ना जाने क्यों मेरी आंखों में अखरती है,
क्यों मुझे अहसास कराती है अपनी भूलों का।
दीवार पे लटकी तस्वीर,
घर के कोने में लटकी तस्वीर।।
ना जाने क्यों मुझे विचलित करती है,
पुरानी हर बातों को ताजा कर देती है।
दीवार पे लटकी तस्वीर,
घर के कोने में लटकी तस्वीर।।
ना जाने मुझे क्यों प्रश्नजाल में फंसा देती है,
उत्तर कहने के पश्चात भी एक नया प्रश्न उजागर कर देती है।
दीवार पे लटकी तस्वीर,
घर के कोने में लटकी तस्वीर।।
ना जाने क्यों मेरा ध्यान खींच लेती है,
बीती हुई बातें शब्द सहित बता देती है।
दीवार पे लटकी तस्वीर,
घर के कोने में लटकी तस्वीर।।
ना जाने क्यों मुझे भयभीत कर देती है,
बच्चों को झूठी कहानी कहने पर विवश कर देती है।।
दीवार पे लटकी तस्वीर,
घर के कोने में लटकी तस्वीर।।
ना जाने क्यों मुझे भूत से भविष्य की ओर ले जाती है,
इस तस्वीर में मुझे अपनी तस्वीर क्यों नजर आती है।
दीवार पे लटकी तस्वीर,
घर के कोने में लटकी तस्वीर।।
चित्र www.google.com से लिया गया है।
Saturday, 19 June 2010
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Hirdayisparshi
ReplyDeleteati sundar!!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteutkrisht rachna...badhai...
ReplyDeleteuper vali post mai spelling mistake ho gai thi isliye delete kar di.
Diwar pe latki tasveer mujhe bhi bhavisya ki yaad dilati hai......lekin ye bhi to hai, ki hamara aane wala kal, hame itna bhi yaad rakhega kya, jo wo tasveer me jagah dega........:)
ReplyDeleteek yaadgaaar rachna.......
nimantran: haamre blog pe aane ka..:)
sach hee to hai....
ReplyDeletesatya kaha aapne...
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