Sunday, 28 February 2010

शोर्ट टर्म मेमोरी लोस

जय -होली है होली है!
उमा - अरे सुबह सुबह शोर मत मचाओ, पडोसी डिस्टर्ब होते है
अजय - होने दो, होली है,आज शोर भी होगा और मस्ती भी होगी
उमा- हलके, चाय बनाने दो
अजय - आज तक समझ नहीं आया की चाय बनाने मै इतनी मेहनत कैसेलगती है ?
उमा - बनानी पड़ती है
अजय - अरे गैस पर पतीला रखने में क्या मेहनत..... कोई तुम्हे थोड़ी ना गैस पर उबलना है
उमा - हा हा वैरी फन्नी
अजय - अच्छा पर मै सिरियस था
उमा - मै सिरियस हो गई तो खाना बाहर से आयेगा
अजय - वैसे भी छुटी के दिन केवल चाय ही पिलाती हो और खाना बाहर का ही नसीब होता है
उमा - मै तो कुछ करती ही नही ना
अजय - मै हां कहूँगा तो लडोगी तो नही
उमा- नही....लड़ लो
अजय - नही लड़ सकता ना... वर्ना चाय भी नसीब नही होगी, तुम घंटे भर में चाय बनाओ मै भारत को जगाता हूँ
उमा - किसी को चैन से रहने मत देना ?
अजय - तुम से ही सीखा है, भारत उठो उठो होली है
भारत - गुड मोर्निंग डेड
अजय - अरे भारत उठा हुआ है
भारत - येस
अजय - उमा होली पर चमत्कार हो गया
उमा - क्या ?
अजय - बेटा बिना जगाये जग गया
भारत - डेड मैं बीमार हूँ
अजय - पहले क्यों नही बोला, अभी थर्मामीटर लाता हूँ
भारत - नही बुखार नही है
अजय - बेटा क्या तकलीफ है ? अभी चलते है डॉक्टर के पास यू विल बी फाइन
भारत - तकलीफ कुछ नही है पर मुझे लगता है हम सब को शोर्ट टर्म मेमोरी लोस की बीमारी होगई है
अजय - ये क्या बीमारी है?
भरत - वही जो आमिर खान को गजनी मे हूई थी
अजय - हा... हा... , बेटा वो सब फिल्मो मे होता है
भारत- नही डेड हम सब को यह बीमारी हो गई है
अजय - नही बेटा वो फिल्म दिमाग मे रह गयी इसलिए तुम्हे ऐसा लग रहा है
भारत - नही डेड आई कैन प्रूव
अजय - अच्छा तुम्हे क्यों लगता है की तुम्हे यह बीमारी है?
भारत - मुझे ही नही हम सब को
अजय - अच्छा हम सब को पर तुम्हे ऐसा क्यों लगता है?
भारत - शोर्ट टर्म मेमोरी लोस मे इन्सान को कुछ समय पहले की बाते याद नही रहती है
अजय - वो पता है, बेटा मुझे सब याद है , हम सब ठीक है बस तुम फिल्में देखना कम करो, अब उठो नाश्ता करोफिर होली खेलो
अजय - देखो आज होली है मुझे याद है हा..... हा!
भारत - वो आप को इसलिए याद है क्यों की होली आज की बात है लेकिन कुछ दिनों पहले की दुर्घटना याद होती तोआप होली की बात भी नही करते
अजय - क्या भूल गया , अभी तक तेरी माँ ताने मारती थी कुछ याद नही रखते अब तू भी बोलने लगा. बता क्याभूल गया
भारत - आप नही हम सब भूल गये की कुछ दिनों पहले देश मे धमाका हुआ था कितने घरो मे सन्नाटा फैल गया हैकितने जन अभी तक ज़िन्दगी के लिए लड़ रहें है इससे बड़ा क्या शोर्ट टर्म मेमोरी लोस का उधारण होगा डेड ज़िन्दगी किसी के लिए नही रूकती है, ना रुकेगी पर..... थोड़ी तो इंसानियत भी होनी चहिये?
भारत - कहिये हम सब शोर्ट टर्म मेमोरी लोस से पीड़ित है की नही?
भारत - डेड डोक्टर के पास चले.......

