Wednesday 13 January 2010

असमंजस्य

माँ नमस्कार,
कैसी है आप?
और
मै वैसी ही हू जैसी जन्म के समय थी डरी सहमी हर साँस के लिए संघर्ष करती
माँ आज मेरी नौकरी चली गयी, ऐसा लगा मानो जीने की आखिरी आस टूट गयी
सरकार कहती है मैं गलत काम करती हू लोगो को भ्रमित करती हू मेरे काम से समाज कलंकित होता है ।
माँ ज्ञानी व बुद्धिजीवी लोग कहते है तो सही ही कहते होगे पर ये समझ नही आ रहा है, मैं तो उस संगीत पर ही ताल मिलाती थी जिन पर सम्मानित अदाकारा थिरकती है और वो भी केवल परदे पर ही नही ज्ञानी व बुद्धिजीवी के कार्यक्रमों में भी
फिर मेरे परिवार की ही रोटी क्यों छिनी ? ये सम्मानित अदाकारा भी होटलों मे थिरकती है जिस के लिए इन्हें १ से २ करोड़ मिलते है एक रात के (मुझे तो महीने के २ हजार मिलते थे) माँ इनके होटल मे थिरकने से लोगो भ्रमित नही होते है?
माँ अदाकारा का सहारा लेके मैं अपने पाप से नही बचने की कोशिश कर रही हू बस असमंजस्य में हू की एक सा कम करने से सिर्फ मुझे क्यों सजा ? मैं तो मज़बूरी मे ताल से ताल मिलाती थी। २ हजार मे खोली (एक छोटा सा कमरा) का भाडा, खाना, बच्चो के कपडे, इनकी दवाई ……. इनकी कौंनसी मज़बूरी मेरी मज़बूरी से बड़ी है की इन्हें थिरकने की आज़ादी है और मुझ गरीब को रोटी कमाने की भी आज़ादी नही?
सरकार ने समाज की रक्षा के लिए नौकरी छीन ली पर कुछ सोचा हम अब करेंगे क्या या हम भी किसानो की तरह आत्महत्या करना शुरू करदे?
१०० दिन के काम देने की बात हो रही है वो भी गाँवो में, चलो काम न होने के कारण शहर आये थे अब वापस गाँवो में चले
माँ ये हमे इतना कितना वेतन दे देंगे की १०० दिन काम कर के हम ३६५ दिन जी लेंगे?
माँ आ के मुझे उपर ले जाओ बड़ी याद आ रही है
आप की
गरीबी

2 comments:

  1. समाज मे दोहरापन या साफ़-साफ़ कहें तो दोगलापन तो है और ये हर मामले मे साफ़ नज़र आता है,जिस के पास रूपये होते हैं और वो बिना टिकट रेल यात्रा करते पकड़ाता है तो पूरी बेशर्मी से पर्स निकालता है और फ़ाईन पटा कर आगे सफ़र कर लेता है और जिस के पास फ़ूटी कौड़ी नही होती उसे चेकर अगले स्टेशन पर पुलिस के हवाले कर देता है और तीन माह के लिये जेल चला जाता है।ये हमारे देश का कानून है।बहुत सही लिखा वैसे सारे अन्याय,पक्षपात की वजह गरीबी ही है।गरीबी हटाते हटाते पता नही कितने नेता खुद इस दुनिया से हट गये।

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  2. Anilji, I m sorry to say this but the example that you have mentioned in your comment is irrelevent to Adityaji's letter..Nowhere it highlights the beautiful thoughts expressed by Adityaji.
    Gareebi ek badi samasya hai par usse bhi badi aur bhayanak samasya logon ki soch hai gareebon ke prati.....Agar yeh soch aur bartav badal jaye to gareebi nahi rahegi....
    Adityaji,yet another concept so beautifully and neatly presented...Great work...

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