मैं क्यों हार मानूं।
मैं अभी हारा नहीं हूं।।
सूर्य में रोशनी है बाकी।
शरीर में रक्त बहाव है बाकी।।
मैं क्यों हार मानूं।
मैं अभी हारा नही हूं ।।
चंद्रमा में चमक है बाकी।
पैरों में चाल है बाकी।।
मैं क्यों हार मानूं ।
मैं अभी हारा नही हूं ।।
पृथ्वी में गति है बाकी।
मुझ में धैर्य है बाकी।।
मैं क्यों हार मानूं........
Monday, 31 January 2011
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waah ji waah...
ReplyDeleteaap haar maan bhi kaise sakte hain... abhi to bahut se mukaam baaki hai...
bahut hi achi aur prernadayi rachna
ReplyDeleteपैरों में चाल है बाकी।।
ReplyDeleteमैं क्यों हार मानूं ।
मैं अभी हारा नही हूं ।।
पृथ्वी में गति है बाकी।
मुझ में धैर्य है बाकी।।
मैं क्यों हार मानूं........
आत्म विश्वास से परिपूर्ण कविता ...आपका जज्बे को सलाम ...आपका शुक्रिया
सुदर..... हार मानना अच्छी बात नहीं....
ReplyDelete"जब तक ना चूक जाए साँसों की शोर
हम साबूत रखे अपने आशा की डोर"
बहुत सुंदर ...सकारात्मक सोच लिए प्रभावी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआत्म विश्वास से परिपूर्ण कविता|
ReplyDeletebahut sunder.....
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