम करता है और रही बात सम्मान की तो वो उसका हक है।
परिभाषा : सम्मान तेरा हक़ है, हरी किसन ये हक तो मुझे अभी तक नहीं मिला (ये बोलते ही मुख पर मनमुग्ध मुस्कान आ गयी)
मृत्यु : आप की मुस्कराहट बड़ी मोहक है
परिभाषा :  हां यह भी कहते हैं तभी शायद सम्मान देने का ख्याल नहीं आया।
मृत्यु : इस पर क्या कहूं?
परिभाषा : कुछ नही, हरी किसन ।
मृत्यु : क्षमा चाहूंगा मैंं हरी किसन नहीं हूं मैं आपकी मृत्यु हूं।
परिभाषा : अच्छा, ठीक है आप शरमा क्यों रहे हैं समय हो गया तो चलना ही होगा। वैसे भी यहां कहां कुछ करती थी। बेटी पैदा हुयी थी, मां मर रही हूं। हां, दादी नहीं बन पायी। यदि कुछ समय बाद चलें तो चलेगा?
मृत्यु : कुछ कितना ?
परिभाषा :  बस थोड़ा सा काम कर लेती हूं,नहीं तो सब को बड़ी परेशानी होगी।
मृत्यु : ठीक है कर लीजिए।
परिभाषा : बस  जल्दी से पानी भर लेती हूं, आजकल पानी की समस्या चल रही है ये बात मेरी मां भी कहती थी और अब मैं भी कहते-कहते जा रही हूं। बस 2 मिनट दूध गरम किया और चाय बना के मामा - पापा को दी। बस फिर इन्हें जगाया, आप बैठिये काम खत्म करके चलते हैं।
मृत्यु : मैं ठीक हूं आप अपना काम जल्दी से कर लीजिए।
परिभाषा :  थैंक्स, संजय उठो लेट हो रहा है, गुडू-गुडिय़ा उठो स्कूल नहीं जाना है। इतने बड़े हो गए हो पर अभी तक समय की कीमत नहीं पहचानी। बबिता आंटी की बेटियों को देखो .......
मृत्यु : एक सेकंड, एक सेकंड...
परिभाषा : हां क्या है बोलो, अरे थोड़ा रुक जाओ दिख नहीं रहा काम कर रही हूं, फिर तो खाली ही रहूंगी।
मृत्यु : जी मैं कह रहा था, आप अपना काम कर लीजिए मैं अपनी मंथली रिपोर्ट बना लेता हूं, नहीं तो आपके काम में  विघ्न डालता रहूंगा  और जब आप का हो जाये, मुझे बता दीजियेगा।
परिभाषा :  ठीक है जैसा आप कहो, अब काम करलूं  बस 2 मिनट का काम है।
मृत्यु : जी .............. दुपहर .................... शाम ........................ रात .......... सुनिए 2 मिनट हो गये क्या?
परिभाषा : हां बस 2 मिनट रसोई साफ कर लूं करना ही क्या है।
मृत्यु : मुझे बॉस (यम) बता रहे थे धरती पे सब बहुत काम करते हैं। 12 से 14 घंटे। कई जने तो 16 घंटे भी काम करते हैं वे बड़े मेहनती हैं पर आप तो 20 घंटे हर दिन काम करती हैं बिना किसी छुट्टी के ....
परिभाषा :  हां इस पर बाद में बात करेंगे। अभी काम खत्म कर लूं.......... हां हो गया। अब चल सकती हूं अरे कहां गए... कहां गए?
संजय : क्या हुआ, क्या बड़-बड़ा रही हो। यहीं तो हूं...
परिभाषा :  नहीं, मुझे लेने मृत्यु आई है।
संजय :  हां .. हां .. दिन भर घर में खाली बैठी रहोगी और उटपटांग प्रोग्राम देखोगी तो ऐसे ही सपने आयेंगे सो जाओ। मुझे कल ऑफिस जाना है दिन भर काम करके आओ रात में सपने सुनो।
परिभाषा :  हां घर में करती ही क्या हूं

