Saturday, 31 May 2025

ऑपरेशन सिंदूर की आंच और पाक-परस्त विमर्श की राख

 सिंगापुर में आयोजित रक्षा-सुरक्षा सम्मेलन में भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने जब ऑपरेशन सिंदूर को लेकर अपनी बात रखी, तो यह न केवल भारत की सैन्य सफलता की पुनः पुष्टि थी, बल्कि उन सब झूठों का पर्दाफाश भी, जो पाकिस्तान और उसके अंतरराष्ट्रीय मुखबिरों द्वारा प्रचारित किए जा रहे हैं।

CDS ने बिल्कुल स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारत ने जो लक्ष्य तय किए थे, वे पूरे किए। बहावलपुर, मुरीदके, मुजफ्फराबाद जैसे आतंक की फैक्ट्रियों को नेस्तनाबूद करना और पाकिस्तान की वायुसेना की रीढ़ तोड़ना — यही ऑपरेशन सिंदूर का ध्येय था, और यही हुआ भी। सेटेलाइट इमेज हों या जमीनी तस्वीरें — सब इस बात की गवाही देते हैं कि पाकिस्तान की रक्षा-संरचना बुरी तरह ध्वस्त हुई।

लेकिन हैरानी तब होती है, जब कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी, मीडिया संस्थान और विपक्षी नेता इस स्पष्ट विजयगाथा में से "विमान क्षति" जैसी बातें छांटकर पाकिस्तान के झूठे दावों को प्रमाणिकता देने में लग जाते हैं। जिस क्षति का उल्लेख स्वयं ऑपरेशन सिंदूर के समय ही कर दिया गया था — उसे अब “पहली बार की स्वीकारोक्ति” बताकर कौन-से हित साधे जा रहे हैं?

कौन-से एजेंडे को खाद-पानी दिया जा रहा है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति के “परमाणु युद्ध” वाले अनर्गल प्रलाप को आधार बनाकर भारत को जवाबदेह ठहराने की कोशिश होती है? क्या यह भारत की संप्रभुता को नीचा दिखाने का सुनियोजित प्रयास नहीं है?

और दुख इस बात का है कि पाकिस्तान के दुष्प्रचार में केवल चीन या पश्चिमी मीडिया ही सुर नहीं मिला रहे, हमारे अपने देश के कुछ नेता भी वही राग अलापने लगे हैं। कांग्रेस नेताओं द्वारा CDS चौहान के बयान की तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत की गई व्याख्या क्या राष्ट्रहित में है? या फिर यह पाकिस्तान के मनोबल को बढ़ावा देने की सस्ती राजनीति है?

सेना जब युद्धभूमि में रणनीति बदलती है, तो वह सैन्य कौशल कहलाता है — न कि विफलता। सैन्य भाषा में इसे "लक्ष्य की पूर्ति के लिए साधनों का अनुकूलन" कहते हैं। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि राष्ट्रविरोधी विमर्श इस बात को समझने की न इच्छा रखता है, न ही योग्यता।

CDS चौहान ने न पाकिस्तान की भाषा बोली, न पश्चिम का एजेंडा स्वीकारा। उन्होंने केवल यह स्पष्ट किया कि भारत ने अपने सैन्य लक्ष्य पूरे किए — चाहे उसके लिए कुछ लड़ाकू विमानों की क्षति ही क्यों न हुई हो। लेकिन यदि यह क्षति पाकिस्तान की रीढ़ तोड़ने में सहायक हुई, तो क्या वह बलिदान नहीं कहलाएगा?

इसलिए अब आवश्यकता है — केवल सैन्य मोर्चे पर नहीं, वैचारिक मोर्चे पर भी सजग रहने की। ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद जो वैचारिक युद्ध चलाया जा रहा है — उसमें हमें पाकिस्तान-परस्त नैरेटिव को सिरे से खारिज करना होगा। भारत की सेना ने जो किया, वह भारत की संप्रभुता और सुरक्षा के लिए आवश्यक था। और उसका सम्मान हर देशभक्त भारतीय का कर्तव्य है।

 

जय माँ भारती🙏🏽

Friday, 30 May 2025

जहाँ शब्द चूकते हैं, वहाँ ब्रह्मोस बोलता है

 वर्षों तक हमने सहा। हमारे मंदिर जले, हमारे सैनिक शहीद हुए, हमारे धैर्य की परीक्षा होती रही। हमने यथाशक्ति


विश्व को शांति का संदेश दिया। परंतु जब कोई राष्ट्र हमारे संयम को हमारी सीमा समझने लगे—तब भारत 'मर्यादा पुरुषोत्तम' नहीं, 'परशुराम' बनता है।

‘ऑपरेशन सिंदूर’ इसी चेतना का परिणाम था। और ब्रह्मोस—उस चेतना की ज्वाला!

