Thursday, 17 April 2014

प्रतीक्षा



प्रतीक्षा राम-राम काकी कैसी हो ?

ऋणी - ज़िंदा हूं जी रही  हूं।
प्रतीक्षा -  क्या बात है आज के समय में ज़िंदा भी हो और जी भी रही हो...
ऋणी - अरे 15  लोकसभा देख चुकी हूं कोई धूप में बाल नहीं सफ़ेद किये हैं...
प्रतीक्षा - काकी आप तो सीरियस हो गईं...
ऋणी -  काश हुई होती तो इस उमर में 20 रूपये के लिए दिनभर पत्थर नही
तोड़ती। तुम क्या कर रही हो ?
प्रतीक्षा दिन भर  दफ्तरों के दरवाज़े पर सर मारती हूं रात में दीवार
पर  ही... ही... ही...
ऋणी -  मेरे राम कितने समय बाद किसी को हंसते हुए देखा है..
प्रतीक्षा - तो  मुझसे मिलती रहा करो और हंसते हुए देखती रहा करो
ऋणी - कल से संग चलेंगे तूं शहर चली जाया करना और मैं पत्थर तोड़ने .,..
प्रतीक्षा - ठीक,  विश्वास भाई साहब का कोई मुआवज़ा मिला ?
ऋणी -  नहीं अब उम्मीद भी नहीं है...
प्रतीक्षा क्यों क्या कहते हैं...?
ऋणी -  कुछ नहीं पहले कहते थे आत्महत्या जुर्म है, इसलिए नहीं दे सकते
फिर पिछले चुनाव में जब घोषणा हुई किसानों को मुआवज़ा मिलेगा। दफ्तर जाके
पूछा तो कागज पत्र मांगने लगे। वो किसी तरह दे दिया तो कहते हैं बुढ़िया
तुझे क्यों दें तेरे पास क्या प्रमाण है कि तू ही माँ है ?
प्रतीक्षा - नेता कहीं के
ऋणी -  राम-राम, कैसे शब्द का इस्तेमाल करती हैं..
प्रतीक्षा काकी ऐसे  ही हैं ये सब,  कृषि प्रधान देश को कुर्सी प्रधान
बना दिया ..
ऋणी - चल मन खट्टा ना कर,  तुम लोगों का बीपीएल कार्ड बना ?
प्रतीक्षा -  कहां काकी, कहते हैं बीपीएल कार्ड बहुत बांट दिए हैं ज्यादा
गरीबी दिखने लगी है, इससे राज्य की छवि खराब हो रही है। इसलिए राज्य को
विकसित करने के लिए अब हर गांव के लोगो कों बीपीएल कार्ड तभी देंगे जब
उस गांव से कोई बीपीएल कार्ड वाले तीन लोग मरेंगे...
ऋणी -  3 सालों में क्या अपने गांव में किसी को मुक्ति ही नहीं मिली है,
कितने नाम तो मैं बता दूं...
प्रतीक्षा क्या कहूं अब तो ये हालत हो गयी हैं कि गांव में कोई मुक्ति
पाता है तो उसके घर बाद में , सरकारी दफ्तर पहले जाती हूं... पर कोई न
कोई अड़ंगा लग जाता है।
ऋणी -  परेशान ना हो, बनने तक अमीर बनकर रहो...
प्रतीक्षा -   परेशान नहीं हूं, कई बार सोचती हूं मैं ही मुक्ति ले लूं..
शायद तब मां को ही बीपीएल कार्ड मिल जाए...
ऋणी - क्या अनापशनाप सोचती हो,  मैं 66 वर्ष की हूं तब भी साँस लेने के
लिए सुबह से शाम तक पत्थर तोड़ती हूं...
प्रतीक्षा - काकी गुस्सा न हो आप गीले चूल्हे में फूंक मारो मैं मां को
देखती हूं काफी रात हो गयी है अब अपने ही गाव में अपनों से ही डर लगने
लगा है।
ऋणी - हां ठीक से जा...
प्रतीक्षा -  हां, सुबह आती हूं, संग चलेंगे ...
ऋणी -  हां आना जरुर,

(दूसरे दिन सुबह)

प्रतीक्षा -  राम राम काकी, काकी राम राम... क्या हो गया अंदर जाकर
देखूं ....  काकी क्या हो गया उठो उठो...
अश्रु भाई काकी को मुक्ति मिल गयी है आप सब कुछ इंतज़ाम करो मैं आयी
 
और प्रतीक्षा बीपीएल कार्ड बनवाने के लिए दौड़ी...