Sunday, 28 October 2012

ईमानदारी का एक दीया

शादी शादी बोल बोल के शादी करवा दी। ऐसा हो रहा था जैसे मै शादी नहीं करती तो कयामत आ जाती। यार कोई  मैं दुनिया की पहली लड़की तो  होती नही बस सात फेरे  लेलो और जि़न्दगी भर सर फोड़ते रहो।
शान्त  गुडिया
क्या शान्त  जि़न्दगी तो मेरी बरबाद हो गयी आप लोगों के चक्कर में, मै बता रही हूं अब मैं उस भिखारी को और नहीं झेल सकती। मुझे डाईवोर्स चाहिए एट एनी कॉस्ट।
हां गुडिया हम डाईवोर्स लेंगे।
हद कर रही हो समझा नही सकती तो घर तो मत तोड़ो बेटी का।
ओह पापा  प्लीज आप मेरे मामले मे  चुप ह़ी  रही ये वो घर नही जेल है।
गुडिया इनके मुह मत लग इन्होने आज तक कभी हम लोगो का भला सोचा है? वर्मा की बेटी होती तो अभी तक वकील भी करवा   लिया होता और वो आर्य की बेटी के लिए पुलिस स्टेशन तुम ही गए थे। दुनिया वालों के लिए महान बना और घर के लोगों की परवाह नहीं.... ऐसा आदमी मिला है।
क्या बकवास है, आर्यजी की बेटी की बात अलग थी उसकी सास ने उसे मारने की कोशिश की थी इसलिए उनके संग खड़ा हुआ था और यहाँ ये हवा में लड़ के आई है।
अच्छा मतलब मेरी गुडिय़ा जब तक उन जाहिलों से पिट न जाये, जब तक उसकी चालाक सास उसे जलाये नहीं तब तक आप हाथ पर हाथ रखे टीवी देखते रहेंगे। एक अच्छे   पति तो कभी बने नही, एक अच्छे बाप तो बन जाओ।
अरे तुम शहीद होना बंद करो अपनी लड़ाई बाद में सुलझा लेंगे।
तुम से बात कर कौन रहा है, मैंने जो नरक भोगा है वो मैं अपनी बेटी को नहीं भोगने दूंगी, मै इसे भी अपनी तरह संस्कारों की भेंट नहीं चढऩे दूंगी। अब नारी अबला नहीं रही है। गुडिय़ा मैं तुझे  डाईवोर्स दिलवाउंगी चाहे मुझे इस इन्सान के खिलाफ खड़ा होना पड़े।
थैंक्स, लव यू आपने  मेरे लिए कभी मना नहीं किया ।
माँ हूं कोई ज़ालिम सास नहीं।
पागलपन  छोड़ो वो सिल्क का सूट नही मांग रही। अपने पति से तलाक मांग रही है।
मांगे मेरी जूती से मुह पर मारूंगी, बहुत मांग लिया उस भिखारी से। कुछ भी मंगलो न न न के अलावा कोई लफ्•ा नहीं निकला कभी। हर समय अभी नहीं बाद में पता नहीं उसका बाद कब आता मेरे मरने के बाद।
तुम्हें नहीं पता उसकी कितनी सेलरी है जो बच्चों की तरह कुछ भी कभी भी डिमांड करती रहती हो, क्या वो कहीं गलत जगह खर्च करता है?