यह कोई साधारण मिसाइल नहीं। यह भारत की चेतावनी नहीं, उस चेतना की वापसी है जो पांडवों के धैर्य के बाद अर्जुन की प्रत्यंचा खींचती है। अब भारत को उकसाना केवल राजनीति नहीं, आत्मघाती भूल है।

पांच सूत्र, जो शांति के लिए हैं—पर यदि आवश्यक हो, तो संहार के लिए भी

1. अब सीमा रेखाएँ नहीं, दुश्मन के अड्डे भी निशाने पर
ब्रह्मोस की मारक सीमा 800 किलोमीटर तक पहुँचेगी। लाहौर, रावलपिंडी, मियांवाली—अब ये शब्द केवल नक्शे पर नहीं, भारतीय सैन्य सोच की स्क्रीन पर होंगे।

2. गति की वह रेखा, जहाँ विज्ञान भी थमे
मैक-5 की हाइपरसोनिक गति! अर्थात, जब दुश्मन सोचेगा—तब तक ब्रह्मोस उसकी नींव तक पहुँच चुका होगा।

3. हर भारतीय विमान—अब आकाश का वज्र बनकर दहाड़ेगा
ब्रह्मोस अब हल्के विमानों से भी दागा जाएगा। राफेल, तेजस, सुखोई—अब आकाश से भारत की गर्जना करेंगे।

4. विस्फोट नहीं—शत्रु के अभिमान का संपूर्ण विध्वंस
इस बार विस्फोटकों में केवल शक्ति नहीं, भारत के भीतर संचित आक्रोश भी होगा—जो अपने हर प्रहार से यह कहेगा कि 'अब भारत को मतमांडो!'

5. धरती, आकाश, जल—तीनों से घात
नवीन पनडुब्बी परियोजनाओं से भारत का शत्रु यह भी नहीं समझ पाएगा कि प्रहार आएगा कहाँ से। अब हमारे उत्तर दिशाहीन नहीं, अचूक होंगे।

सिंदूर से रचा प्रतिशोध

‘ऑपरेशन सिंदूर’ में जब ब्रह्मोस दहाड़ा, तो उस दहाड़ में केवल तकनीक नहीं थी—उसमें कंधे पर बेटे की तस्वीर लिए बैठी माँ का मौन था। उसमें वह चीख थी, जो शहीद की बेटी ने रोकी थी। और वह ज्वाला थी, जो भारत की आत्मा में बरसों से ठंडी राख के नीचे जल रही थी।

अब वही ज्वाला अस्त्र बनकर उठी है। और जब भारत अस्त्र उठाता है—तो वह केवल युद्ध नहीं करता, वह इतिहास बनाता है।

यह नई ब्रह्मोस नहीं—यह नवभारत की घोषणा है

अब भारत को हल्के में लेने की भूल मत कीजिए। यह वह भारत है—जो वेद पढ़ता है और शस्त्र भी उठाता है। जो पहले नीति कहता है, फिर नींव हिला देता है।

अब भारत रक्षात्मक नहीं, प्रहारक है।
अब भारत मौन नहीं, मुखर है।
अब भारत प्रतीक्षा नहीं करता, निर्णय करता है।

 

जय माँ भारती🙏🏽

Thursday, 29 May 2025

आतंकी और सांसद—हाइफ़नेट या हाइ-ट्रेशन ?

 देश की राजनीति में विपक्ष का मजबूत होना लोकतंत्र की नींव है। लेकिन जब विपक्ष, सत्ता का विरोध करते-करते राष्ट्रहित के खिलाफ खड़ा दिखाई दे, जब आतंकियों और जनप्रतिनिधियों में अंतर मिटाने की कोशिश हो—तब सवाल सिर्फ राजनीतिक नहीं रह जाते, तब सवाल उठते हैं नीयत पर।

कांग्रेस के संचार विभाग के महासचिव जयराम रमेश ने हाल ही में जो कहा, वह न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि शर्मनाक भी। उन्होंने आतंकवादियों और सांसदों को एक ही पलड़े में रख दिया—“आतंकी भी इधर-उधर घूम रहे हैं, सांसद भी घूम रहे हैं।” यह कथन क्या है? गलती? ग़फ़लत? या एक सोची-समझी रणनीति कि कैसे हर राष्ट्रीय अभियान को विवादित बनाकर देश की सुरक्षा भावना को खोखला किया जाए?