(यदि आप भी इस बीमारी से पीड़ित है तो जल्द ही अपने नजदीकी अस्पताल
मे दिखाइये)

Sunday, 14 February 2010

सोचिये

बाबा - भविष्य
भविष्य - जी, बाबाजी

बाबा - आज स्कूल नही गये ?
भविष्य - बाबाजी आज रविवार है, छुट्टी है

बाबा - अरे हाँ, भूल ही गया
!
बाबा- बेटा, वर्तमान क्या कर रहा है

भविष्य - पापा (वर्तमान) सो रहें है

बाबा - अभी तक? चलो सोने दो, बेटा मेरा एक ख़त लिखदेगा ?
भविष्य - जी बाबाजी, कहिये किसे लिखना है?
बाबा - अपने
पी. चिदंबरम को
भविष्य - बाबाजी आप कहिये मै लिखता जाता हूँ

बाबा - हाँ लिखो - प्रिय
चिदंबरम नमस्कार
भविष्य - आदरणीय चिदंबरमजी लिखूं?
बाबा- क्यों?
भविष्य - गृह मंत्री हैं ,हमे सम्मान करना चाहिये
बाबा - नही बेटा , हमे सम्मान व्यक्ति का करना चाहिए ना की उसके पद का
भविष्य - जी बाबाजी
बाबा - भविष्य लिखो, आप ने
२२ हज़ार पुलिस कर्मियों की मदद से माय नेम ईज़ खान सफलता पूर्वकचलवादी इस के लिए बधाई हो ।लेकिन एक बात पूछनी थी की २२हज़ार पुलिस कर्मियों की मदद तब क्यों नही ली गयी जब सड़क पर हमारे लोगो को भगा भगा के मारा जा रहा था व इन २२ हज़ार योद्धओ को सिनेमा घर की सुरक्षा के लिये खड़ा कर दिया गया इतनी कर्मठतता यदि कश्मीर, मुंबई, जयपुर,अक्षरधाम,गुजरात, पुणे में दिखाई होती तो आज लाखो भारतीय जय हो का नारा बुलुंद करते हुए माय नेम ईज़ खान देख रहें होते। अब ये ना समझे की मेरा कोई प्रियजन प्राणहीन हो गया है या एक लाश का एक लाख मिले इसलिए ये ख़त लिख रहा हू ये सिर्फ इसलिए लिख रहा हूँ क्यों की मै थक गया हूँ धमाको की आवाजो से और बेशर्म बयानों से जैसे आज सुन ने को मिला की १४ महीने बाद धमाका हुआ है।क्या अब धमाको पर भी आप अपनी पीठ थप थापा येंगे ?

वर्त्तमान -
वेलेनटाइन डे पर क्यों शोर कर कर रहे हैं - अच्छा खासा सो रहा था, जगा दिया और ये क्या हैं उफ़ एकऔर लैटर , पापा कब समझेंगे की इन सब से कुछ नहीं हुआ हैं और ना होगा, होना होता तो कब का हो जाता

बाबा- वर्त्तमान इतने निराशावादी नही हो?
वर्त्तमान- नही मै क्यों होने लगा में खुश हूँ मेरे पास जॉब हैं लाइफ सेट हैं और इन धमाको के बारे में सोचने के लियेटाइम कहाँ हैं
अब फिर सोने जा रहा हूँ कोई शोर ना मचे घर में ,शाम को माय नेम ईज़ खान देखने जा रहा हूँभविष्य ये सब छोड़ो और अपना सोचो ना की देश का

वर्त्तमान दिशाहीन हो रहा है भविष्य भी हो उस से पहले सोचिये....

Saturday, 13 February 2010

आखरी सांस आखरी आंसू

प्रत्यक्ष - माँ, माँ, माँ!
माँ - आराम से, आराम से

माँ - लाओ, बैग और बोतल

प्रत्यक्ष - नही माँ, मै बड़ा हो गया हूँ

माँ - अच्छा जी, सुबह से दोपहर में बड़े हो गये
?
प्रत्यक्ष - जी हाँ, अब से मै शरारत भी नहीं करूंगा

माँ - क्या हुआ, टीचर ने डांटा?
प्रत्यक्ष - नहीं

माँ - किसी ने कुछ कहा?
प्रत्यक्ष - नहीं, माँ

माँ - तो फिर मेरा बच्चा शरारत क्यों नहीं करेंगा ?
प्रत्यक्ष - मैं अब बड़ा और अच्छा बच्चा हो गया हूँ

