Friday, 6 August 2010

प्रदर्शनी

हम सब प्रदर्शनी देखने जा रहे है वहा पर कई तरह की सब्जियां,दालें और फल होगे स्वादिष्ट और रसीले फल, मैंने तो कुछ बचपन मै खाये भी है{हाउ लककी आइ ऍम} पर पाषण और आर्य नेतो बस तस्वीरो में ही देखे है भाभी कल से समझा रही है सब तमीज़से और दूर से देखना कुछ छूना मत ,कही कुछ खराब मत कर देना वैसे पाषाण और आर्य शैतान भी हैजहाँ खाने की चीज़ देखते है मचलजाते हैं आप मानेंगे नही कल रात एक चैनल पर जैसे ही दाल कीतस्वीर दिखायी - दोनों जिद्द करने लगे की हमे चाहिये बड़ी मुश्किलसे माने और समझे की ये दाल की पुरानी तस्वीर है जैसे पिछले हफ्ते डायनासोर के बारे मै बतया था इसका मतलब ये तो नही की डायनासोर अभी तक है, वो इतिहास के पन्नो में है और इतिहास केपन्नो में जो कैद हो गया वो वापस कभी नही आटा हँ हँ आटा नहीआता क्या करू ऐसी हालत कर दी है की दिमाग पर भूख ही हावी रहती है
हम जैसो के कारण ही देश उन्नति नही कर पाता है हर समय खाना खाना और कुछ नही बस आँख खुल गयी खाना शुरू जब तक आँख बंद ना हो जाये वैसे गलती पूरी हम जैसे लोगो की ही नही हैइस के लिये टी.वी वाले भी ज़िम्मेदार है वो ही हर समय सच को गलत ढंग से प्रस्तुत करते है कुछ समय पहले की ही बात है टी.वी पे दिखा रहें थे की लोग घास की रोटी खाने के लिए मजबूर है रोटी खा रहें है उस में भी आलोचना... अरे भाई इश्वर का शुक्र करो की घास की रोटी तो खाने को मिल रही है, पर नही वो ये कहेगे घास की रोटी से पेट दुखता है कभी भूख से पेट दुखा होता तब पता चलता की घास की रोटी से ज्यादा भूख से दर्द होता है जब पेट मे चूहा कूद कूद के दम तोड़ देता है, मौत आँखों पर दस्तक देती है तो इन्सान घास की रोटी भी पिछले जन्मो के अच्छे कर्मो का फल समझ के खाता है और इश्वर का शुक्र अदा करता है कम से कम उन्होंने हमे पशु सामान तो समझा चलिये अब घर वालो की तरह आप भी चुप हो जा कहे उससे पहले खुद ही अपनी बात पर विराम लगता हूँ और प्रदर्शनी जाने की तैयारी करता हूँ सब सब्जियां , दालें और फल देखने आयेगे और कही ज्यादा भीड़ होने के कारण प्रदर्शनी बंद कर दी या पुलिस ने लाठी चला दी तो - सरकार का आम आदमी को दाल से फल दिखने का सपना विफल हो जायेगा और मेरे बच्चो का देखने का
चित्र www.google.com से लिया गया है।

7 comments:

  1. क्या बात है आदित्य जी, सरकार की विफलता और मंहगाई की सफल होती साम्राज्यवादी प्रवित्ति ऐसी नौबत कभी भी ला सकती है जब अनेक चीजें विलुप्त होकर अजायब घर की शोभा बन जायेंगे. वैसे अजायबघर और जमाखोरों के गोदामों में जादा फर्क भी नहीं है. .

    ReplyDelete
  2. mahngaai par ek karara kataksh kiya hai aapne bahut badiya

    ReplyDelete
  3. वाह क्या बात है...............करारा जवाब...............शुभकामनायें सुन्दर लेखन के लिए !!

    ReplyDelete
  4. बहुत उम्दा व्यंग्य!! लिखते रहिये..

    ReplyDelete
  5. Damdaar chiz hai bhai! Itne gahan vishay ko aap ne kitne aasan shabdon me kah diya! lekin ise kahani na kahiye!Paatron ke naam to aap ne jabardast chune hain!Agli prastuti ka intzar rahega!

    ReplyDelete
  6. bahut khoob aditya ji... aap hamesh katakshh vyang karte hain...

    ReplyDelete