यह संयोग नहीं—सिलसिला है

उड़ी हमले के बाद जब भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक किया—कांग्रेस ने उसे ‘नाटक’ कहा। पुलवामा के बाद बालाकोट एयरस्ट्राइक हुई—कांग्रेस ने सबूत मांगे। अब ऑपरेशन सिंदूर के बाद जब पूरा देश एकजुट है, कांग्रेस फिर वहीं खड़ी है—सवाल पूछती हुई, लेकिन सिर्फ सरकार से नहीं, सेना की नीयत और कार्रवाई पर भी।

उदित राज कहते हैं—शशि थरूर प्रधानमंत्री की ‘फर्जी सर्जिकल स्ट्राइक’ का महिमामंडन कर रहे हैं। सवाल है—क्या कांग्रेस को यह एहसास है कि वह सत्ता का विरोध करते-करते भारत की सेना को झूठा ठहरा रही है? क्या यह वही पार्टी है जिसने 1971 में पाकिस्तान को तोड़ दिया था? क्या अब वही पार्टी देश को तोड़ने वाली भाषा बोल रही है?

देश का विरोध, या मोदी का?

सवाल यह नहीं है कि कांग्रेस सरकार का विरोध कर रही है। सवाल यह है कि वह किस हद तक जा रही है। यदि सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक को ‘फर्जी’ कह दिया जाए, तो कल को क्या युद्ध भी ‘फर्जी’ कहलाएगा? क्या अगर प्रधानमंत्री को राजनीतिक लाभ मिल रहा हो, तो सेना की कार्रवाई को भी झुठला दिया जाएगा?

क्या कांग्रेस अब भी “इंदिरा इज़ इंडिया, इंडिया इज़ इंदिरा” के जाल में फंसी है? क्या आज भी अगर पार्टी चुनाव हारती है, तो लोकतंत्र हार जाता है? क्या लोकतंत्र केवल तब तक सही है, जब तक कांग्रेस जीत रही हो?

ये हाइफ़नेट नहीं, हाई-ट्रेशन है

जय राम रमेश ने कहा—सांसद भी घूम रहे हैं, आतंकी भी घूम रहे हैं। और इसे ‘हाइफ़नेट’ कहा गया—एक ही रेखा से दोनों को जोड़ने की कोशिश। लेकिन यह कोई भाषायी चतुराई नहीं, यह राजनीतिक देशद्रोह की भाषा है। यह हाई-ट्रेशन है, हाइफ़नेट नहीं। क्या कांग्रेस नहीं समझती कि उसने अपने ही जनप्रतिनिधियों और देश की संसद को किस पायदान पर ला खड़ा किया है?

सलाह नहीं, चेतावनी

कांग्रेस अगर समझती है कि इस तरह वह भाजपा को घेर पाएगी, तो वह भूल में है। सरकार को हराने के लिए राष्ट्रीय स्वाभिमान को हराना एक खतरनाक प्रयोग है। और यह प्रयोग न कांग्रेस के लिए लाभकारी होगा, न भारत के लिए।

हम कांग्रेस को एक सलाह देना चाहते थे, लेकिन अब वक़्त चेतावनी का है:
सत्ता में लौटने के लिए भारत से मत टकराइए। भारत से टकराने वाले कभी लौटकर नहीं आते।

जय माँ भारती🙏🏽


Sunday, 25 May 2025

तेज प्रताप की कहानी में गुम दो औरतों की आवाज़

 राजनीति सिर्फ सत्ता का खेल नहीं होती — यह लोगों की भावनाओं, रिश्तों, और जीवन की सबसे निजी परतों तक में दाख़िल हो जाती है। तेज प्रताप यादव की कहानी, चाहे आप इसे प्रेम गाथा कहें या पारिवारिक विद्रोह, दरअसल उसी राजनीति की एक त्रासद तस्वीर है, जहाँ न कोई पूरी तरह मासूम है, और न ही कोई पूरी तरह दोषी।

प्यार था, तो फिर विवाह क्यों?