माँ- कुछ तो बात है, बोलो?
प्रत्यक्ष - माँ, होली आ रही है

माँ- अब समझी, पिचकारी चाहियें?
प्रत्यक्ष - नहीं

माँ - फिर क्या हो सकता है?
प्रत्यक्ष - सोचिये, सोचिये?
माँ- गुब्बारे नहीं दिलाऊंगी, उससे चोट लगती हैं
गुब्बारे तो हरगिज़ नहीं
प्रत्यक्ष - नही माँ, गुब्बारे भी नही

माँ - फिर क्या हो सकता है ?
प्रत्यक्ष - सोचिये, सोचिये?
माँ - पता नही, तुम ही बोल दो

प्रत्यक्ष - माँ होली पर गुजिया खाये?
माँ - जल्दी चलो, बस ना छूट जाये

प्रत्यक्ष - माँ गुजिया!
माँ - मैंने कहा ना जल्दी चलो, आओ गोद में ले लेती हूँ

प्रत्यक्ष - नही छूटेगी बस, आप ने कुछ कहा नही

माँ- किस बारे मे

प्रत्यक्ष - गुजिया के बारे मे

माँ- गुजिया खायेंगे , पर अगले साल

प्रत्यक्ष - नही मुझे इस बार ही खानी है

माँ - बेटा ज़िद नही करते , अगले साल पक्का

प्रत्यक्ष - ओक्के

माँ - अच्छा गुब्बारे ले लेना

प्रत्यक्ष - नहीं मुझे कुछ नहीं चाहिये

माँ- राजा बेटे गुस्सा नही करते

प्रत्यक्ष - भ्रष्टाचार रोज़ गुजिया लाता है, क्या हम होली पर भी नही खा सकते?
माँ - बेटा हमे दूसरे क्या खाते है और क्या पहनते है वो नहीं देखना चाहिए
पता है हमारे चुने हुए वो लोग कहते है
" चीनी न खाने से मौत नहीं आती और शक्कर से बने सामान से मधुमेह (बीमारी) बढती है
"
माँ - प्रत्यक्ष, मधुमेह से मर भी सकते है

प्रत्यक्ष - पर..........ओक्के !
प्रत्यक्ष - हम अब इतने गरीब हो गये है की गुजिया भी नही खा सके?

तभी जमाखोर (कार) आई और माँ को कुचल के चली गयी


प्रत्यक्ष - माँ, माँ, माँ - उठो मै मज़ाक कर रहा था, माँ उठो मै गुजिया नही खाऊँगा, ना ही कभी खाने को बोलूँगा


नमस्कार हम हैं भरत के नंबर समाचार चैनल जो ये सबसे पहले दिखा रहे है, आइये लाश के पास रोते हुए बच्चे से पूछे?
रिपोर्टर-ये औरत मर गयी, आपको कैसा लग रहा है?
प्रत्यक्ष - ये औरत मेरी माँ है

रिपोर्टर - एक और ब्रेअकिंग न्यूज़ - ये लाश इस मासूम की माँ की है, लोग कितने संवेदनहीन हो गये है की एक मासूम की माँ को सरे बाज़ार मार दिया गया

कैमरा मैंन - बेटा जरा कैमरे मे देख कर रो
- तुम्हारा चेहरा छुप रहा है। जोर से रो तुम्हारी माँ मर गयी है
प्रत्यक्ष - नही मेरी माँ मर नही सकती

रिपोर्टर - हाँ पर ये स्पेशल रिपोर्ट जब तक ख़तम होगी तब तक ज़रूर मर जायेंगी

प्रत्यक्ष - नही, मेरी माँ नही मर सकती

रिपोर्टर - क्यों ?
प्रत्यक्ष - माँ कह रही थी शक्कर खाने से मर सकते है पर उन्होंने खायी ही नही, फिर माँ कैसे प्राण त्याग सकती है ?
रिपोर्टर - ये बच्चा कुछ अजीब बात कर रहा है, इसे छोडिये और आप इस घटना का मज़ा लीजिये

रिपोर्टर - और आप लोग कही मत जाइए, हम इस औरत की आखरी सांस और इस लड़के के आखरी आसूं तक कैमरे के साथ बने रहेंगे
तब तक आप अपनी राय sms करें और जो सब से ज्यादा sms करेगा उसे होली की गुजिया का डब्बा मिलेंगा जी हां आप ने सही सुना - गुजिया का डब्बा जहाँ आज लोग ५० रुपैये की शक्कर चाय में नहीं ड़ाल पा रहे है उस समय हम आप को दे रहे है गुजिया का डब्बा तो ये मौका छोडिये नहीं - हम जल्द हाज़िर होते है हमारी ब्रेअकिंग न्यूज़ के साथ - आखरी सांस आखरी आंसू.......


