Sunday, 7 December 2025

सपनों का आसमान बिक गया, फर्श पर रह गया इंसान

 कभी कहा गया था कि “हवाई चप्पल पहनने वाला भी हवाई जहाज़ में दिखना चाहिए।” यह वाक्य केवल चुनावी नारा नहीं था, यह आम आदमी के हक का, उसकी आकांक्षा का और देश के उजले आसमान का प्रतीक था। लेकिन आज वही आसमान एक निजी एयरलाइन की मनमानी का शिकार बन गया है। एयरपोर्ट पर लोग भूखे, थके, और असहाय फर्श पर पड़े हैं। गर्भवती महिलाएं दर्द से तड़प रही हैं। कोई पिता अपनी बेटी के लिए लहूलुहान होकर मदद मांग रहा है। कोई पति अपनी पत्नी का ताबूत लेकर हरिद्वार में अंतिम संस्कार तक नहीं पहुँच पा रहा। कोई अपनी शादी के रिसेप्शन से छूट गया है। यह दृश्य किसी तकनीकी खराबी का नहीं, किसी प्राकृतिक आपदा का नहीं—यह इंडिगो के अहंकार और सुनियोजित ब्लैकमेल का प्रत्यक्ष प्रमाण है।


इंडिगो, जिसके पास भारत के घरेलू हवाई बाजार का लगभग 65–68 प्रतिशत हिस्सा है, 3 दिसंबर से 7 दिसंबर तक देशभर में उड़ानों को रद्द कर जनता को बंधक बना रहा। पांच दिनों में हजारों फ्लाइट रद्द हुईं, लाखों यात्री फंसे, अरबों रुपये का नुकसान हुआ, और सबसे बड़ा नुकसान हुआ—सामान्य नागरिकों के सपनों और भरोसे का। स्क्रीन पर बार-बार चमकता “कैंसिल्ड” शब्द किसी यात्री की आँखों में भरी पीड़ा की व्याख्या कर रहा था। मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, अहमदाबाद से लेकर छोटे शहर गुवाहाटी, भुवनेश्वर, रांची तक—हर जगह यही दृश्य। जो टिकट 3,000 रुपये की थी, वह 4–5 हज़ार तक पहुंच गई। लोग ट्रेन की जनरल बोगियों का सहारा लेने को मजबूर हुए। जो फंस गए, वे फर्श पर पड़े, भूखे-प्यासे और थके हुए।

यह घटना सिर्फ मुनाफाखोरी नहीं थी। यह एक सुनियोजित ब्लैकमेलिंग रणनीति थी। नागरिक उड्डयन महानिदेशालय(Directorate General of Civil Aviation)ने जुलाई 2025 में पायलटों की सुरक्षा के लिए नए नियम लागू किए। हर पायलट को पर्याप्त आराम, सीमित रात की ड्यूटी और सप्ताह में 48 घंटे की छुट्टी का अधिकार मिला। एयर इंडिया, अकासा, विस्तारा और स्पाइसजेट ने नियमों का पालन करते हुए पायलटों की भर्ती बढ़ाई। केवल इंडिगो ने विरोध किया। उसके पास प्रति विमान केवल 13 पायलट थे, जबकि अन्य एयरलाइंस में यह संख्या 19–26 थी। नियम लागू होते ही अधिक पायलट रखने पड़ते और मुनाफा घटता। इसका हल खोजने के बजाय उसने देश और यात्रियों को बंधक बनाना चुना।

सरकार को मजबूर होना पड़ा कि वह नियम स्थगित करे। यात्रियों की सुरक्षा, पायलटों की नींद, अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानक—सबके लिए आड़े हाथ आए। यह केवल इंडिगो की जीत नहीं थी; यह भारतीय व्यवस्था की हार थी। यह दिखाता है कि जब मुनाफा इंसान की जान से बड़ा हो जाता है, तो जनता की पीड़ा तुच्छ हो जाती है। एयरपोर्ट पर लेटे लोग केवल यात्री नहीं, वे उस व्यवस्था का आईना हैं जिसने अपने नागरिक को असहाय छोड़ दिया।

सबसे दुखद यह था कि क्रोध और निराशा निर्दोष ग्राउंड स्टाफ पर उतरी, जबकि असली दोषी एयरकंडीशंड दफ्तरों में बैठे बयान दे रहे थे। गर्भवती महिलाएं, कैंसर मरीज, अंतिम संस्कार से वंचित लोग, शादी और यात्रा से छूटे युवकों—इनकी कीमत केवल “हम खेद व्यक्त करते हैं” जैसी औपचारिकताओं में समेट दी गई।

यह घटना केवल इंडिगो की समस्या नहीं है। यह पूरे भारतीय तंत्र की कमजोरी का सबक है। क्या एक निजी कंपनी इतनी ताकतवर हो सकती है कि वह पूरे देश को ब्लैकमेल कर दे और नियम बदलवा ले? क्या भारतीय नागरिक और उसकी सुरक्षा केवल आर्थिक आंकड़ों के लिए बलिदान हो सकते हैं? जब हवाई चप्पल पहनने वाले का सपना फर्श पर टूटता है और हवाई जहाज़ केवल अमीरों का प्रतीक बन जाता है, तब स्पष्ट होता है कि देश की नीतियाँ कमजोर हैं और कंपनियाँ अत्यधिक ताकतवर।

आज यह संदेश साफ है—राष्ट्र तब तक सशक्त नहीं होगा जब तक न्याय, करुणा और जवाबदेही सत्ता और बाज़ार के बीच संतुलित न हों। यात्रियों की थकान, उनकी पीड़ा, उनके अधूरे संस्कार और बिखरे हुए सपनों को केवल “माफी” कहकर छिपाया नहीं जा सकता। यह भारत का शर्मनाक क्षण है। यदि अब सुधार नहीं हुआ, तो यह केवल इंडिगो की जीत नहीं, बल्कि एक पूरे भारत की हार होगी।

फर्श पर बिखरे इंसान, थकान और आंसू में लिपटे,
सपनों का आसमान अब सिर्फ मुनाफ़े का खेल बन गया।
जहाँ करुणा की कीमत नहीं, वहां न्याय भी रुक जाता है,
और रोष का गीत सिर्फ खामोशी में गूँजता रह जाता है।

1 comment:

  1. समस्या की जड़ पेड़ हो चुकी है | जनता सब समझती है | जो कराया जा रहा है और जो कर रहा है वो परदे के पीछे मुह छुपाये हंस रहा है |

    ReplyDelete