Sunday, 12 January 2014

नेता...........भ्रम............जनता



नमस्कार नेताजी
नेताजी -खुश रहो भ्रम, खड़े क्यों हो बैठो
भ्रम - जी धन्यवाद
नेताजी - लोकसभा के चुनाव आ रहे हैं, जनता में माहौल बनाओ कि असली में हम ही नेता हैं
भ्रम - जी बिलकुल और सच्चाई भी यही है कि आप ही इस राज्य या ये कहिये इस देश के सब से बड़े  नेता हैं
नेताजी - तुम्हारी सच्चाई और ईमानदारी मेरे प्रति - प्रभावित करती है।लोकसभा के इलेक्शन जीतने के बाद तुम्हें जन कल्याण मंत्री बनाऊंगा, सोचो सब कहेंगे भ्रम हैं जन कलयाण मंत्री।
भ्रम - आप ने सोचा मैं इसी में तर गया, आप की जय हो नेताजी
नेताजी - जय तो मेरी ही होगी.....
भ्रम - जी सरकार...
नेताजी  - इस बार ठण्ड बहुत है
भ्रम - बहुत मै तो अंदर तक कांप रहा हूं
नेताजी - इतनी भी नही है
भ्रम - जी हां, सुबह अंदर तक कांप रहा था अभी तो कम है
नेताजी - राज्य में कुछ जीव मर गये हैं ठण्ड से, ये सच है क्या ?
भ्रम -  जी नहीं नेता जी, सब अफवाह है, आप के सुशासन को बदनाम करने के लिए। ठण्ड से कोई नहीं मरता है। हम भी तो इसी राज्य मे रह रहे हैं। वैसे भी ठण्ड से कोई मरता होता तो साईबेरिया में कोई बचता ही नही।
नेताजी - वही सोच रहा था, जरुर दुश्मनो कि चाल है। उमीद बाहर  देख धूप निकली क्या?
उमीद - जी ,नहीं आशा की किरण भी नहीं है
भ्रम- नेताजी रुकिए मैं देखकर आता हूं। इसे क्या समझ जनता कहीं का.....
नेताजी - हां हां शांत जन कल्याण मंत्रीजी
भ्रम- जो भी बन जाऊं रहूंगा तो आप का दास ही
नेताजी - तुम काफी आगे जाओगे
भ्रम - बस आप का आशीर्वाद रहे,  नेताजी बहार धूप है
नेताजी - अच्छा चलो बाहर बैठते हैं.
भ्रम- जी हां
नेताजी- मानव तुझे समझ नहीं है ?
मानव क्षमा....
ब्र्हम - चल काम कर, मूर्ख जनता कहीं का
मानव - जी
भ्रम - नेता जी कल एक अंग्रेजी गाना सुना बड़ा जबरदस्त था, क्यों न हम उसके अधिकार खरीदकर आपकी प्रशंसा का गाना बनाएं?
नेताजी - बिलकुल बहुत अच्छी सोच ऐसी सोच के लिए तुम जैसे समझदार लोगों की लिस्ट बनाओ और विदेशी यात्रा कर आओ अच्छे-अच्छे आईडिया लेके आओ लोकसभा मे इस्तेमाल करेंगे
भ्रम - जी आप जैसा कहें
नेताजी - इस यात्रा को नाम देंगे - स्टडी टूर. आखिर शिक्षा का प्रसार हमारा ही काम है।  जनता भी खुश हो जायेगी
भ्रम- बिल्कुल जनता तो खुश ही है। जिस तरह से आपने अपनी संस्कृति रक्षा के लिए भव्य  कार्य्रक्रम किया है,  वह तो अतुलनीय है
नेताजी - हम संस्कृति - शिक्षा  और जनता का ख्याल नहीं रखेंगे तो कौन रखेगा
मानव - सारा काम हो गया है, मैं 10 मिनट में अपनी बेटी भुखमरी को देख के आ जाऊं?
नेताजी - हां जा पर 10 मिनट में नहीं आयी तो देखना.......
मानव- जी
भ्रम - बडा काम चोर है....
नेताजी - हां बडा, पर मेरा दिल बड़ा दयालू है इसलिए इन सब की कामचोरी नज़रअंदाज़ कर देता हूं
भ्रम- आप तो माहन हैं
नेताजी - हा वो तो हूं ही