Monday, 25 January 2010

संकीर्ण और संकुचित सोच

सम्मानीय प्रतिभा मौसीजी नमस्कार,
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये

मौसीजी, रविवार को राज्य महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का विज्ञापन देखाबड़ा अफ़सोस हुआ, उसके बाद कई कार्यक्रम देखे व लेख पढ़े उससे जो पीड़ा मुझे हुई वो मै शब्दों से व्यक्त नही कर सकताआखिरकर मै हू तो वह ही आम इन्सान, जो पीड़ा की अग्नि में जीवन व्यतीत कर देता है पर उस अग्नि से क्रांति की मशाल नही जलाता है
हर व्यक्ति को इस विज्ञापन से केवल यही आपत्ति है की किसी पाकिस्तानी सैनिक की फोटो लगा दी
मेरे विचार से इस मे कृष्ण तीरथ की कोई गलती नही हैगलती उस कुर्सी की है जो रक्षक और भक्षक मे अंतर करना बंद कर देती हैयह भी हो सकता है की गूगल मे एंटर कर दिया होगा और उस मे इस पाकिस्तानी की भी फोटो आ गयी होगी, और उसे देखकर प्रसंचित हो गई होंगी की वहां ये फोटो लगाओ इतने तमगे लगे है - विज्ञापन और अच्छा लगेगा, फिर चाहें तमगे भारतीयों के रक्त बहाने के लिए ही क्यों ना मिले हो - चाहें इस से मेरी थल, जल और वायु सेना का अपमान ही हो
यदी ऐसा नही है तो फोटो लगी कैसे???
ये देशद्रोह हुआ कैसे???
मौसी कुछ तो बोलिये???
मौसी विज्ञापन के लिए
कृष्ण तीरथ ने कहा हम ने सिर्फ तस्वीर को देखा भाव को नही । जो दिखा व जो पढ़ा -वह ही तो समझेंगे उनके ह्रदय में तो नही झांक सकते मौसी, कृपया ये पंक्ति पढ़े और मुझ मुर्ख को समझाये की इसका क्या अर्थ है?

Where would you be

if your mother was

not allowed to be born???

इस में ये दर्शाया जा रहा है की महान पुरुष नही होते यदि माँ नही होती, इसलिए बालिका हत्या नही होनी चहिये ।इससे संकीर्ण और संकुचित सोच नही हो सकती

नारी रक्षा के लिए विज्ञापन देना ही था तो ये देते की बालिका हत्या नही होनी चहिये क्यों की नारी मात्र जननी नही है। बड़े-बड़े अक्षरों में लिखते की बेटी अर्थात राष्ट्र का सम्मान कृष्ण तीरथ से पूछिए क्या भारत में महान व सफल नारी का अकाल पड़ा है जैसे अनाज का या सोच का अकाल है? इससे अच्छा तो इनकी तस्वीर लगात्ती

  • प्रतिभा पाटिल
  • इन्द्रा गाँधी
  • सरोजनी नायडू
  • विजय लक्ष्मी पंडित
  • सुचेता कृपलानी
  • मीरा कुमार
  • आरती शाह
  • कादम्बिनी गांगुली
  • चंद्रमुखी बासु
  • कामिनी रायसोराबजी
  • असीमा चटर्जी
  • कुमारी फातिमा बीवी
  • किरण बेदी
  • अन्ना चांदी
  • दुर्बा बनर्जी
  • कल्पना चावला
  • कम्लिजित संधू
  • बचेंद्री पाल
  • निरुपमा वैद्यनाथन
  • पी. टी. उषा
  • के. मल्लेश्वरी
  • कोनेरू हम्पी
  • सानिया मिर्ज़ा
  • सायना नेहवाल
ये कुछ नाम है जो मुझे याद है

आज भी लडकियों को पढाया नही जाता है और जिन्हे पढ़ाया जाता है उनमे से ९०% का लक्ष्य मात्र शादी होता है।आज भी लड़की को उसके वस्त्रो से चरित्र का आकलन होता है उस समाज में इस तरह का विज्ञापन किसी घोर अपराध से कम नही है इस तरह के विज्ञापन से यही सन्देश मिलेगा की नारी मात्र जननी है
मौसी
यह तो तब हो रहा है जब आप भारत की प्रथम नागरिक है कृपया कर के कुछ करिये ................