तेज प्रताप कहते हैं कि उन्हें 'मोहब्बत' थी — एक ऐसी भावना जिससे कोई भी इनकार नहीं कर सकता। पर अगर यह मोहब्बत इतनी सच्ची थी, तो विवाह का निर्णय क्यों लिया गया? और अगर विवाह कर लिया था, तो फिर उसे पूरी ईमानदारी से निभाया क्यों नहीं गया?

क्या यह सवाल हम सबके ज़ेहन में नहीं उठना चाहिए? क्या तेज प्रताप ने विवाह को केवल एक पारिवारिक औपचारिकता मानकर निभाया, बिना यह समझे कि इसमें केवल दो नाम नहीं, बल्कि दो ज़िंदगियाँ, दो आत्माएँ जुड़ती हैं? एक लड़की जिसे उन्होंने अपना जीवनसाथी बनाया — क्या वह सिर्फ एक ‘राजनीतिक मोहरा’ बनकर रह गई?

दो लड़कियाँ — और टूटी उम्मीदें

तेज प्रताप के फैसलों के बीच दो महिलाओं की ज़िंदगियाँ ऐसी उलझीं कि अब शायद कोई सुलझाव मुमकिन नहीं। एक वह पत्नी, जिससे उन्होंने विवाह किया पर फिर उस रिश्ते से मुँह मोड़ लिया; दूसरी वह युवती, जिससे वे कहते हैं कि उन्हें प्रेम था, पर जिसे कभी सामाजिक मान्यता नहीं मिल सकी।

क्या इन दोनों महिलाओं के साथ न्याय हुआ? या फिर वे केवल तेज प्रताप की कहानी का ‘साइड कैरेक्टर’ बनकर रह गईं, जिनकी भावनाएँ, सम्मान और जीवन की स्थिरता सब कुछ कुर्बान कर दी गई, सिर्फ इसलिए क्योंकि एक पुरुष अपनी भावनात्मक और पारिवारिक उलझनों से जूझ रहा था?

समाज — तेज प्रताप का रक्षक, और औरतों का मौन दर्शक?

हमारा समाज भी कम दिलचस्प किरदार नहीं है इस कहानी में। तेज प्रताप की हर बात पर सहानुभूति, हर आँसू पर संवेदना, और हर ‘प्रेम स्वीकृति’ पर तालियाँ... लेकिन क्या हमने कभी इन दो महिलाओं की आँखों में झाँकने की कोशिश की?

क्या हम यह समझने की कोशिश करते हैं कि शादी टूटना सिर्फ कोर्ट केस नहीं, एक स्त्री की आत्मा के चिथड़े-चिथड़े हो जाने जैसा होता है? क्या मोहब्बत अधूरी रह जाना सिर्फ एक ‘इमोशनल फुटनोट’ नहीं, बल्कि कई वर्षों की मानसिक यातना बन जाता है?

राजनीति का पर्दा — जहाँ हर कोई अपनी भूमिका निभा रहा है

इस पूरे प्रकरण में सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि कोई भी पूरी तरह निर्दोष नहीं दिखता। तेज प्रताप, परिवार, विरोधी दल, मीडिया — सबने इस कहानी में अपनी-अपनी स्क्रिप्ट के अनुसार अभिनय किया है। भावनाओं को राजनीति में भुनाया गया, व्यक्तिगत पीड़ा को पब्लिक सिम्पैथी में बदला गया, और सच्चे सवालों को मीडिया की हेडलाइन में दबा दिया गया।

और अंत में...

यह सिर्फ तेज प्रताप यादव की निजी कहानी नहीं है — यह हमारे पूरे सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने पर एक बड़ा सवाल है। क्या हम रिश्तों को इतनी आसानी से राजनीति की बलि चढ़ा सकते हैं? क्या हम समाज के रूप में इतनी सहानुभूति केवल पुरुष के लिए रखेंगे, और स्त्रियों को केवल ‘त्याग की मूर्ति’ बनाकर भूल जाएँगे?

