प्रत्यक्ष - माँ, माँ, माँ!
माँ - आराम से, आराम से।
माँ - लाओ, बैग और बोतल।
प्रत्यक्ष - नही माँ, मै बड़ा हो गया हूँ।
माँ - अच्छा जी, सुबह से दोपहर में बड़े हो गये ?
प्रत्यक्ष - जी हाँ, अब से मै शरारत भी नहीं करूंगा।
माँ - क्या हुआ, टीचर ने डांटा?
प्रत्यक्ष - नहीं।
माँ - किसी ने कुछ कहा?
प्रत्यक्ष - नहीं, माँ।
माँ - तो फिर मेरा बच्चा शरारत क्यों नहीं करेंगा ?
प्रत्यक्ष - मैं अब बड़ा और अच्छा बच्चा हो गया हूँ ।
माँ- कुछ तो बात है, बोलो?
प्रत्यक्ष - माँ, होली आ रही है।
माँ- अब समझी, पिचकारी चाहियें?
प्रत्यक्ष - नहीं।
माँ - फिर क्या हो सकता है?
प्रत्यक्ष - सोचिये, सोचिये?
माँ- गुब्बारे नहीं दिलाऊंगी, उससे चोट लगती हैं। गुब्बारे तो हरगिज़ नहीं।
प्रत्यक्ष - नही माँ, गुब्बारे भी नही।
माँ - फिर क्या हो सकता है ?
प्रत्यक्ष - सोचिये, सोचिये?
माँ - पता नही, तुम ही बोल दो।
प्रत्यक्ष - माँ होली पर गुजिया खाये?
माँ - जल्दी चलो, बस ना छूट जाये।
प्रत्यक्ष - माँ गुजिया!
माँ - मैंने कहा ना जल्दी चलो, आओ गोद में ले लेती हूँ।
प्रत्यक्ष - नही छूटेगी बस, आप ने कुछ कहा नही।
माँ- किस बारे मे।
प्रत्यक्ष - गुजिया के बारे मे।
माँ- गुजिया खायेंगे , पर अगले साल।
प्रत्यक्ष - नही मुझे इस बार ही खानी है।
माँ - बेटा ज़िद नही करते , अगले साल पक्का ।
प्रत्यक्ष - ओक्के ।
माँ - अच्छा गुब्बारे ले लेना ।
प्रत्यक्ष - नहीं मुझे कुछ नहीं चाहिये।
माँ- राजा बेटे गुस्सा नही करते।
प्रत्यक्ष - भ्रष्टाचार रोज़ गुजिया लाता है, क्या हम होली पर भी नही खा सकते?
माँ - बेटा हमे दूसरे क्या खाते है और क्या पहनते है वो नहीं देखना चाहिए। पता है हमारे चुने हुए वो लोग कहते है
" चीनी न खाने से मौत नहीं आती और शक्कर से बने सामान से मधुमेह (बीमारी) बढती है। "
माँ - प्रत्यक्ष, मधुमेह से मर भी सकते है।
प्रत्यक्ष - पर..........ओक्के !
प्रत्यक्ष - हम अब इतने गरीब हो गये है की गुजिया भी नही खा सके?
तभी जमाखोर (कार) आई और माँ को कुचल के चली गयी
प्रत्यक्ष - माँ, माँ, माँ - उठो मै मज़ाक कर रहा था, माँ उठो मै गुजिया नही खाऊँगा, ना ही कभी खाने को बोलूँगा।
नमस्कार हम हैं भरत के नंबर १ समाचार चैनल जो ये सबसे पहले दिखा रहे है, आइये लाश के पास रोते हुए बच्चे से पूछे?
रिपोर्टर-ये औरत मर गयी, आपको कैसा लग रहा है?
प्रत्यक्ष - ये औरत मेरी माँ है ।
रिपोर्टर - एक और ब्रेअकिंग न्यूज़ - ये लाश इस मासूम की माँ की है, लोग कितने संवेदनहीन हो गये है की एक मासूम की माँ को सरे बाज़ार मार दिया गया।
कैमरा मैंन - बेटा जरा कैमरे मे देख कर रो - तुम्हारा चेहरा छुप रहा है। जोर से रो तुम्हारी माँ मर गयी है।
प्रत्यक्ष - नही मेरी माँ मर नही सकती।
रिपोर्टर - हाँ पर ये स्पेशल रिपोर्ट जब तक ख़तम होगी तब तक ज़रूर मर जायेंगी।
प्रत्यक्ष - नही, मेरी माँ नही मर सकती ।
रिपोर्टर - क्यों ?
प्रत्यक्ष - माँ कह रही थी शक्कर खाने से मर सकते है पर उन्होंने खायी ही नही, फिर माँ कैसे प्राण त्याग सकती है ?
रिपोर्टर - ये बच्चा कुछ अजीब बात कर रहा है, इसे छोडिये और आप इस घटना का मज़ा लीजिये।
रिपोर्टर - और आप लोग कही मत जाइए, हम इस औरत की आखरी सांस और इस लड़के के आखरी आसूं तक कैमरे के साथ बने रहेंगे। तब तक आप अपनी राय sms करें और जो सब से ज्यादा sms करेगा उसे होली की गुजिया का डब्बा मिलेंगा। जी हां आप ने सही सुना - गुजिया का डब्बा जहाँ आज लोग ५० रुपैये की शक्कर चाय में नहीं ड़ाल पा रहे है उस समय हम आप को दे रहे है गुजिया का डब्बा। तो ये मौका छोडिये नहीं - हम जल्द हाज़िर होते है हमारी ब्रेअकिंग न्यूज़ के साथ - आखरी सांस आखरी आंसू.......
Saturday 13 February 2010
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