Monday, 3 November 2025

स्वप्न से स्वर्ण तक — भारत की बेटियों का महागौरव

 "At the stroke of the midnight hour, when the world sleeps, India will awake to life and freedom."

पंडित जवाहरलाल नेहरू के इन अमर शब्दों से अपनी बात प्रारंभ करता हूँ — क्योंकि  2 नवंबर 2025 की आधी रात, जब नवी मुंबई के आकाश में तिरंगा लहरा रहा था, तब सचमुच भारत फिर एक बार जीवन और स्वतंत्रता के नए अर्थ के साथ जाग उठा था।


वह सिर्फ़ कप जीत की खुशी नहीं थी — वह भारत माता की उन असंख्य बेटियों का सिर ऊँचा करने का क्षण था, जिनसे सदियों से कहा जाता रहा — “यह तुम्हारे बस की बात नहीं।”
मगर उस रात मैदान में खड़ी हरमनप्रीत, स्मृति, शेफाली, दीप्ति, अमनजोत और उनकी समूची टोली ने इस वाक्य को इतिहास बना दिया। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि सीमाएँ केवल मैदान की नहीं होतीं, वे सोच की भी होती हैं — और भारतीय नारी ने अब सोच की हर सीमा तोड़ दी है।

यह जीत गेंद और बल्ले की नहीं, आत्मा और साहस की विजय है।
यह उस माँ की आँखों की चमक है, जो अब अपनी बेटी से कह सकेगी — “हाँ, तुम कर सकती हो।”
यह उस पिता के विश्वास की लौ है, जो अब संदेह में नहीं, गर्व में जियेगा।

आज से यह देश अपनी बेटियों को सिर्फ़ फूलों में नहीं, फौलाद में भी देखेगा।
अब कोई बेटी “लड़का होकर ही” नहीं, बल्कि “लड़की होकर भी” मैदान में उतरेगी और तिरंगे को ऊँचा उठाएगी।

पहले जो लोग महिला क्रिकेटरों को उनके चेहरे या “वायरल रील” से पहचानते थे, अब उन्हें उनके कवर ड्राइव, यॉर्कर और रनआउट्स से पहचानेंगे।
अब “नेशनल क्रश” शब्द किसी चेहरे से नहीं, बल्कि कप्तान के जुनून और ऑलराउंडर के साहस से जुड़ा होगा।

जिस तरह 1983 में कपिल देव की टीम ने भारत को विश्व क्रिकेट का विजेता बनाया था, उसी तरह 2025 में हरमनप्रीत कौर की यह वीरांगना-सेना भारत को महिला क्रिकेट की महाशक्ति बना चुकी है।
दोनों जीतें दो युगों की नहीं, एक ही आत्मा की अभिव्यक्ति हैं — विश्वास की, संघर्ष की, राष्ट्रगौरव की।

जब यह ट्रॉफी भारत ने जीती, तो हर घर का आँगन दीपोत्सव बन गया।
किसी ने हँसकर बधाई दी, किसी ने रोकर।
और 3 नवंबर की सुबह जब सूरज निकला, तो ऐसा लगा मानो उसकी पहली किरण कह रही हो —
“अब भारत की बेटियाँ इतिहास नहीं, भविष्य लिखेंगी।”

अब हर बच्ची के सपनों में बल्ला और तिरंगा साथ-साथ होंगे।
वह कहेगी — “मुझे स्मृति मंधाना बनना है… हरमनप्रीत जैसी कप्तान बनना है… दीप्ति जैसी ऑलराउंडर बनना है।”

यह मात्र एक जीत नहीं — यह उद्घोष है कि भारत की बेटियाँ अब किसी मंच की सीमित परिधि में नहीं बंधेंगी।
उनका क्षितिज अब आसमान नहीं — उसके भी पार है।

जय माँ भारती!