Monday, 31 January 2011

मैं क्यों हार मानूं

मैं क्यों हार मानूं।
मैं अभी हारा नहीं हूं।।
सूर्य में रोशनी है बाकी।
शरीर में रक्त बहाव है बाकी।।
मैं क्यों हार मानूं।
मैं अभी हारा नही हूं ।।
चंद्रमा में चमक है बाकी।
पैरों में चाल है बाकी।।
मैं क्यों हार मानूं ।
मैं अभी हारा नही हूं ।।
पृथ्वी में गति है बाकी।
मुझ में धैर्य है बाकी।।
मैं क्यों हार मानूं........

7 comments:

  1. waah ji waah...
    aap haar maan bhi kaise sakte hain... abhi to bahut se mukaam baaki hai...

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  2. bahut hi achi aur prernadayi rachna

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  3. पैरों में चाल है बाकी।।
    मैं क्यों हार मानूं ।
    मैं अभी हारा नही हूं ।।
    पृथ्वी में गति है बाकी।
    मुझ में धैर्य है बाकी।।
    मैं क्यों हार मानूं........

    आत्म विश्वास से परिपूर्ण कविता ...आपका जज्बे को सलाम ...आपका शुक्रिया

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  4. सुदर..... हार मानना अच्छी बात नहीं....

    "जब तक ना चूक जाए साँसों की शोर
    हम साबूत रखे अपने आशा की डोर"

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  5. बहुत सुंदर ...सकारात्मक सोच लिए प्रभावी अभिव्यक्ति

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  6. आत्म विश्वास से परिपूर्ण कविता|

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