आप का
आदित्य


Saturday, 23 January 2010

अभिव्यक्ति

जनता - "प्रजातंत्र, भाभी है?"
भाभी - "करुणा मैं रसोई मे हूँ ,आजाओ "
जनता - " भाभी, मैं करुणा नही जनता हूँ"
भाभी - "अरे जनता, आजा"
जनता - " क्या भाभी, जनता को भूल गयी"
भाभी - "कैसी बात करती हो, बस आज आवाज़ से धोखा हो गया, बिलकुल करुणा जैसी लगी"
जनता - "जनता से मिलेंगी नही, तो भूल ही जायेंगी ना"
भाभी - "जनता, अब सॉरी कहूं क्या"
जनता - "राम राम ,मै तू मजाक कर रही थी। वैसे ये सच है मेरी और करुणा की आवाज़ काफी मिलती है और आज कल तो पता ही नही चलता है जनता करुणा है या करुणा जनता है। भाभी कही ये मेरी जुड़वा बहेन तो नही?"
भाभी - "ही ही, तू भी कई बार फिल्मी हो जाती है"
जनता - "फिल्मी नही वास्तविक"
भाभी - "क्या"
जनता - "कुछ नही"
भाभी -" तेरी बाते मेरे सर के उपर से गुजरती है"
जनता - "कही, आप को नेताई फ्लू तो नही हो गया है ?"
भाभी- "पता नही, वैसे भी ये कह रहे थे ,आज कल कोई फ्लू चल रहा है ,शायद यही होगा"
जनता - "डॉक्टर को दिखा दीजिये नेताई फ्लू सब से खतरनाक फ्लू होता है, इस में जनता की आवाज़ नही सुनाई देती है"
भाभी - "डरा मत"
जनता - "डरा नही रही हू ,मेरी मानो आज छुटी है और प्रजातंत्र भी घर पे है, दिखा आइये"
भाभी- "तू सही कह रही है ,आज ही दिखाती हू कही मेरे कारण प्रजातंत्र को ना हो जाये"
जनता - "शुभ शुभ बोलिये"
भाभी - "जनता तू कितनी अच्छी है ,आ तुझे काला टीका लगा दूं"
जनता- "ही ही , मै तब तक अच्छी हूँ जब तक मेरा प्रजातंत्र बेटा स्वास्थ्य है,उसें काला टीका लगाइये"
भाभी - "जनता ये क्या हुआ तेरी आँख सूजी हुई है ? महंगाई ताई ने फिर मारा क्या?"
जनता- "भाभी छोडिये ना अब तो आदत हो गई है"
भाभी - "कैसी बात कर रही है महंगाई ताई ऐसे कैसे मार सकती है, ताऊजी (नेता) को क्यों नही बोलती है (महंगाई) सोतेली माँ मारती है"
जनता - "जब कहती हू की माँ ने मारा, तो गुस्सा हो जाते है और कहते है तू महंगाई की बुराई करती है। वो भी तेरी माँ है सोतेली है तो क्या हुआ अब तुझे महंगाई के संग रहना है। चाहें खुशी से रहो या रो के"
भाभी - "ऐसे घर कैसे चलेगा"
जनता - "आप घर की बात कर रही है यहाँ ज़िन्दगी चलनी दूभर हो गई है"

जनता - "अरे प्रजातंत्र धयान से, फ्रिज से टकरा के मत
गिरना, भाभी मैं चलती हू आप प्रजातंत्र को संभालिये"