नेताजी कि जय हो
भ्रम - कौन है क्यों चिल्ला रहा है ..?
मैं जनता सरकार... ठंड लग रही है, कुछ दे दीजिए
भ्रम - नेताजी ये विपक्षी पार्टी का है जान बूझकर मांग रहा है।  जैसे दुनिया को बताये कि जनता परेशान है
नेताजी - सही कहा भ्रम, हमारे राज्य में सब खुश हैं समृद्ध हैं... देखा नही था अपने कार्यक्रम में सब कारो में आए थे ......
भ्रम - जी,  मार के भगाता हूं.
नेताजी - नहीं, मैं बात करता हूं क्या पता कोई टीवी चैनल  वाला छुपा हो
भ्रम - सही
नेताजी - क्या है, क्यों चिल्ला रहे हो?
जनता - नेताजी की जय हो, बड़ी ठण्ड है कुछ मेहरबानी कीजिये...
नेताजी हमारे लिए भी तो ठण्ड है.. घर जाओ और सो जाओ जैसे राज्य कि जनता सो रही है
जनता - सरकार मेरा घर जला दिया गया
भ्रम - क्यों बे सब तेरे साथ ही क्यों हो रहा है ?
जनता - पता नहीं...
नेताजी - पता नहीं मक्कार  सड़क पर आकर हमारी सरकार को बदनाम करता है, जा यहाँ से
जनता सरकार कुछ खाने को ही दे दीजिए बच्चे भूखे हैं
नेताजी  - निकलो  यहाँ से, नौकर मानव घर पर  नहीं है
जनता - कुछ दे दीजिए आप से बड़ी उमीद है ....
भ्रम - निकल ले बोला ना, मानव नहीं है
जनता - जी हां मानव नहीं है.......
नेताजी रिलैक्स, मेरे ख्याल से तुम्हे राज्य का दौरा  करना चाहिए जैसे तुम्हारी पैठ बढ़ सके।  भ्रम - अपना प्रभाव डालो सब पर, लोकसभा चुनाव आरहे हैं........

Sunday, 30 June 2013

गूंज

खनक - हेल्लो  हेल्लो  हेल्लो  गूंज !
गूंज  - हेल्लो ,हलके बोल चिल्ला  क्यो  रही है।
खनक  - अप्प्स क्यो बंद कर के बैठी है। कब से एक पिक  भेजना चहा रही हु।
गूंज - युही मूड ऑफ है।
खनक  - मूड रोक्किंग करती हु अप्प्स ओन कर गब्बर की पिक  भेजती हु।
गूंज - आहा सुनते ही  मूड ठीक होगया .... हा हा हा  अभी ओन करती हु।
खनक  -  सेंड किया ,मिला?
गूंज - हा, ही लुक्स सो  फेब! ये पोस्टर कहां से लिया ?
खनक  - इंडिया मॉल से।
गूंज - इंडिया मॉल इस  वैरी कॉस्टली।
खनक  - नही, गब्बर का पोस्टर बस २ हज़ार मै मिला।
गूंज - वऔ , कल मै भी लेके आती हु।
खनक  - कल हा हा ये गब्बर का पोस्टर है बापू का नही जो हर समय एवेलेबल  हो ...... अभी तक तो सब बिक गए होंगे।
गूंज - ये भी है , अपने लिए लिया तो मेरे लिए भी लेलेती हद  करती है ,चल बाये।
खनक  -  अरे मुझे क्या पता था यू आल्सो वांट।
गूंज - स्मार्ट मत बन तुझे मालूम है आज कल यंग इंडिया का एक ही  हीरो है ...... बाय।
खनक  - हेल्लो  हेल्लो

