ऐ मजदूर क्यों अपना वक्त जाया करता है,
मात्र एक रोटी के लिए जीवन यापन करता है ।
क्यों नहीं तू भी कल्पना की चादर ओढ़ स्वप्न नगरी में जीवन व्यतीत करता है,
कम से कम रोटी को तो करीब पाएगा तेरा जीवन तो इसी में तर जाएगा।
Saturday 1 May 2010
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बहुत सही कहा आपने
ReplyDeleteरोटी कमाना छोड़ यदि वो सो जायेगा
तरेगा नहीं तो क्या हुआ कम से कम नींद में ही मर तो जायेगा
nice
ReplyDeleteमजदूर और मानवीय दुखों को परिभाषित करती पोस्ट / उम्दा सोच /
ReplyDeleteaaditya ji bhavnayen sahi kah rahe ,aaj majdoor kal majdoor hamesha rahega majboor majdoor .
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