वो करे या नहीं करे पर इतना तो दे कि घर चला सकूं। हर छोटी सी छोटी चीज के लिए मन को मारती रहूं।
मन को मारो नहीं। मन को समझाओ और काल्पनिक दुनिया से बहार आओ।
आप बस बाहर वाले का पक्ष लीजिये मै चाहे मर जाऊं।
मुझसे फिल्मी बातें तो करना मत, किसी का पक्ष नहीं ले रहा हूं बस बात समझाने की कोशिश कर रहा हूं। महंगाई हर क्षण बढ़ रही है  घोटाले बीमारी से ज्यादा तेज़ी से फैल रहे हैं।  इस समय तुम्हारा फर्ज है उस के साथ खड़ी रहो न की उस के सामने।
सब ऐश से रह रहे हैं हमारे अलावा।
गुडिय़ा कौन ऐश से जी रहा है? लगभग 80 करोड़ तो 2 वक्त की रोटी जुटा नही पा रहे हैं। और सरकार द्वारा उन्हें मध्य वर्ग का साबित करने के लिए कभी 25 तो कभी  35 कमाने वाले को मध्यवर्ग का घोषित कर दिया जाता है। आम आदमी सुन कर चुप हो जाता है क्योंकि अब वो भी जानता है नेताओं की घोषणा और वास्तविक जीवन में अंतर है।
गुडिय़ा इनसे बहस मत कर ये आदमी तो बेतुके तर्क देता रहता है। अगर कमा नहीं सकता था तो शादी ही क्यों की?
रोज 16-16 घंटे तुम काम नही करती हो वो ही करता है ।
ऐसे काम का क्या फायदा जिससे घर भी न चल सके।
तो क्या डाका डाले ?
डाका नहीं डाले कम से कम  एनजीओ खोल के अपाहिजों की बैसाखी तो छीन  सकता है, बीमारो की दवईयों में तो कमीशन खा सकता है। युवराज के जीजा को देखो कितनी जल्दी बिना इन्वेस्टमेंट के करोड़पति बन गया।
हे राम!
कोन राम...?
पुरुषोत्तम राम जिनके वनवास से लोटने के बाद से दिवाली मनाई जाती है ...
टिंग टिंग टिंग
पड़ोसी आ गये लगता है, दरवाज़ा खोलने दो
नमस्कार अंकल
नमस्कार बेटा
हम दिए लाये हैं इससे अंधकार मिटेगा और सतयुग का प्रकाश विद्यमान होगा....आप लेंगे ?
जरूर लूंगा 38 दे दो  हमारे घर और देश को इसकी अत्यंत आवश्यकता है
ये लो गुडिय़ा दिया घर में स्थापित करना, केवल लक्ष्मीजी को ही मत बुलाना सरस्वतीजी और विनायकजी को भी बुलाना, क्योंकि घर तब तक घर रहता है जब तक उस के सदस्यों को पैसे खर्च करने की विद्या हो और उसे सम्भालने का विवेक।
इसलिए मेरी गुडिया टीवी सीरियल और दिखावे की चकाचौंध के भ्रम में फंस कर अपने घर में अँधियारा मत करो। ईमानदारी के एक दिये से घर और संसार में प्रकाश फैलता है ।

