नव वर्ष अब तुम आ भी जाओ।
Wednesday 30 December 2009
नव वर्ष अब तुम आ भी जाओ।
नव वर्ष अब तुम आ भी जाओ।
Sunday 6 December 2009
शोक सभा
गोवर्धन के पिताजी नहीं रहे। वह क्या करे, किससे मिले, क्या कहे, उसे कुछ नहीं समझ आ रहा था। वह अपने बाबूजी के पार्थिव शरीर के पास स्तब्ध बैठा हुआ था। स्तब्ध आंखों से उन्हें देख रहा था, ऐसे में गोवर्धन की पत्नी मिसेस गोवर्धन आकर अपना ज्ञानकोश खोलकर उन पर उड़ेलती हैं। और कहती हैं कि आप अपने पड़ोसी जमनादास से क्यों नहीं मिलते हैं। उन्हें शवयात्रा का अच्छा खासा एक्सपीरियंस है इसलिए तो मैं कहती हूं कि सगे संबंधी तो बाद में आकर फूल चढ़ाएंगे और न्यूज पेपर में छोटा विज्ञापन देने से दस बातें सुनाएंगे। ऐसे मौके पर ही हमेशा पड़ोसी ही सेवा के लिए हाथ बढ़ाते हैं, और जितना मुझे याद आता है। जमनादास को हमने एक कटोरी चीनी भी पिछले हफ्ते दी थी। तो हमारा फर्ज बनता है कि हम उन्हें कर्ज उतारने के लिए मौका दें। और वैसे भी शवयात्राओं में शोकसभाओं में मृतक के परिवार से ज्यादा थके परेशान व गमगीन दिखना उनकी भी एक रुचि है।
जहां पता चलता है मुहल्ले या शहर के किसी भी कोने में किसी ने प्राण त्यागे हैं, यम उन्हें लेने आएं उससे पहले वो कंधे पर सफेद गमछा डाले (जो उन्हें ससुराल से मिला था) दुख जाहिर करने पहुंच जाते हैं। जमनादास की एक और विशेषता है जो उनकी कोई सलाह उनका परिवार वाला नहीं सुनता है वह इस समय शोकाकुल को देते हैं। पता है न वह इस समय न कुछ बोल सकता है, न उलझ सकता है। सामने वाला भी सोचता है कि इस समय वे चाय भी नहीं पी रहे हैं, तो कुछ बोल ही लें। इससे मन भी हल्का हो जाता है। सामने वाले का नहीं जमनादास का। मैंने तो यह भी सुना है कि उनमें इतनी ताकत है कि शरीर अपने अग्नि धारण कर लेता है, और पांचतत्व में विलीन हो जाता है। इसे कहते हैं यम का नाम लो और जमनादास हाजिर।
जमनादास - भाई ये क्या हो गया। गोवर्धन - कुछ नहीं पिताजी को सफेद चादर पसंद थी, इसलिए ओढ़कर सो रहे हैं। आप भी हद ही करते हैं, मृतक के घर आए हैं और पत्रकारों जैसे सवाल करते हैं। जमनादास - अच्छा अच्छा, बाबूजी नहीं रहेए। बांस, रस्सी, कफन, मटका का इंतजाम हो गया या नहीं। गोवर्धन - इस समय बाबूजी के वियोग में मुझे कुछ नहीं सूझ रहा है, जैसा आप जो ठीक समझें, वैसा कीजिए। जमनादास मन ही मन मुस्कुराए। लगता है इस शवयात्रा में भी मेरा कमीशन तय है। फिर एकदम से उनका ज्ञान चक्षु खुला उन्होंने गोवर्धन की ओर देखा जैसे महाभारत में श्रीकृष्ण ने दुर्योधन की ओर देखा था, वह भांप गए थे सुई बराबर भी जमीन नहीं देगा। हमारा सीना चौड़ा हो रहा था, क्योंकि हम अपने आपको श्रीकृष्ण समझ रहे थे। इसकी जेब में कितने भी रुपए हों, वो एक रुपया खर्च करने वाला नहीं। लेकिन हर महान पड़ोसी की तरह मैंने अपना पड़ोसी धर्म को ध्यान रखते हुए मैंने सारा सामान खरीद भी लिया और कुछ दिन बाद खर्च की गई रकम मांगूंगा तो वह अपनी चालाक प्रवृत्ति का परिचय देगा। और फौरन रौंद मुंह बनाकर कहेगा मेरे बाबूजी का देहांत हुआ है और तुम्हे पैसे की पड़ी है। इसलिए हमने वक्त का फायदा उठाया। लाने और न ले जाने से अच्छा है दिनेश से खेल के ऊपर डिस्कस किया जाए। इसी में समझदारी है। बीच-बीच में बाबूजी को भी याद करेंगे जब हम हारने लगेंगे।
जमनादास - दिनेश बहुत बुरा हुआ भाई बावूजी हमें इतनी जल्दी छोड़कर चले गए। उम्मीद नहीं थी।
दिनेश -अच्छा, तुम तो पिछले साल ही कह रहे थे कि छग्गूलाल हलवाई से पहले गोवर्धन के बाबूजी को गुजरना चाहिए था, इतना उमर हो गई है। सच है तुम पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। कभी किसी को कहते हो, कभी किसी को। जमनादास - अच्छा, अच्छा ठीक है। जो बोलना है इतनी जोर से बोलने का क्या औचित्य?
