Tuesday, 9 September 2025

नेपाल : संयोग की आड़ में प्रयोग?

 नेपाल की धरती बीते 48 घंटों में जिस उथल-पुथल से गुज़री, उसने पूरे दक्षिण एशिया को चौंका दिया। महज़ सोशल मीडिया बैन से उपजा जनाक्रोश इस सीमा तक पहुँच गया कि प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को देश छोड़कर भागना पड़ा, संसद भवन धधक उठा और पूरी व्यवस्था चरमरा गई। प्रश्न उठता है—क्या यह केवल युवाओं का स्वतःस्फूर्त विद्रोह था या किसी गहरे प्रयोग की परिणति?


एशिया में अस्थिरता का पैटर्न

यदि हाल के वर्षों पर दृष्टि डालें तो एक स्पष्ट पैटर्न दिखाई देता है—

  • 2021 : म्यांमार में आंग सान सू की की सरकार गिरती है।
  • 2022 : श्रीलंका में राजपक्षे सत्ता से भागते हैं।
  • 2024 : बांग्लादेश में छात्र-आंदोलन शेख हसीना को सत्ता से बाहर कर देता है।
  • 2025 : नेपाल की सत्ता मात्र दो दिनों में भरभराकर गिर जाती है।

क्या यह सब केवल संयोग है?

आचार्य चाणक्य का संकेत

आचार्य चाणक्य नीति (अध्याय १०, श्लोक ६) में कहते हैं—

“अनपेक्षितं यद्भवति तत्तत्र दैवसंयोगः।
यत्र पुनः पुनः लाभः स यत्नप्रयोजनः॥”

(अर्थ: जो घटना अप्रत्याशित रूप से घटित हो, वह संयोग या दैवयोग कहलाती है; किन्तु जहाँ बार-बार समान प्रकार का लाभ किसी पक्ष को होता है, वहाँ यह समझना चाहिए कि उसके पीछे निश्चित ही प्रयत्न और प्रयोजन—षड्यंत्र या योजना—छिपी है।)

एशिया में छोटे देशों की बार-बार अस्थिरता—कभी चीन-निकट सरकार गिरती है, कभी अमेरिका-विरोधी नेतृत्व हटता है—क्या चाणक्य के इस सूत्र को प्रमाणित नहीं करती?

डीप स्टेट और रंग-बिरंगे आंदोलन

आजकल “डीप स्टेट” शब्द बहुत प्रचलित है। यह वही अदृश्य तंत्र है जिसमें खुफ़िया एजेंसियाँ, बड़े कॉर्पोरेट, अंतरराष्ट्रीय एनजीओ और मीडिया मिलकर किसी राष्ट्र की राजनीति को अपनी दिशा में मोड़ते हैं। पश्चिम इसे कलर रिवोल्यूशन कहते हैं।

  • जॉर्जिया का रोज़ रिवोल्यूशन,
  • यूक्रेन का ऑरेंज रिवोल्यूशन,
  • हांगकांग का अम्ब्रेला मूवमेंट—

इन सबमें युवाओं को सोशल मीडिया के माध्यम से संगठित कर लोकतंत्र के नाम पर सत्ता परिवर्तन कराया गया। नेपाल की हाल की हलचल भी वैसी ही प्रतीत होती है।

बांग्लादेश और नेपाल : अद्भुत समानता

2024 में बांग्लादेश का छात्र-आंदोलन भी एक छोटे ट्रिगर—कोटा प्रोटेस्ट—से शुरू हुआ था। कुछ ही सप्ताह में वह भयंकर रूप लेकर शेख हसीना सरकार को निगल गया। नेपाल में भी चार सितंबर को अमेरिकी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाया गया, और देखते-देखते 8-9 सितंबर को संसद पर हमला हो गया। दोनों जगह आंदोलन लीडरलेस और विकेन्द्रित (डिसेंट्रलाइज्ड) रहे, परंतु संगठन और समन्वय अद्भुत।

क्या यह महज़ संयोग है कि हर जगह परिणाम वही निकला—सरकार का पतन, सत्ता का परिवर्तन और विदेशी हितों का साधन?

भारत के लिए चेतावनी

भारत के चारों ओर का भू-राजनीतिक परिदृश्य अस्थिरता से भरा हुआ है—पाकिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार, बांग्लादेश और अब नेपाल। प्रश्न यह है कि क्या यह अस्थिरता केवल आंतरिक विफलताओं का परिणाम है या भारत-विरोधी शक्तियों का सुनियोजित प्रयोग?

भारत का लोकतंत्र मज़बूत है, सेना और संस्थाएँ सुदृढ़ हैं। परंतु इतिहास गवाह है कि बड़ी शक्तियाँ जब छोटे देशों को मोहरे की तरह खेल सकती हैं, तो भारत को भी अस्थिर करने की कोशिशें असंभव नहीं। ऐसे में भारत को केवल अपनी सीमाओं पर ही नहीं, बल्कि पड़ोसियों में स्थिरता सुनिश्चित करने में भी सक्रिय भूमिका निभानी होगी।

आगे का मार्ग

नेपाल के युवाओं की माँगें जायज़ हो सकती हैं—भ्रष्टाचार और दमनकारी नीतियों का विरोध स्वाभाविक भी है—परंतु संसद भवन को आग लगाकर, अपने ही संसाधनों को नष्ट कर, कोई भी राष्ट्र मज़बूत नहीं बनता। आंदोलन तभी सार्थक होते हैं जब वे राष्ट्र-निर्माण की दिशा में ले जाएँ, न कि राष्ट्र-विनाश की ओर।

नेपाल को आज ठहरकर सोचना होगा कि वह स्वतंत्र भविष्य का निर्माण करना चाहता है या किसी विदेशी शक्ति की चालों में मोहरा बनना।

भारत को भी सजग रहना होगा, क्योंकि यह केवल नेपाल का संकट नहीं—यह पूरे दक्षिण एशिया की स्थिरता की परीक्षा है।

अंतिम बिंदु

नेपाल की यह उथल-पुथल क्या केवल संयोग है या किसी गहरे प्रयोग का परिणाम? चाणक्य का सूत्र हमें सचेत करता है कि जब घटनाएँ बार-बार एक ही दिशा में लाभ पहुँचाएँ, तो यह समझ लेना चाहिए कि उसके पीछे किसी की योजना, किसी का प्रयोजन और किसी की साजिश अवश्य है।

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