Wednesday, 1 August 2012

देश मेरा फिर दहल गया

देश मेरा फिर दहल गया ।
किसी के लिए चार धमाके हुए ।।
किसी के लिए ब्रेकिंग न्यूज़ बनी ।
किसी के लिए रियलटी  शो  शुरू  होगया ।।
किसी के लिए फेसबुक का स्टेटस हुआ ।
किसी के लिए ट्विट हुआ ।
किसी के लिए व्यपार होगया ।।
किसी के लिए राजनिति का मंच  हो गया ।

सब चल रहें है।
क्योकि  जीवन चलने का नाम है ।।
पर ना जाने क्यों ?
मुर्ख रसोई ये ना समझ पाई,
अभी भी किसी के इंतजार मे ना चलती है ना जलती है !!

Wednesday, 27 June 2012

नई शुरुआत

प्यारे पापा,
सॉरी जो मैंने जन्म लिया और आप की तकलीफों का कारण बनी ये आखरी मेल  लिख रही हू आज के बाद ना मैं कष्ट में होउंगी ना आप को आसुओं से सराबोर मेसेज करुंगी।
पापा मैं बहुत थक गयी हूं व टूट गयी हूं। अब मुझ मे जरा सी भी हिम्मत नहीं बची है कि समझ और परिवार के बारे मे कुछ सोच सकूं। सच्ची पापा अब थक गयी।
पापा जो करने जा रही हू पता नहीं सही है या गलत पर अब करके ही रहूंगी। शादी के बाद पहली बार कोई निर्णय लेने की हिम्मत हुई है अब नहीं सोचुंगी बस करके रहूंगी।
9 साल से खौफ के साये में मरे जारही हूं सुबह आंख खुलती है तो सिहर जाती हूं की आंख क्यों खुल गयी। अब फिर घर के काम का डर, नाश्ते से रात्रि भोज तक मे कुछ गलत ना हो जाये नहीं तो बेल्ट फिर काली से लाल हो जाएगी। पापा भूखे पेट खाली रात खा के सोना आसान नही होता। जि़न्दगी कचोटने लगती है। ऐसा लगता है दिन जल-जल के रात हो गई है और फिर लगता है दिन नही जि़न्दगी रात हो गयी है। अब शारीर और आत्मा साथ नही दे रहा है इसलिए पति को परमेश्वेर से मिला रही हू जैसे मे भी ख़ुशी से कह सकूं मेरे पति परमेश्वेर  हो गये।
पापा आज पति का जीवन मुक्त कर के आराम से भय मुक्त सोउगी  और कल से नया जीवन शुरू करुंगी इसलिए अगर आप ये मेल सुबह-सुबह पड़े तो प्लीज जगाइएगा नहीं जब उठुगी तो अपने आप पुलिस को बुला लूंगी।

आप की सदा
करुणा

Sunday, 18 December 2011

उधारी बंद


इच्छा – उठो, उठो। क्या सरकार की तरह हर समय सोते रहते हो। कभी तो कुछ काम भी कर लिया करो।
विकास – उठ गया भाग्यवान। सो नहीं सोच रहा था, विश्वास रखो।
इच्छा – एक बार विश्वास किया तो अभी तक भुगत रही हूं, वैसे किसी ने सही ही कहा है, विश्वास में ही विष का वास होता है।
विकास – क्या बोल रही हो?
इच्छा – बस। उठो। बिजली का भी बिल नहीं भरा है। अंधकार में जी रहे हैं। उफ! फिर सो गए। पूरे नेता हो गए हो। कितना भी सुना लो कोई असर नहीं।
विकास – क्या?
इच्छा – कुछ नहीं। सो जाओ।
विकास – सोया कहां हूं? चाय पिला दो।
इच्छा – घर में चाय की पत्ती भी नहीं है।
विकास – चाय नहीं तो उठूंगा कैसे?
इच्छा – जिस तरह से तुम घर को देश की तरह चला रहे हो, एक दिन हम भी उठ जाएंगे…
विकास – गरम पानी ही पिला दो, शायद उससे ही स्फूर्ति आ जाए। ये पानी भी क्या गजब चीज है? ऐसा लगता है कि ईश्वर ने हम लोगों के लिए ही बनाई है। हल्दी डाल दो तो दाल का काम करती है, वैसे ही पी लो तो चाय का काम करती है।