इसीबीच गोवर्धन के बाबूजी के मौत की खबर भ्रष्टाचार की तरह पूरी सोसायटी में फैल गई। लोगों की भीड़ जुटने लगी। जो लोग बाबूजी को नमस्कार करने से भी कतराते थे, वह भी दहाड़े मार मारकर रो रहे थे। कई बार तो ऐसा प्रतीत हो रहा था कि गोवर्धन के नहीं पूरे सोसायटी के बाबूजी गुजर गए हों। तभी जमनादास का दिमाग चला शवयात्रा में नहीं कम से कम तस्वीर पर ही कुछ कमाया जाए। हमने अपनी शक्ल पर करुणमयी भाव लाए। और गोवर्धन को कहा लाओ बाबूजी की तस्वीर बड़ी करवा लें। लगाने के काम आएगी। क्योंकि अब केवल तस्वीर में ही देखकर बाबूजी को प्रणाम व सीख लिया करेंगे। हमें यकीन है कि बाबूजी कहीं भी पर तस्वीर से हमें आशीर्वाद जरूर दिया करेंगे। गोवर्धन - भाषण पर अल्पविराम लगाएं और मुद्दे की बात बताएं। मुद्दा कुछ नहीं मेरे बड़े भाई। बस उनकी एक तस्वीर दे दो जिसे प्ता ेम में मढ़वा दें। गोवर्धन - आप कितने महान हैं। कितना सोचते हैं आप। लेकिन आप चिंता न करें, बाबूजी की ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर हमारे पास रखी हुई है। तपाक से जमनादास बोले- हे राम क्या कह रहे हो। ब्लैक एंड व्हाइट में पिताजी को देखा करोगे। उनकी आत्मा को कष्ट होगा। रंगीन जमाना है। दो ब्लैक एंड व्हाइट को रंगीन बनवाएंगे। उनकी फैवरिट फिल्म मुगले आजम भी तो ब्लैक एंड व्हाइट से रंगीन बनी है। तो उनकी तस्वीर क्यों नहीं। इससे सोसायटी में भी अच्छा असर प़ड़ता है कि कम से कम जीते जी तो इन नालायकों ने कभी पूछा नहीं, चलो मरने के बाद सही एक रंगीन तस्वीर तो बनवा ली। गोवर्धन ने ठंडी सांस ली और कहा- बाबूजी की तस्वीर की रंगीन और ब्लैड एंड व्हाइट से कोई फर्क नहीं पड़ता है। बाबूजी तो हमारी दिलों में समाए हुए हैं। फिर उनकी तस्वीर पर अन्यथा पैसा खर्च करने का क्या औचित्य? जमनादास को ये बात पसंद नहीं आई और वह शोकसभा छोड़कर शोक में चले गए। ये पता नहीं किसलिए बाबूजी का शोक या कमीशन का शोक। गोवर्धन व मिसेस गोवर्धन ने सारा समारोह बड़े सफलतापूर्वक बिना निवेश किए सफलता पूर्वक किया....