यह कहानी एक प्रेम त्रिकोण नहीं, बल्कि समाज, राजनीति और व्यक्तिगत स्वार्थ के उस तिकोन की कहानी है, जहाँ हर कोना चुभता है — और सबसे ज्यादा चोट उन्हें लगती है, जो सबसे कम बोलते हैं।

भारत का आर्थिक उत्कर्ष : शिखर की ओर स्वाभिमानी यात्रा

 भारत ने वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में एक और स्वर्णिम अध्याय जोड़ा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा जारी नवीनतम आँकड़ों के अनुसार भारत ने जापान को पीछे छोड़ते हुए अब विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का स्थान प्राप्त कर लिया है। यह तथ्य मात्र संख्यात्मक उपलब्धि नहीं, अपितु एक समग्र राष्ट्र-यात्रा की गाथा है — जिसमें संकल्प, श्रम, नीति और दूरदृष्टि सम्मिलित हैं।

नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बी. वी. आर. सुब्रह्मण्यम द्वारा घोषित यह उपलब्धि, भारत की 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) को रेखांकित करती है। यह घोषणा ऐसे समय पर हुई है जब ‘विकसित भारत 2047’ के संकल्प की दिशा में नीति आयोग तथा राज्यों के प्रतिनिधियों ने संयुक्त मंथन किया है। ऐसे में यह आर्थिक उत्कर्ष, केवल एक आँकड़ा नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय आत्मविश्वास की अभिव्यक्ति है।

भारत की आर्थिक गति वैश्विक औसत की तुलना में कहीं अधिक तेज़ है। IMF का अनुमान है कि भारत वर्ष 2025 में 6.2% तथा 2026 में 6.3% की दर से विकास करेगा, जबकि समस्त विश्व की अनुमानित वृद्धि दर क्रमशः 2.8% और 3% है। यह विभेद न केवल भारत की आंतरिक शक्ति का संकेत देता है, बल्कि विश्व में उसकी बढ़ती भूमिका को भी दर्शाता है।

सहयोग, नवाचार और समावेशन की राह पर

'विकसित राज्य से विकसित भारत' के भावपूर्ण लक्ष्य को लेकर दिल्ली में संपन्न नीति आयोग की दसवीं गवर्निंग काउंसिल बैठक में यह स्पष्ट हुआ कि भारत अपनी विकास-यात्रा को अब मात्र आंकड़ों की दौड़ नहीं, बल्कि समावेशी, पर्यावरण-संवेदनशील और नवाचार-प्रेरित दृष्टिकोण से देख रहा है। विनिर्माण, सेवाएँ, ग्रामीण तथा शहरी गैर-कृषि क्षेत्र, अनौपचारिक श्रम, हरित एवं परिपथीय अर्थव्यवस्था जैसे विषयों पर गहन विमर्श, यह दर्शाता है कि भारत भविष्य की नहीं, वर्तमान की तैयारियाँ कर रहा है।

टेक-ऑफ़ की वेला में भारत

सीईओ सुब्रह्मण्यम द्वारा किया गया यह कथन कि "भारत टेक-ऑफ़ स्टेज पर है", एक साधारण वाक्य नहीं, बल्कि एक व्यापक यथार्थ का द्योतक है। जिस प्रकार कोई विमान अपनी उड़ान से पूर्व अत्यधिक ऊर्जा और संतुलन अर्जित करता है, उसी प्रकार भारत अब उन सभी बुनियादी सुधारों, संरचनात्मक बदलावों और रणनीतिक पहलों के बल पर ऊर्ध्वगामी उड़ान के लिए प्रस्तुत है।

अंतिम विचार

इस आर्थिक उत्थान को मात्र वैश्विक मान्यता के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए, अपितु यह राष्ट्र की आंतरिक चेतना, युवा शक्ति, उद्यमिता तथा शासन व्यवस्था की सुदृढ़ता का प्रतीक है। यदि भारत इसी गति से आगे बढ़ता रहा तो वह केवल वैश्विक आर्थिक शक्ति नहीं, बल्कि एक नैतिक, सांस्कृतिक और नीति-प्रेरक नेतृत्वकर्ता के रूप में भी उभरेगा।

‘विकसित भारत 2047’ का स्वप्न अब एक धुंधली आकांक्षा नहीं, अपितु एक संभाव्य और साकार गंतव्य प्रतीत होता है — जहाँ भारत न केवल आर्थिक दृष्टि से समृद्ध होगा, बल्कि न्यायसंगत, समावेशी और आत्मनिर्भर राष्ट्र के रूप में विश्वपटल पर अपना वर्चस्व स्थापित करेगा।

जय माँ भारती🙏🏽