हम जैसो के कारण ही देश उन्नति नही कर पाता है हर समय खाना खाना और कुछ नही बस आँख खुल गयी खाना शुरू जब तक आँख बंद ना हो जाये वैसे गलती पूरी हम जैसे लोगो की ही नही है।इस के लिये टी.वी वाले भी ज़िम्मेदार है। वो ही हर समय सच को गलत ढंग से प्रस्तुत करते है। कुछ समय पहले की ही बात है टी.वी पे दिखा रहें थे की लोग घास की रोटी खाने के लिए मजबूर है। रोटी खा रहें है उस में भी आलोचना... अरे भाई इश्वर का शुक्र करो की घास की रोटी तो खाने को मिल रही है, पर नही वो ये कहेगे घास की रोटी से पेट दुखता है। कभी भूख से पेट दुखा होता तब पता चलता की घास की रोटी से ज्यादा भूख से दर्द होता है। जब पेट मे चूहा कूद कूद के दम तोड़ देता है, मौत आँखों पर दस्तक देती है तो इन्सान घास की रोटी भी पिछले जन्मो के अच्छे कर्मो का फल समझ के खाता है और इश्वर का शुक्र अदा करता है कम से कम उन्होंने हमे पशु सामान तो समझा ।चलिये अब घर वालो की तरह आप भी चुप हो जा कहे उससे पहले खुद ही अपनी बात पर विराम लगता हूँ और प्रदर्शनी जाने की तैयारी करता हूँ सब सब्जियां , दालें और फल देखने आयेगे और कही ज्यादा भीड़ होने के कारण प्रदर्शनी बंद कर दी या पुलिस ने लाठी चला दी तो - सरकार का आम आदमी को दाल से फल दिखने का सपना विफल हो जायेगा और मेरे बच्चो का देखने का।
चित्र www.google .com से लिया गया है।
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क्या बात है आदित्य जी, सरकार की विफलता और मंहगाई की सफल होती साम्राज्यवादी प्रवित्ति ऐसी नौबत कभी भी ला सकती है जब अनेक चीजें विलुप्त होकर अजायब घर की शोभा बन जायेंगे. वैसे अजायबघर और जमाखोरों के गोदामों में जादा फर्क भी नहीं है. .
ReplyDeletemahngaai par ek karara kataksh kiya hai aapne bahut badiya
ReplyDeleteachchha vyangya
ReplyDeleteवाह क्या बात है...............करारा जवाब...............शुभकामनायें सुन्दर लेखन के लिए !!
ReplyDeleteबहुत उम्दा व्यंग्य!! लिखते रहिये..
ReplyDeleteDamdaar chiz hai bhai! Itne gahan vishay ko aap ne kitne aasan shabdon me kah diya! lekin ise kahani na kahiye!Paatron ke naam to aap ne jabardast chune hain!Agli prastuti ka intzar rahega!
ReplyDeletebahut khoob aditya ji... aap hamesh katakshh vyang karte hain...
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