इच्छा – उफ! रुको लाती हूं। प्लीज अब मत सो जाना।
विकास – नहीं भाग्यवान नहीं। मेरी मजाल कि तुम्हारे रहते चैन की नींद ले लूं।
इच्छा - ये लीजिए, पीजिए और प्रवीण के यहां से सामान ले आइए जल्दी।
विकास – जल्दी ही जा रहा हूं। अब पानी भी चैन से पीने दोगी कि नहीं? गरम पानी में भी किट-किट। लाओ थैला लेकर आओ।
इच्छा – थैला किसलिए? किस जमाने में हैं आप? इसलिए कहती हूं कि कभी कभार घर का काम करते रहेंगे तो पता चलेगा कि महंगाई आबादी की तरह हर पल बढ़ रही है।
विकास – अरे यार! हर समय पत्रकारों की तरह उट पटांग मत बोला करो।
इच्छा – वो कागज की पुडिय़ा देगा, लेकर आ जाइएगा। अब जाइए।
विकास – आता हूं।
इच्छा – ठीक से जाइएगा। बच्चे क्रिकेट खेलते हैं बॉल न लग जाए। सड़क पर ध्यान रखिएगा। कार या बस न टक्कर मार दे। किसी पेड़ या किसी इंसान से मत टकरा जाना…..
(टहलते हुए हम प्रवीण की दुकान पर जा पहुंचे)
प्रवीण – अंकल जी नमस्कार।
विकास – खुश रहो।
(हम सदा बड़प्पन दिखाते हैं और आशीर्वाद दे देते हैं। कभी भी हम दान पुण्य में पीछे नहीं रहे)
प्रवीण – अंकल जी क्या सेवा करुं?
विकास – ये लो आपकी आंटीजी ने लिस्ट दी है। संडे को भी घर की ड्यूटी करते हैं।
प्रवीण – हा..हा…ह.ह.
विकास – अब लाद के ले जाएंगे घर।
प्रवीण – अरे कैसी बात कर दी। मैं किसी लड़के को भेज दूंगा।
विकास - अरे… ठीक है।
प्रवीण - अंकल जी एक बात पूछनी थी और समझनी थी।
विकास – पूछो।
प्रवीण – ये एफडीआई से मेरी परचून की दुकान बंद हो जाएगी क्या?
विकास – हा.. हा.. ह.ह. नहीं बंद क्यों होगी? तुम्हे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। जो अच्छा काम करेगा उसका व्यापार अच्छा चलेगा।
प्रवीण – हं.. पर विदेशी कंपनियां तो काफी बड़ी होंगी।
विकास – हां तो उससे क्या?
प्रवीण – वो तो अधिक तादात में सामान खरीदेंगी। तो उन्हें सस्ता मिलेगा।
विकास – हां.. तो तुम भी खरीदो।
प्रवीण – हं.. टीवी वाले बोल रहे थे.. वो पांच-छह साल तक नुकसान सह सकती हैं।
विकास – हां.. तुम भी मुनाफा कम कर देना। बदमाश.. कितना कमाया है तुमने हमसे।
प्रवीण - अंकल जी .. पर वो तादात में लेंगे तो उन्हें वैसे ही सस्ता मिलेगा। उसमें भी वे कम दाम में बेचेंगे तो मैं किस दाम पर बेचूं्ंगा?
विकास – तुम भी उनकी तरह प्रोफेशनल हो ना… इससे तुम्हें भी फायदा होगा… हम जैसे ग्राहकों को भी। मेरी मानो किताबें पढ़ा करो। ज्ञान मिलेगा। प्रोफेशनल हो जाओ। भविष्य के लिए अच्छा होगा।
प्रवीण – हं..
विकास - अब हं छोड़ो… सामान घर पर पहुंचवा देना..
प्रवीण – विकास पहले की उधारी चुकाओ प्लस होम डिलीवरी चार्ज भी लगेगा।
विकास – अंकलजी से सीधे विकास.. और उधारी भी बंद? बेटा उधार बंद होगा तो घर कैसे चलेगा…
प्रवीण – आपने ही तो कहा, प्रोफेशनल हो जाओ…
विकास – हूं..
(प्रवीण प्रोफेशनल हो गया और हम इमोशनल हो गया)