गूंज -उमा उमा
उमा - तमीज़ से रहो माँ हु तुम्हारी कोई फ्रेंड नही जो नाम से बुलाओ। 
गूंज - उफ़  सुबह सुबह  नही वैसे  भी माँ कहा था, न की उमा।
उमा - झूट मत बोलो
गूंज  - आप को लड़ना है?
उमा - लड़ नही रही हु बस समझाना चाह रही हु तमीज़ सीखो।
गूंज  - प्लीज प्रवचन नही।
उमा - तुम्हारी आँख खुलने से पहले सूरज ढल चूका है अगर दादाजी के सोने से पहले कामरे  से निकल ओगी तो बड़ी मेहरबानी होगी।
गूंज  - ओके ............ओके आती  हु।
उमा - थैंक्स !
गूंज  - अब वेलकम कहुगी तब ही जाओगी क्या?
उमा - तुम बत्तमीज़ थी हो और रहोगी।


गूंज - २ हज़ार दीजिये आप से बात करने आयी हू ।
उमा - क्या बत्तमिज़ी है।
गूंज - माँ दूरदर्श के आलावा आज कोई चैनल फ्री नही मिलता है।
दादा - हा हा क्या करेगी?
गूंज - गब्बर का पोस्टर लुंगी।
दादा - पोस्टर वो भी खलनायक का?
गूंज - आज का नायक है शिखर धवन।
दादा - येले तू बेटी है चैनल नही, हक है तेरा.
गूंज -शुक्रिया शुक्रिया अब कहिये दादाजी कैसे है और क्या देख रहे है ?
दादा - ठीक हु और तबाही  देख रहा हु .
गूंज   - बस ठीक क्यों  अच्छे  क्यों नही?
दादा - बस बेटा इतना इन्सान एक पल में तबहा  होगया ... ये सब देख के कैसे  अच्छा हो सकता हु।
गूंज  - आप ये रियल्टी शो देख ही क्यों रहे है।
दादा - क्या  बचपना है इतने लॊग मर गए इतने संघर्ष कर रहे है और तुम इसे रियल्टी शो कह रही हो?
गूंज   - जीहाँ  आप जो देख रहे है वो रियल्टी शो ही है। हर चैनल वाला  सब से पहले का नारा  लगा के पुराने विडियो दिखा रहा है और  हर राजनेता फोटो सैशन केलिए पोहच रहा है। चैनल टी.आर .पी  की होड़ में है और हम मनोरंजन की .....
दादा - गुड खाया कर कितना कडवा बोलती है।
गूंज - हे हे पर सच तो ये ही है।
दादा - बेटा ऐसा नही है
गूंज  - ऐसा  ही है  जब आपदा आती  है तो आर्मी वालो को हीरो बना देते है  दो दिन  गुजरने दीजिये ये घटना भी भूल जायेगे जैसे कारगिल भूल चुके है किसे याद है की कारगिल विजय दिवस जुलाई  में बनाया जाता है।  कितने जवानो ने अपना खून देके विजय दिवस बनाया था।
दादा - हाँ  मुझे याद है
गूंज  - आप की आवाज़ आप के शब्दों का साथ नही दे रही है। सचायी मानिये की हम सब स्वार्थी है। कारगिल के समय सब देश की रक्षा केलिए सीमा पर जाने केलिए उतारू थे, कुछ समय बाद एक  हाइजैक हुआ देशप्रेम सडको पर दिख रहा था हर जना आतंकवादियों को छूड वाने केलिए हाहाकार कर रहा था  और जब तक छुडवा नही दिया किसी ने सास नही ली। देश भक्ति की बाते करना और करने में अंतर होता है। ट्रेन में  आर्मी वाला आजाये  हम मुंह बनाने लगते है की अगये बिना रिजर्वेशन के।  अभी  १ महिना गुजरने दीजिये हम सब भूल जायेगे।
दादा - तुम्हारी पीढ़ी देश भक्ति नही समझेगी।
गूंज - जी अब आपने सही कहा, हम नही सम्झ्सकते आप लोगो की देश भक्ति - जीप से लेके हेलिकॉप्टर  - जुते  से लेके ताबूत तक सब में घोटाला।  दादाजी जब आप लोगो ने देश की सुरक्षा से ज्यादा घोटालो पर तरज़ी दी है तो देशभक्ति कम फिरका परस्ती अधिक दिखती है।

