मम्मी सो रहा हू ,गुड नाईट
गुड नाईट अददु
आदित्य सो रहें हो
हाँ
कब तक सोगे ?
ओह बाउजी सोने दो ना क्यों नींद खराब कर रहें हो ।
अच्छा आप की नींद खराब हो रही है यहाँ हमारा बलिदान व्यर्थ हो रहा है।
हद है, तमीज़ से बात कर रहा हूँ तो सर पे चढ़ रहें हो।
मम्मी भी किसी को भी नौकर रख लेती है।
सुनो अगर रूम से अभी नही गये तो मै अभी के अभी काम से निकाल बाहर करूंगा ।फिर चाहें कितना भी रो नही रखूंगा, समझ जाओ और रूम से बाहर निकलो और दरवाज़ा बंद कर के जाना।
आदित्य कौन सा दरवाज़ा? ये लकड़ी का दरवाज़ा तो मै बंद करदूंगा पर तुम्हारे मस्तिष्क का दरवाज़ा कौन खोलेगा?
यही प्रॉब्लम है तुम नौकरों के साथ इज्ज़त दे दी तो हज़म नही हो रही है।
आदित्य मै नौकर नही हू मै चौरसिया हूँ व भारतीय हर किसी से तमीज़ से ही बात करते है,हम अँगरेज़ नही है जो छोटा बड़ा करे।
ओये नौकर का नाम नही होता उसे नौकर ही कहते है हिंदी समझ नही आ रही हो तो सुन सर्वेंट, अब गले ना पड़।
आदित्य तुम्हे अपने शब्द स्वयं सुनाई नही देते,सभ्य समाज के हो तो भाषा पर नियंत्रण रखो। रही नौकर की बात तो ये स्पष्ट कर दू कोई तुम्हारा नौकर नही है वो तुम्हारे सहायक है इसलिए क्यों की तुम स्वयं काम करने में सक्षम नही हो,और मै नौकर नही स्वतंत्रता सेनानी हूँ।
क्या
क्या हुआ आदित्य पहली बार ये शब्द सुना?
नही कई बार भाषणों मै सुना है और कई बार पार्टियों मै भी यूज़ कीया है,यार तुम वो नही हो सकते।
क्या नही हो सकता आदित्य
वही जो तुम ने कहा
आदित्य मै स्वतंत्रता सेनानी क्यों नहीं हो सकता और तुम यदि नहीं मानो तो मुझे कोई फरक नहीं पड़ता क्यों की मुझे किसी प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है।
वो बात नही है पर तुम्हारा नाम कभी सुना भी तो नही।
आदित्य तो मत मानो वैसे तुम ने कितने स्वतंत्रता सेनानियो के नाम सुने या पढ़े है?
ह्म्म्म ४-५
शाबाश
नही अराऊंड १०-१५ बट नोट श्युर
अच्छा तो तुम्हे लगता है २०० साल की गुलामी में सिर्फ १०-१५ ही स्वतंत्रता सेनानी थे,आज़ादी कोई पदक नही थी जो चंद लोग गये और जीत कर ले आये।
अरे भड़क क्यों रहे हो?
नही आदित्य भड़क नही रहा हूँ बस हास्य पूर्ण लगता है की आज़ाद युवा में बस इतनी समझ है की किसी ने कुछ कह दिया और उसी को मान लिया।
अरे जो देखेगे वही तो मानेगे।
आदित्य मस्तिष्क जैसी चीज़ इश्वर ने हमे केवल रखने के लिए नही दी है।
क्या
कुछ नही
नही अब जो बोलना है बोल दो ,नींद तो खराब कर ही दी।
बस यूं ही धरती पे आज़ाद भारत को देखने आया था पर अब अफ़सोस हो रहा की क्यों आया।
तुम लोग इतना अफ़सोस क्यों करते हो ,हर समय रोना रोना।
आदित्य किस बात पर खुश हूँ की लाखो शहीदों ने जिन्हें निकालने के लिये अपना कण कण अर्पण कर दिया आज वो फिर मेरी धरती पर अपनी महारानी का सन्देश सुना के हमारे बलिदान पर सवाल उठा रहें है। चलो हमने जो क्या उसे छोड़ भी दे फिर भी आप सब को आत्मग्लानी क्यों नही हो रही है की आज़ाद भारत राष्ट्रमण्डल खेलो मै खेल रहा है?
पर आत्मग्लानी क्यों हो?
आदित्य राष्ट्रमण्डल खेल १९३० में हेमिल्टन शहर, ओंटेरियो, कनाडा में आयोजित किए गए और इसमें ११ देशों के ४०० खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया। तब से हर चार वर्ष में राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन किया जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इनका आयोजन नहीं किया गया था। इन खेलों के अनेक नाम हैं जैसे ब्रिटिश एम्पायर गेम्स, फ्रेंडली गेम्स और ब्रिटिश कॉमनवेल्थ गेम्स । वर्ष १९७८ से इन्हें सिर्फ कॉमनवेल्थ गेम्स या राष्ट्रमंडल खेल कहा जाता है। आज जब हम आज़ाद है फिर हमे इन खेलो में क्यों हिस्सा लेना चहिये हम किसी के अधीन नही है जो उनके गुलामो की पंक्ति मै खड़े रहें उनकी रानी का सन्देश सुने।
उफ़ क्यों भाग ना ले हम कुछ ना कमाये $१८०० का खेल हम ने $७०,००० का करवा दिया,पहले गोरो ने नोचा अब हमारी बारी है।
अददु उठो सुबह होगयी
अंग्रेजो को शहीदों ने भगाया और इन्हें कौन भगायेगा ..........
चित्र www.google.com से लिया गया है।
Tuesday, 12 October 2010
Saturday, 2 October 2010
आज नहीं तो कल
आज नहीं तो कल,
मैं भी मोक्ष प्राप्त करूंगा।
इस जीवन रूपी दुनिया को छोड़,
कहीं दूर चला जाऊंगा।
आज नहीं तो कल,
मैं भी क्षितिज पार करूंगा।
विवेक की मशाल जला,
परमात्मा में मिल जाऊंगा।
आज नहीं तो कल ,
मैं भी पूजा जाऊंगा।
पत्थर की मूरत बना,
कहीं कोने में खड़ा कर दिया जाऊंगा।
आज नहीं तो कल.....
चित्र www.google.com से लिया गया है।
मैं भी मोक्ष प्राप्त करूंगा।
इस जीवन रूपी दुनिया को छोड़,
कहीं दूर चला जाऊंगा।
आज नहीं तो कल,
मैं भी क्षितिज पार करूंगा।
विवेक की मशाल जला,
परमात्मा में मिल जाऊंगा।
आज नहीं तो कल ,
मैं भी पूजा जाऊंगा।
पत्थर की मूरत बना,
कहीं कोने में खड़ा कर दिया जाऊंगा।
आज नहीं तो कल.....
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