एक राष्ट्रप्रेमी युवती — मात्र 22 वर्ष की आयु की शर्मिष्ठा पनोली — जिसने आतंकवाद के विरुद्ध अपनी वेदना व्यक्त की, बॉलीवुड की चुप्पी पर प्रश्न उठाए, और फिर अपने शब्दों के लिए सार्वजनिक क्षमा भी माँगी... उसे कोलकाता पुलिस ने 1500 किलोमीटर दूर से धर दबोचा। कारण? "धार्मिक भावना आहत" हुई थी।
परंतु प्रश्न यह है — किसकी भावना? और क्या केवल कुछ विशेष भावनाओं की ही अब न्याय व्यवस्था में गिनती है?
जिस व्यक्ति वजाहत खान ने उसके विरुद्ध शिकायत दर्ज कराई, अब वही व्यक्ति संदेह के घेरे में है। सात से अधिक शिकायतें, अनेक साक्ष्य, जिनमें हिंदू देवी-देवताओं, मंदिरों और परंपराओं के विरुद्ध अपमानजनक एवं उकसाऊ टिप्पणियाँ सम्मिलित हैं, उसके विरुद्ध प्रस्तुत हो चुकी हैं।
तो अब न्याय की तराजू किसके पक्ष में झुकी है?
अकेली छात्रा पर सत्ताशक्ति का प्रहार
शर्मिष्ठा कोई राजनीतिक व्यक्ति नहीं, कोई मंच संचालक नहीं, कोई प्रभावशाली तत्व नहीं। वह एक सामान्य भारतीय छात्रा है, जिसे पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद से क्षुब्ध होकर कुछ तीखे शब्द कह देना अपराध मान लिया गया। जबकि उसने स्वयं माफी माँग ली थी। उसने कहा — "मेरा उद्देश्य किसी धर्म का अपमान नहीं, केवल कायरता पर रोष था।"
पर यह स्वीकार्यता किसी को क्यों नहीं रुचाई?
क्यों? क्योंकि वह अकेली थी? संगठित नहीं थी? या इसलिए कि वह हिंदू थी?
जब हिंदू प्रतीक अपमानित हों — तब मौन क्यों?
आज जिन लोगों ने शर्मिष्ठा को बलात्कार की धमकी दी, नग्न चित्र बनाए, उन्हें सार्वजनिक मंचों पर अपमानित किया — वे सब अब भी स्वतंत्र घूम रहे हैं। उनके लिए कोई धारा 299 नहीं लगती, कोई गिरफ्तारी नहीं होती। वे "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" के झंडाबरदार हैं।
और वहीं एक बच्ची... जिसकी माफी भी किसी को संतोष नहीं देती। क्या यह एकतरफा न्याय नहीं?
क्या यही इस लोकतंत्र की रीति बन गई है — कि बहुसंख्यक हिंदू की भावनाएं केवल उपेक्षा योग्य हैं?
क्या यह वही भारत है, जहाँ भगवान शिव पर कटाक्ष करने वाले संसद में बैठे हैं, और देवालयों का उपहास करने वाले बुद्धिजीवी पुरस्कार पाते हैं?
वजाहत खान — कौन है यह शिकायतकर्ता?
जिसने शर्मिष्ठा पर धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप लगाया, उसी के सोशल मीडिया खाते से बार-बार हिंदू आस्थाओं को कलंकित करने वाली बातें सामने आई हैं। अब जब उसे घेरे में लिया गया है, वह अपना खाता लॉक कर चुका है, पोस्ट हटाए जा रहे हैं।
क्या यह सत्य नहीं कि यदि उसके स्थान पर कोई हिंदू युवक किसी अन्य धर्म पर ऐसा लिखता, तो वह अब तक कारावास में होता?
तो क्या अब इस देश की न्याय व्यवस्था का भी धर्म निर्धारण हो गया है?
अब निर्णय समाज को करना है
यह केवल शर्मिष्ठा का मामला नहीं, यह पूरे राष्ट्र का आइना है। यदि आज हम इस अन्याय पर मौन रहे, तो कल यह दमन और भी गहरा होगा।
हमें निर्णय करना होगा — क्या हम उस भारत के उत्तराधिकारी हैं, जिसकी आत्मा धर्म, न्याय और स्वाधीनता से पुष्ट थी? या हम एक ऐसा समाज बन चुके हैं, जहाँ तुष्टिकरण, डर, और राजनीतिक अवसरवाद ही नीति बन चुके हैं?
यदि कोई बालिका राष्ट्रविरोधी तत्वों पर आक्रोश प्रकट करे, तो वह बंदी है। और यदि कोई व्यक्ति हिंदू संस्कृति को कलंकित करे, तो वह "अभिव्यक्ति का अधिकार" भोगता है।
यह न्याय नहीं, यह भीषण अन्याय है। यह संविधान की आत्मा पर प्रहार है। यह माँ भारती के आँचल को अश्रुओं से भीगने को विवश करने वाला अपराध है।
जागो भारत!
यह समय है जागरण का, प्रतिकार का, और पुनः उस मर्यादा की स्थापना का जिसमें हर नागरिक को समान न्याय मिले।
अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब यह चक्र किसी और की ओर घूमेगा — और तब हम सब केवल तमाशबीन रह जाएँगे।
शर्मिष्ठा आज प्रतीक है — राष्ट्र की उस पीड़ा का, जिसे वर्षों से अनदेखा किया जा रहा है।
उसे मत देखो केवल एक लड़की के रूप में — उसे देखो भारत की बेटी के रूप में।
जो प्रतिकार कर रही थी — आतंकवाद का, कायरता का, और उस चुप्पी का जिसे "सहनशीलता" कहकर ढका गया है।
जय माँ भारती🙏🏽
शर्मिष्ठा आज प्रतीक है — राष्ट्र की उस पीड़ा का, जिसे वर्षों से अनदेखा किया जा रहा है।
ReplyDeleteउसे मत देखो केवल एक लड़की के रूप में — उसे देखो भारत की बेटी के रूप में।
Aap ne kai pahaluo ke upar prakash dala....Mai Sharmistha ke paksh me hu or usko pura samarthan deta hu....ak pakshi karyawahi ka virodh karta hu
ReplyDelete