गूंज - सन्नाटे को चीरती हुयी सच्चाई
दादा - हें !
गूंज - कुछ नही रिलैक्स , हम वही है जो हमने देखा और अपने बनाया। मात्र किताबी ज्ञान से चीजों का निर्माण होता है है चरित्र का नही, स्माइल प्लीज।  ये २ हज़ार पीडितो केलिए।
दादा - अरे तू  अपने हीरो का पोस्टर लेले , मैंने तो दिया ही है।
गूंज - हमारे हीरो पर तो करोडो बरसाए जाते है जान पर खेल के देश बचने वालो केलिए ही चंदे मांगे जाते है।

Friday, 5 April 2013

जी सॉरी

माँ - क्या कर रही है
शीना -कुछ नहीं मम्मीजी
माँ - तो कभी कुछ कर भी लिया करो, की दिन भर आराम-आराम। हम इस उमर में भी तुम लोगों से ज्यादा काम करते हैं और तुझ से तो ज्यादा ही फिट हूं
शीना - जी मम्मीजी
माँ - जी-जी करना पर गलती से कुछ काम मत कर लेना।
शीना -जी नहीं मम्मीजी खाना बना रही हूं।
माँ- तो झूठ क्यों बोला कि कुछ नहीं कर रहीं हूं , मैं कौन सा रसोई में आ रही थी, जो करना है करो, मेरी बलासे
शीना -जी नहीं मम्मीजी ऐसा नहीं है।
माँ -ऐसा हो या न हो पर तुमने झूठ बोला, पता नहीं आज-कल की लड़कियों को  छुपाने की क्या आदत हो गयी है। हमे तो हिम्मत तक नहीं थी की झूठ बोलने का सोच भी ले और ये मुंह पर झूठ बोल रही है। अपने घर में यही देखा होगा की बड़ों की आंखों में धूल झोंको।
शीना -जी नहीं मम्मीजी ऐसा नहीं है, बस कुछ खास नहीं कर रही थी इसलिए कह दिया कुछ नहीं कर रहीं हूं।
माँ - ये बोलने की जरुरत नहीं है कि तुम खास नहीं कर रही थी । ठीक से पोहा तक तो बनाना आता नहीं, खाना बनायेगी। चलो माँ ने कुछ नहीं सिखाया पर एक साल से मुझसे क्या सीख लिया कुछ नहीं सच्चाई तो यही है तुम कुंद हो ....... अब सांप सूंघ गया क्या ?
शीना - जी नहीं मम्मीजी
माँ - तो बोलती  क्यों नहीं हो, क्या मैं पागल हूं जो हवा में बकती जा रही हूं और तुम्हारे कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है?
शीना -जी नहीं मम्मीजी
माँ -जी नहीं करती रहना पर कुछ करके मत देना ,काहिल कहीं की
शीना -सॉरी मम्मीजी
माँ- हे राम ,उठाले मुझे, बेशर्म सॉरी भी रसोई से बोल रही है ये नहीं यहां आके  माफ़ी मांगे।
शीना - जी नहीं ,आ रही हूं
माँ- कब मेरे मरने के बाद
शीना -जी नहीं आ गई
माँ - बड़ा अहसान किया, रसोई में क्या गिरा के आ गयी?
शीना -जल्दी में गलती से कटोरी गिर गयी।
माँ- हे राम, अपने घर से कुछ लायी नहीं और मेरे घर को नुकसान करने में लगी हुई है। हाथ में  काटे है किया - मनहूस
शीना -सॉरी
माँ- बस यह है गलती करती रहो, घर बर्बाद करती रहो और सॉरी बोलती रहो।
शीना -जी नहीं मम्मीजी
माँ- क्या नहीं, यही सिखाया है तेरे माँ-बाप ने, अब चुप क्यों है तुझ से ही बात कर रही हूं ........... बोल बोलती क्यों नहीं है।
शीना - सॉरी मम्मीजी, ऐसा नहीं है।
माँ -जवाब देती है बत्तमीज़, एक तो गलती करती है ऊपर से ज़बान चलाती है।
शीना - सॉरी मम्मीजी
माँ-यह है आजकल की बहु सॉरी का झुन-झुन बजाती रहेगी और करेंगी अपने मन का ही। पता है बुढ़िया क्या कर लेगी......... अब कौन मर गया जो रो रही हो। बात करना दूभर हो गया है। बोलों नहीं की  रोना शुरू। ये सीरियल नहीं है ,ये  नौटंकिया तुम्हारे घर में होती होंगी यहाँ ये सब नहीं चलेगा न हमने कभी  कि है ,न ही ये गवारपना झेंलूगी।
शीना -सॉरी मम्मीजी
माँ- रोना बंद करो वर्ना फिर बीमार हो जाओगी, पता नहीं क्या क्या बीमारी लेके आयी हो? प्रहलाद के कारन ले आयी तुझे वर्ना। तुझ जैसी बीमार को तो घर में भी घुसने नहीं देती।
शीना - जी मम्मीजी
माँ - ये जी का ढोंग कही और करना मैंने दुनिया देखी है, चल यह बता तुझमें कोई एक भी गुंण  है। बोल न, शक्ल न अक्ल आता-जाता तुझे कुछ नहीं बस आराम कर वालो और घर फुक्वालो, बोल गलत हूं क्या?
शीना -जी नहीं
माँ -कैसे गर्व से कह रही है नहीं, बत्तमीज़ चुप रहना सिख और सुन मुझे तेरे हा या न की जरुरत नहीं है समझी यह शहर का रौब किसी और को दिखाना, मैं टीचर रह चुकी हू।
शीना -सॉरी मम्मीजी
माँ- अभी कहा चुप रहना सीख,पर मजाल है जो चुप हो जाये, अरे बत्तमीज़ बड़ों से जबान लड़ाने से कोई मॉडर्न नहीं हो जाता समझी, यह जलने की बदबूं कहां से आ रही है?
शीना - जी रसोई
माँ - हे राम, यहाँ ख़ड़ी है। असल में काम में तो मन लगता नहीं है। अब जा गैस बंद कर की  घर फूक के ही तसल्ली मिलेगी। क्या बहू मिली है, किस्मत ही खराब है।

माँ - मोटर साईकिल की आवाज़ आ गई, लड़का थक के आ रहा है। आते ही कान  भरने मत लगना, सांस लेने देना।