Saturday, 15 October 2011

दस के चार

अहा.. एक और नई सुबह एक और नया दिन। एक और नया दिन संघर्ष के लिए बुलाता हुआ। मैं तैयार नहीं था शारीरिक तौर पर। मानसिक रूप से तो मैं कल रात से ही तैयार था। मेरा शरीर टूट रहा था। दिमाग दर्द फटा जा रहा था। बस एक ही शक्ति थी जो मुझे प्रेरित कर रही थी, वो थी राकेश की पढ़ाई। शायद इसलिए ही लोग ऊपर वाले की ताकत पर यकीन करते हैं कि वो निढाल शरीर से भी काम करवा सकता है। भविष्य का सपना दिखाके। यही सोचते हुए कि राकेश का ये आखिरी साल है, फिर आराम से उम्र कट जाएगी, जो बची हुई है। मैं अपना एकमात्र प्रिय बैग कंधे पर डालकर लोकल ट्रेन में चढ़ गया। और 10 रुपए में चार बॉलपेन बेचना शुरू कर दिया। इसमें ज्यादा कमाई तो नहीं थी पर गुजारा चल जाता था। इतने सालों से ट्रेन में बेचता आ रहा हूं कि कई तो हर तनख्वाह पर मुझसे ही पेन खरीदते थे। उनमें से कई लोग मुझे बहुत अच्छे लगते हैं, क्योंकि उनको मैंने अपनी आंखों के सामने बढ़ते देखा है। स्कूल से कॉलेज और अब ऑफिस उसी लोकल ट्रेन में। पर कई बार बड़ा दुखी होता था, जब बच्चे कई बार अपने आपको और माता-पिता को कोसते थे। कभी पूछो तो भरी हुई आवाज से कहते थे कि हमें पढ़ाया ही क्यों? हमें बचपन से कोई काम क्यों नहीं सिखाया। कम से कम सपने तो दफन हो जाते बचपन में और एक मंत्रमुग्ध करने वाली मुस्कान दे देते। मुझे गुस्सा आता पर मैं व्यक्त करता। कहीं मेरे हाथ से बंधे हुए ग्राहक न चले जाएं, क्योंकि हर (स्वार्थी) इंसान की तरह मुझे अपने जीवन से ज्यादा अपने ग्राहक प्यारे थे। और जो भी हो उनका अपना मामला है, मुझसे तो अच्छे से ही बात करते हैं। 10 रुपए के चार पेन .. 10 रुपए के चार पेन .. 10 रुपए के चार पेन … बोलते-बोलते रात की आखिरी लोकल ट्रेन से मैं आ गया कोलीवाड़ा। यही मेरी 10 बाय 10 की खोली है। हम सात दोस्त इसमें रहते हैं। बाहर के लोगों के लिए छोटी हो सकती है। पर हमारे लिए नहीं। यहां पर सात लोगों के सात परिवारों के सात सपने रहते हैं। जिसे खाली पेट में भी खोली बड़ी हसीन नजर आती है। बस यही अफसोस है 35 सालों में भी ये खोली घर नहीं बन पाई, क्योंकि हममें से कोई अपने परिवार के साथ नहीं रहता। मैं तकरीबन 15 साल का था, जब नौकरी करने बॉम्बे आया था। क्योंकि तब हमारे गांवों में काम नहीं था और आज भी। सच कहूं तो मैं यहां पर साहब बाबू बनने आया था, पर जब यहां आया तो पता चला कि 10वीं पास यहां चपरासी भी नहीं बन सकता। इसलिए मैं अपने लाल (राकेश) को कॉलेज करवा रहा हूं, वो भी बीएससी। जी हां बीएससी मैंने राकेश को आखिरी बार जब देखा था तो मात्र तीन महीने का था। उसके बाद मौका ही नहीं मिला। पैसे जोड़ते-जोड़ते आज वो बीएससी के आखिरी साल में आ गया। लेकिन ऐसा नहीं है कि मैं उसे नहीं जानता। वो लगातार खत भेजता रहता है और बताता रहता है कि हर दिन वो बड़ा हो रहा है और अम्मा बूढ़ी। चलिए यह बात यहीं खतम करता हूं, आंख में कुछ गिर गया है।
एक साल बाद-एकदम से ट्रेन रुकी और मेरा बेटा उतरा। आते ही उसने मेरे पैर छुए। और मुझ मूर्ख को समझ ही नहीं आया कि क्या करूं। मैं स्तब्ध खड़ा रहा। तीन महीने बच्चे से युवा का सफर कैसे निकल गया। और मैं देख भी न पाया। फिर दूसरे ही दिन से राकेश नौकरी ढूंढऩे लग गया। उसे मिलेगी। जरूर मिलेगी। क्योंकि नहीं मिलेगी। आखिर उसने बीएससी पास की है। बिल्कुल मिलनी चाहिए। वो थोड़ा परेशान रहने लगा है, मैं नहीं। मुझे यकीन है कि उसे नौकरी मिलेगी। मैं बिल्कुल भी चिंतित नहीं हूं। आज नहीं तो कल तो अवश्य ही उसे नौकरी मिल जाएगी। आखिर इतने सालों का संघर्ष हमारा व्यर्थ थोड़े ही जाएगा व ऊपर वाले के यहां देर है अंधेर थोड़े ही है। वह हमारे लिए भी कुछ करेगा। लेकिन अब कर ही दे। आंखों में मोतियाबिंद हो गया है। आंखें पूरी सफेद हों उससे पहले राकेश की नौकरी तो देख लूं। दिन से महीने हो गए हैं अब तो मुंबा देवी नौकरी तो दिला दें ये प्रार्थना कर सोच ही रहा था कि एक आवाज आई। बेहतरीन ऑफर, लाजवाब ऑफर। मुंबई में पहली बार 10 रुपए के पांच पेन। जी हां 10 के पांच पेन। एक बार लीजिए और पांच साल तक लिखिए। उस सख्श की आवाज में जोश था। जो शुरू में मेरी आवाज में हुआ करता था। मेरी अंदर जिज्ञासा जागृत हुई कि ये सख्श कौन है। भीड़ में से दूसरी तरफ देखा तो राकेश खड़ा पेन बेच रहा था। एकदम से चक्कर आया मैं और हमारे सपने कट गये….