चित्र www.google.com से लिया गया है

Monday, 18 January 2010

डफर


पूज्नीय पापा/ मम्मी
मै ना अच्छी हू, ना मेहनती हू , मै सिर्फ मुर्ख पशु हू और ये मैंने भी आज मान लिया है
पापा सच कह रही हू मैंने अपने हिसाब से खूब मेहनत की पर क्या करू नंबर ही नही आते है
मुझे पता है मेरे कारण ११ साल से आपकी नाक कट रही है पर मै यकीन दिलाती हू की अब आप का अपमान नही होगाये छोड़ रही हू इसी आस से की शायद मरने के बाद मै आलसी जानवर से कम से कम कायर इन्सान ही कहलाऊंगी
पापा गुस्सा मत होईयेगा ये ख़त मैंने रात भर पढने के बाद ही लिखा है - सच्ची, मम्मी कसम. चाहें तो आप बुक्स देख लीजियेगा मैंने स्कूल, टयूशन, टेस्ट पेपर, आप का और मम्मी का सारा काम कर लिया है
मम्मी परसों के लिए - सॉरी - मेरे हिलने के कारण आप की चूड़ी टूट गयी और चुभने की वजहसे आप के हाथ से खून निकल गया, मै जानती हू की खून निकले तो बहुत दुखता है मम्मी जानवर को मारने से इन्सान नही बना सकते ऐसा होता तो मै इन्सान कितने साल पहले ही बन गई होती हाँ मारने पीटने से रटाया जा सकता है पर पढाया नही

मम्मी एक बात कहूं - गुस्सा तो नही होंगी - प्लीज़ इस लैटर पर स्टार दीजियेगा ना, मुझे कभी नही मिला - नही स्टार जितना अच्छा लैटर तो नही लिखा है पर एक स्मायली ही दे दीजियेगा

आप की
डफर

१८ दिन २९ आत्महत्या - ये २०१० की शुरुआत है ...............

Wednesday, 13 January 2010

असमंजस्य

माँ नमस्कार,
कैसी है आप?
और
मै वैसी ही हू जैसी जन्म के समय थी डरी सहमी हर साँस के लिए संघर्ष करती
माँ आज मेरी नौकरी चली गयी, ऐसा लगा मानो जीने की आखिरी आस टूट गयी
सरकार कहती है मैं गलत काम करती हू लोगो को भ्रमित करती हू मेरे काम से समाज कलंकित होता है ।
माँ ज्ञानी व बुद्धिजीवी लोग कहते है तो सही ही कहते होगे पर ये समझ नही आ रहा है, मैं तो उस संगीत पर ही ताल मिलाती थी जिन पर सम्मानित अदाकारा थिरकती है और वो भी केवल परदे पर ही नही ज्ञानी व बुद्धिजीवी के कार्यक्रमों में भी
फिर मेरे परिवार की ही रोटी क्यों छिनी ? ये सम्मानित अदाकारा भी होटलों मे थिरकती है जिस के लिए इन्हें १ से २ करोड़ मिलते है एक रात के (मुझे तो महीने के २ हजार मिलते थे) माँ इनके होटल मे थिरकने से लोगो भ्रमित नही होते है?
माँ अदाकारा का सहारा लेके मैं अपने पाप से नही बचने की कोशिश कर रही हू बस असमंजस्य में हू की एक सा कम करने से सिर्फ मुझे क्यों सजा ? मैं तो मज़बूरी मे ताल से ताल मिलाती थी। २ हजार मे खोली (एक छोटा सा कमरा) का भाडा, खाना, बच्चो के कपडे, इनकी दवाई ……. इनकी कौंनसी मज़बूरी मेरी मज़बूरी से बड़ी है की इन्हें थिरकने की आज़ादी है और मुझ गरीब को रोटी कमाने की भी आज़ादी नही?
सरकार ने समाज की रक्षा के लिए नौकरी छीन ली पर कुछ सोचा हम अब करेंगे क्या या हम भी किसानो की तरह आत्महत्या करना शुरू करदे?
१०० दिन के काम देने की बात हो रही है वो भी गाँवो में, चलो काम न होने के कारण शहर आये थे अब वापस गाँवो में चले
माँ ये हमे इतना कितना वेतन दे देंगे की १०० दिन काम कर के हम ३६५ दिन जी लेंगे?
माँ आ के मुझे उपर ले जाओ बड़ी याद आ रही है
आप की
गरीबी

Wednesday, 30 December 2009

नव वर्ष अब तुम आ भी जाओ।

नव वर्ष अब तुम भी जाओ
शीश उठाए शब्दकोश बिछाए ,
मैं इंतजार कर रहा हूं
हर आहट पे मुस्कुरा रहा हूं ,
जाने क्यों इतना व्याकुल हो रहा हूं

नव
वर्ष अब तुम भी जाओ
आना बड़ी सावधानी से,
कहीं अहंकार, क्रोध, द्वेष भी संग जाएं
अन्यथा वह तुम्हे भी भाव हीन कर देंगे ,
प्रारम्भ से पहले ही अंत की शुरुआत कर देंगे

नव वर्ष अब तुम भी जाओ
लाना है तो मानवता और भाईचारे को लाना,
लाना है तो सच्चाई और विश्वास को लाना
लाना है तो प्रगति और स्मृद्धि को लाना,
लाना है तो गौरव और कौशल को लाना
नव वर्ष अब तुम भी जाओ........

