पत्रकार बेटी उठो और भाई की कमीज़ प्रेस कर दो।
रिचा - माँ अभी प्रेस करती हू, पर मुझे प्रेस नही ज्वाइन करनी है।
क्या प्रेस नही ज्वाइन करनी ?
रिचा - जी हाँ` मैं पत्रकार नहीं बनना चाहती।
क्यों इतने संघर्ष के बाद तो सपना सच होता दिख रहा है।
रिचा - माँ सपने और हकीकत मे अंतर होता हैं।
मेरी बेटी ऐसा मत कह, मैं तुझे अपने पैरो पर खड़ा देखना चाहती हूँ।
रिचा - मैं पत्रकार बन भी गयी तो इस का अर्थ ये तो नहीं की मुझे आज़ाद ज़मी मिल जायेगी, मुझे निर्णय लेने की अनुमति मिल जायेगी।मुझे यकीन है जिस दिन मैंने निर्णय लेने का सोचा भी तो मुझे निरुपमा की तरह लटका दिया जाएगा।और कहा जाएगा इस ने नारी हो के निर्णय लेने जैसा जघन्य अपराध कीया है।
रिचा तू प्रेम विवाह का सोच रही है?
रिचा - माँ प्रश्न प्रेम विवाह का नहीं, प्र्श्न अपना निर्णय स्यंव लेने की आजादी का है।
रिचा होगा वही जो हम चाहेंगे।
रिचा - मैं जानती हूँ मुझे मत देने का अधिकार है निर्णय लेने का नहीं।मुझे बिलकुल भ्रम नहीं है की मुझे शिक्षा ज्ञान के लिये नही प्रणाम पत्र के लिये दी जा रही है, जिस से हम आधुनिक कहलायेंगे और मेरी शादी भी हो जायेगी।
तुझे लड़के की तरह रखा और तू ऐसे कह रही है।
रिचा - ये ऋण तो जीवन भर नहीं उतार सकती, यदि मुझ मे और भाई मे अंतर नही है तो फिर मेरे लिये अहसान का भाव क्यों है?
की लड़की होते हुए भी हम पड़ा रहे है, हम कितने महान है।
माँ यहाँ इच्छा, शिक्षा, स्वतंत्रता, निर्णय लेने की आज़ादी नहीं है। मूल लक्ष्य तो वही है ना पढ़ा लिखा के शादी करा दो। जो चंद मुझ जैसी भाग्यशाली लडकियों को पढाया जा रहा है, वो भी मात्र शादी के लिये वरना "क" से "किताब" भी नहीं पढाया जाता।
रिचा - माँ से मम्मी, मम्मी से माँम कहलवाने से, सलवार से जींस, जींस से स्कर्ट पहनवाने से कोई विकसित नहीं हो जाता। कहने का अर्थ सिर्फ इतना है - मुझे निर्णय लेने की स्वतंत्रता दीजिये, मुझ पर विश्वास कीजिये मैं सही निर्णय ले सकती हूँ और क्षितिज को छू सकती हूँ।
पापा - चुप, बिलकुल चुप - माँ को हैप्पी मदर्स डे कहो, ठीक से पढो पत्रकार बनो और शादी करो वरना प्रश्नों का अंत करना हमे भी आता है।
चित्र www.google.com से लिया गया है।
Saturday 8 May 2010
Saturday 1 May 2010
मज़दूर
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