प्रहलाद - राम-राम अम्मा
माँ -जीता रह, बैठ थक गया होगा
प्रहलाद- कुछ जल रहा है?
माँ - बहु कुछ बना रही होगी।
प्रहलाद- शीना सब ठीक?
शीना - जी हां, बस आयी
माँ - आने को कोई नहीं कह रहा है। प्रहलाद जानने  का इच्छुक है की आज क्या जला खिला रही हो।
शीना - यह रही गरमा-गर्म चाय और मैगी - मम्मीजी आप के लिए और इनके लिये।
माँ - तुम दोनों खाओ ,मैं नहीं खाती ये सांप बिच्छु।
प्रहलाद - शीना माँ  यह नहीं खाती है।
माँ - बताया तो था, ध्यान से उतर गया होगा या फिर ध्यान ही नहीं दिया होगा।
शीना - जी नहीं मम्मीजी वाह असल में पोहा बना रही थी पर वो कड़ाई में लग गया, तो जल्दी में ये बना लिया।
माँ - पोहा जैसी चीज़ कैसे जल गयी?
शीना - जी वो जब आपसे गपशप कर रही थी तब ध्यान से उतर गया।
माँ - वहीं तो कहती हूं घर पर ध्यान रखा करो और तुम गपशप नहीं कर रही थी तुम बत्तमिज़ी कर रही थी। अब ऐसे मत देखो जैसे में झूठ बोल रही हूं मुझे कोई डर नहीं है।
प्रहलाद - माँ आपको डरने की जरुरत भी नहीं है, शीना जो चाहो करो पर माँ से बत्तमिजी करना छोड़दो, यह तुम्हारे लिए और अपने रिश्ते के लिए सही होगा।
शीना - जी सॉरी मम्मीजी

घर और बाहर के लिए कानून बना है और बनते रहेंगे पर वास्तविकता में हम नारी को उसका हक देने के लिए मानसिक तौर पर तैयार है?