Sunday, 6 December 2009

शोक सभा


गोवर्धन के पिताजी नहीं रहे। वह क्या करे, किससे मिले, क्या कहे, उसे कुछ नहीं समझ रहा था। वह अपने बाबूजी के पार्थिव शरीर के पास स्तब्ध बैठा हुआ था। स्तब्ध आंखों से उन्हें देख रहा था, ऐसे में गोवर्धन की पत्नी मिसेस गोवर्धन आकर अपना ज्ञानकोश खोलकर उन पर उड़ेलती हैं। और कहती हैं कि आप अपने पड़ोसी जमनादास से क्यों नहीं मिलते हैं। उन्हें शवयात्रा का अच्छा खासा एक्सपीरियंस है इसलिए तो मैं कहती हूं कि सगे संबंधी तो बाद में आकर फूल चढ़ाएंगे और न्यूज पेपर में छोटा विज्ञापन देने से दस बातें सुनाएंगे। ऐसे मौके पर ही हमेशा पड़ोसी ही सेवा के लिए हाथ बढ़ाते हैं, और जितना मुझे याद आता है जमनादास को हमने एक कटोरी चीनी भी पिछले हफ्ते दी थी। तो हमारा फर्ज बनता है कि हम उन्हें कर्ज उतारने के लिए मौका दें। और वैसे भी शवयात्राओं में शोकसभाओं में मृतक के परिवार से ज्यादा थके परेशान गमगीन दिखना उनकी भी एक रुचि है।

जहां पता चलता है मुहल्ले या शहर के किसी भी कोने में किसी ने प्राण त्यागे हैं, यम उन्हें लेने आएं उससे पहले वो कंधे पर सफेद गमछा डाले (जो उन्हें ससुराल से मिला था) दुख जाहिर करने पहुंच जाते हैं। जमनादास की एक और विशेषता है जो उनकी कोई सलाह उनका परिवार वाला नहीं सुनता है वह इस समय शोकाकुल को देते हैं। पता है वह इस समय कुछ बोल सकता है, उलझ सकता है। सामने वाला भी सोचता है कि इस समय वे चाय भी नहीं पी रहे हैं, तो कुछ बोल ही लें। इससे मन भी हल्का हो जाता है। सामने वाले का नहीं जमनादास का। मैंने तो यह भी सुना है कि उनमें इतनी ताकत है कि शरीर अपने अग्नि धारण कर लेता है, और पांचतत्व में विलीन हो जाता है। इसे कहते हैं यम का नाम लो और जमनादास हाजिर।

जमनादास - भाई ये क्या हो गया। गोवर्धन - कुछ नहीं पिताजी को सफेद चादर पसंद थी, इसलिए ओढ़कर सो रहे हैं। आप भी हद ही करते हैं, मृतक के घर आए हैं और पत्रकारों जैसे सवाल करते हैं। जमनादास - अच्छा अच्छा, बाबूजी नहीं रहेए। बांस, रस्सी, कफन, मटका का इंतजाम हो गया या नहीं। गोवर्धन - इस समय बाबूजी के वियोग में मुझे कुछ नहीं सूझ रहा है, जैसा आप जो ठीक समझें, वैसा कीजिए। जमनादास मन ही मन मुस्कुराए। लगता है इस शवयात्रा में भी मेरा कमीशन तय है। फिर एकदम से उनका ज्ञान चक्षु खुला उन्होंने गोवर्धन की ओर देखा जैसे महाभारत में श्रीकृष्ण ने दुर्योधन की ओर देखा था, वह भांप गए थे सुई बराबर भी जमीन नहीं देगा। हमारा सीना चौड़ा हो रहा था, क्योंकि हम अपने आपको श्रीकृष्ण समझ रहे थे। इसकी जेब में कितने भी रुपए हों, वो एक रुपया खर्च करने वाला नहीं। लेकिन हर महान पड़ोसी की तरह मैंने अपना पड़ोसी धर्म को ध्यान रखते हुए मैंने सारा सामान खरीद भी लिया और कुछ दिन बाद खर्च की गई रकम मांगूंगा तो वह अपनी चालाक प्रवृत्ति का परिचय देगा। और फौरन रौंद मुंह बनाकर कहेगा मेरे बाबूजी का देहांत हुआ है और तुम्हे पैसे की पड़ी है। इसलिए हमने वक्त का फायदा उठाया। लाने और ले जाने से अच्छा है दिनेश से खेल के ऊपर डिस्कस किया जाए। इसी में समझदारी है। बीच-बीच में बाबूजी को भी याद करेंगे जब हम हारने लगेंगे।

