ना जाने आज सुबह मैंने कैसे अपने भतीजे से पूछ डाला।
बेटा तुम्हारा चरित्र कहां है दिखाई नहीं दे रहा?
बेटा मुस्करा कर बोला वो तो कब का खो गया।
कैसे तुम्हारी इतनी मूल्यवान वस्तु खो गई?
और तुमने बताया भी नहीं ,बेटा फिर मुस्कुराया।
हां जब खो गई थी तो मुझे भी अफसोस हुआ था।
मगर जब ज्ञात हुआ वस्तु खोई है तो गम लुप्त हो गया।
वैसे भी दादी ही तो कहती हैं वस्तु का मोह नहीं होना चाहिए।
मगर बेटा चरित्र आजकल मिलता कहां है।
ना मिले मुझे चाहिए भी नहीं उसको लादने से मेरी लुक खराब होती है।
जीवन जीने में भी तकलीफ होती है ,फैशन में भी तो नहीं है चरित्र रखना।
बेटा हमारी खानदानी धरोहर थी।
चाचा मगर किस काम की थी।
जिसे गरीब भी न रख सके, रोटी भी न आ सके।
जिसे रखने पर सब दया का भाव दिखाते हैं।
बेचारा चरित्रवान कहकर पुकारते हैं।
Sunday 25 July 2010
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वाह वाह क्या बात है.ऐसा करार व्यंग्य. साधुवाद.
ReplyDeleteवाह क्या तीखा प्रहार है............शानदार !! सच आजकल लोगों का चरित्र कहीं खोता नजर आता है जिसकी आपने अच्छी व्याख्या की है..........बधाई स्वीकार करें !!
ReplyDeletebehtareen!! a solid punch!!
ReplyDeleteना मिले मुझे चाहिए भी नहीं उसको लादने से मेरी लुक खराब होती है।
ReplyDeleteजीवन जीने में भी तकलीफ होती है ,फैशन में भी तो नहीं है चरित्र रखना।
चाचा मगर किस काम की थी।
जिसे गरीब भी न रख सके, रोटी भी न आ सके।
जिसे रखने पर सब दया का भाव दिखाते हैं।
बेचारा चरित्रवान कहकर पुकारते हैं।
with both comments... awesome...
shaandar
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