चित्र www.google.com से लिया गया है।

Monday, 14 February 2011

हमारा भी

विनती - हैप्पी वेलंटाइन डे।
प्रयास
- हैप्पीजी तो सिंह थे, वेलंटाइन कब से हो गए?
विनती - उफ्फ! गलती हो गई।
प्रयास - गलती नहीं, ये तो पाप है। मैं तो धर्म परिवर्तन के बिल्कुल खिलाफ हूं..
विनती - अरे बाबा! किसी ने धर्म नहीं बदला है।
प्रयास - तो फिर हैप्पीजी को सिंह से वेलंटाइन क्यों बना दिया? किसी के लिए ऐसी बात करना अच्छी बात नहीं है।
प्रगति - हे.. हे! पापा! यू आर वेरी स्वीट.. मम्मी सही में आपने हैप्पी अंकल को बदनाम कर दिया, अभी तक तो मुन्नी ही बदनाम थी।
प्रयास - ये मुन्नी कौन है, और बदनाम क्यों हुई?
प्रगति - बस, हो गई... पापा अब मैं काम पर जा रही हूं..
प्रयास - विनती ! बच्ची कॉलेज पढऩे जाती है या काम करने? हर समय यही कहती है कि काम करने जा रही हूं तो पढऩे कब जाती है?
विनती - शाम को आएगी तब पूछ लेना, अभी 1200 रुपए दो।
प्रयास - हां पूछूंगा, पर 1200 रुपए किस बात के?
विनती - बच्ची के लिए ड्रेस खरीदी थी, घर के खर्चे में से।
प्रयास - क्या? क्यों? नये साल पर तो ली थी!
विनती - उफ्फ! कितने सवाल करते हो? वो न्यू इयर की पार्टी के लिए ली थी और ये वेलंटाइन की पार्टी के लिए।
प्रयास - अरे हर महीने इतने महंगे-महंगे कपड़े खरीदे जाएंगे क्या?
विनती- हर महीने नहीं। वो दिसंबर था और ये फरवरी है।
प्रयास - हां, एक महीने ही तो हुआ है, दिसंबर वाला ही पहन लेती।
विनती - कोई बच्चा त्यौहार पर पुराने कपड़े नहीं पहनता है।
प्रयास - हम तो पहनते हैं, और आज कौन सा त्यौहार है?
विनती - कोई सा नहीं, 1200 रुपए के लिए मैं अपना दिमाग नहीं चटा सकती...
प्रयास - चटा लो, कम से कम महंगाई के बहाने ही सही, बात तो कर रहे हैं। वरना उठो, चाय ले लो, नहा लिए?, टिफिन ले लो, आराम से जाना। आ गए, पानी ले लो, खाना खा लो, कितना टीवी देखोगे, सो जाओ, सुबह ऑफिस जाना है। इन चंद लाइनों के अलावा तो हमारे जीवन में कोई बात ही नहीं रह गई है।
विनती - ओहो! अब जाओ ऑफिस मुझे काम है।
प्रयास - चलता हूं। और सुनो आज शाम को जल्दी आऊंगा। आते वक्त आधा किलो प्याज लाऊंगा। मिलकर प्याज पकौड़े बनाएंगे और खाएंगे।
विनती - इतना खर्च क्यों?
प्रयास - क्यों? आज हैप्पीजी का ही नही हमारा भी तो वेलंटाइन डे है।