Tuesday, 12 March 2013

संवेदनहीन

निधि - उफ़ एक तो बजट जलाने वाला आ गया पर से इस बार गर्मी भी जल्दी आ गयी। बिना ए.सी. के मरो!
विशाल - इन्डियन एलिज़ाबेथ पर देखो ए.सी. लगा हुआ भी है और चल भी रहा है।
निधि -बस तुम चुप ही करो आधे कमरों में  तो ए.सी. नहीं है।
विशाल - हाय क्या गरीबी है , बेचारी मेरी बीवी।
निधि - सच ही  है, कि काश थोड़े और गरीब ही होते, सरकर भी तो सारी  सुविधा ज्यादा  गरीबों को ही  देती है। हमें तो बस टैक्स भरने के लिए और अपने अरमाननों का गला घोटने के लिए रखा हुआ है। 
विशाल - टैक्स अपने घर से नहीं देती हो, जो कमाते हैं उसमें से छोटा सा हिस्सा ही देते हैं
निधि - हां पता है पर सब नहीं देते है, सिर्फ कुछ डरपोक और मूर्ख लॊग तुम जैसे।
विशाल -डरपोक और मूर्ख नहीं, इसे शराफत कहते हैं
निधि -शराफत की होलसेल एजेंसी इसी इन्सान के पास ही हैं। मारो भूख हम सबको, जैसे अभी तक मारते आ हो।
विशाल - शांत क्यों मुहल्ला सर पर  उठा रही हो, बेवजह ..
निधि -बात की नहीं कि चिल्लाकर  चुप करा दो
विशाल - दिख रहा है, कौन चिल्ला रहा है, कौन चुप हो रहा है।
निधि -क्या दिख रहा है, बोलो-बोलो क्या दिख रहा है।
विशाल -कुछ नही
निधि -कुछ नही कैसे बोलो इसे चुप रहके मुझे झूठा साबित नहीं कर सकते
विशाल -अर यु ओके ?
निधि -अर यु ओके का किया मतलब है। बोलो पागल हूं मैं ?
विशाल -हे भगवन .......... बचा
निधि -कोई तुम्हे बचाने नहीं आयेगा,  चाय पीते हैं और लडाई जारी रखते है।  प्रतिभा चाय बनाना,  साहब और मेरे लिए
प्रतिभा - जी
विशाल -उसे भी देदो
निधि -किसे क्या दे दूं?
विशाल -प्रतिभा को भी चाय दे दो
निधि -मेरे लावा दुनिया की फिकर है,  वैसे हम नहीं ह हमें पिला रही है।
प्रतिभा - आंटीजी  चाय
निधि - अच्छी है,  सब्जी कट गयी ?
प्रतिभा - जी
निधि -ठीक है चावल बीन दे।
प्रतिभा - जी
निधि -अच्छा  सुन इधर आ
प्रतिभा -जी
निधि -इस बार का बजट तो बड़ा अच्छा  आया है तुम लोगों के लिए।
प्रतिभा - जी
निधि - चलो अच्छा है, सरकार ने तुम लोगों की फिकर तो की
प्रतिभा -जी
निधि -तुझे पता है तू अब विदेश से १ लाख का सोना बिना टैक्स के ला सकती है।
प्रतिभा - जी