जमनादास - दिनेश बहुत बुरा हुआ भाई बावूजी हमें इतनी जल्दी छोड़कर चले गए। उम्मीद नहीं थी।

दिनेश -अच्छा, तुम तो पिछले साल ही कह रहे थे कि छग्गूलाल हलवाई से पहले गोवर्धन के बाबूजी को गुजरना चाहिए था, इतना उमर हो गई है। सच है तुम पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। कभी किसी को कहते हो, कभी किसी को। जमनादास - अच्छा, अच्छा ठीक है। जो बोलना है इतनी जोर से बोलने का क्या औचित्य?

इसीबीच गोवर्धन के बाबूजी के मौत की खबर भ्रष्टाचार की तरह पूरी सोसायटी में फैल गई। लोगों की भीड़ जुटने लगी। जो लोग बाबूजी को नमस्कार करने से भी कतराते थे, वह भी दहाड़े मार मारकर रो रहे थे। कई बार तो ऐसा प्रतीत हो रहा था कि गोवर्धन के नहीं पूरे सोसायटी के बाबूजी गुजर गए हों। तभी जमनादास का दिमाग चला शवयात्रा में नहीं कम से कम तस्वीर पर ही कुछ कमाया जाए। हमने अपनी शक्ल पर करुणमयी भाव लाए। और गोवर्धन को कहा लाओ बाबूजी की तस्वीर बड़ी करवा लें। लगाने के काम आएगी। क्योंकि अब केवल तस्वीर में ही देखकर बाबूजी को प्रणाम सीख लिया करेंगे। हमें यकीन है कि बाबूजी कहीं भी पर तस्वीर से हमें आशीर्वाद जरूर दिया करेंगे। गोवर्धन - भाषण पर अल्पविराम लगाएं और मुद्दे की बात बताएं। मुद्दा कुछ नहीं मेरे बड़े भाई। बस उनकी एक तस्वीर दे दो जिसे प्ता ेम में मढ़वा दें। गोवर्धन - आप कितने महान हैं। कितना सोचते हैं आप। लेकिन आप चिंता करें, बाबूजी की ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर हमारे पास रखी हुई है। तपाक से जमनादास बोले- हे राम क्या कह रहे हो। ब्लैक एंड व्हाइट में पिताजी को देखा करोगे। उनकी आत्मा को कष्ट होगा। रंगीन जमाना है। दो ब्लैक एंड व्हाइट को रंगीन बनवाएंगे। उनकी फैवरिट फिल्म मुगले आजम भी तो ब्लैक एंड व्हाइट से रंगीन बनी है। तो उनकी तस्वीर क्यों नहीं। इससे सोसायटी में भी अच्छा असर प़ड़ता है कि कम से कम जीते जी तो इन नालायकों ने कभी पूछा नहीं, चलो मरने के बाद सही एक रंगीन तस्वीर तो बनवा ली। गोवर्धन ने ठंडी सांस ली और कहा- बाबूजी की तस्वीर की रंगीन और ब्लैड एंड व्हाइट से कोई फर्क नहीं पड़ता है। बाबूजी तो हमारी दिलों में समाए हुए हैं। फिर उनकी तस्वीर पर अन्यथा पैसा खर्च करने का क्या औचित्य? जमनादास को ये बात पसंद नहीं आई और वह शोकसभा छोड़कर शोक में चले गए। ये पता नहीं किसलिए बाबूजी का शोक या कमीशन का शोक। गोवर्धन मिसेस गोवर्धन ने सारा समारोह बड़े सफलतापूर्वक बिना निवेश किए सफलता पूर्वक किया....