निधि - मैं बड़ी खुश हूं अब धीरे धीरे सोना लेती रह बेटी की शादी में  काम  आयेगा।
प्रतिभा -जी
निधि -तेरी बेटी गूंगी है ना?
प्रतिभा - जी
निधि - क्या नाम है उसका ?
प्रतिभा - जनता
निधि - हा जनता, उसके लिए दहेज़ जमा कर ले, बड़ा अच्छा  मौका है।
प्रतिभा - जी
विशाल - प्रतिभा दहेज़ का दिमाग में भी मत लाना उसे पढ़ा स्वावलम्बी बनाओ
प्रतिभा - जी
निधि- इन्हें समाज का कुछ अता-पता नहीं तू मेरी सुन।
प्रतिभा - जी
निधि - बहुत बातें हो गयी,  जा चावल बीन। बस बातें करा लो
प्रतिभा - जी
निधि - सुन इधर आ
प्रतिभा - जी
निधि - तूने अभी तक मकान भी नही लिया ना?
प्रतिभा - जी
निधि - तुम लोग भी बचाना नहीं जानते हो
प्रतिभा - जी
निधि - अब सरकार ने तुम लोगों के लिए सुविधा कर दी है २५ लाख तक पर  फायदा है।  हम तो वो भी नहीं ले सकते क्योंकि ये फायदा केवल पहले मकान पर ही है।
प्रतिभा - जी
निधि- चाय ठंडी हो गई फिर बना
प्रतिभा - जी
विशाल- निधि! प्रतिभा कितने घरों में काम करती है ?
निधि  -
विशाल - उधर भी ३ हजार मिलते है
निधि  - हां
विशाल - तुम उसे ६ हज़ार कमाने वाली को   बचत का ज्ञान दे रही हो , थोडा तो संवेदनशील बनो।
निधि - तुम नहीं जानते ये लोगों के पास बहुत होता है और टैक्स भी नहीं देते हैं...
विशाल - साल का ये ७२ हजार कमा रही है, टेक्स बनता भी नही है।
प्रतिभा - चाय
निधि - देख साहब क्या बात कर रहे है, तू खुश है ना ? तू मकान खरीदना चाहती है ना?
प्रतिभा - जी
निधि - सुनिए जी कह रही है। अरे दिमाग से उतर गया अभी स्कूल खुलेगा तो भविष्य के लिए विदेशी जूते लेना, वो भी सस्ते हो गए है।
प्रतिभा - जी
निधि- प्रतिभा तू मेरे लिए बेटी जैसी है, किसी भी चीज़ की जरुरत हो , बोल देना।
प्रतिभा - एक एहसान चाहिए था
निधि - बोल
प्रतिभा - जी भविष्य को एक इंजेक्शन लगवाना था थोडा कमजोर है इसलिए ५०० रूपये उधार चाहिए थे।
निधि - अरे पगली कमज़ोर है तो नीबू पानी पिला डॉक्टर तो लूटते है।
प्रतिभा - जी,  असल में भविष्य कुपोषण का शिकार है इसलिए
निधि -जाओ चावल बीनो , बस दिन भर बातें करवा लो। 
प्रतिभा - जी
विशाल - (जनता) बेटी  गूंगी,  बेटा (भविष्य) कुपोषण का शिकार उस पर निधि  (सरकार)
निधि - क्याड़बड़ा रहे हो
विशाल -जय हिन्द